उत्तराखंड ग्रीष्मकालीन राजधानी- चुनौतियों निपटना होगा , 1500 हेक्टेयर भूमि की पड़ेेगी जरूरत


देहरादून/मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण (भराड़ीसैंण) को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा के बाद अब उसके भावी स्वरूप को लेकर सपने गढ़े जाने लगे हैं। सियासी आलोचनाओं और आशंकाओं के बीच ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर तमाम तरह के सवाल भी सामने आ रहे हैं।माना जा रहा है कि जनाकांक्षाओं के प्रतीक गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करना एक बात है और उस घोषणा को धरातल पर उतारना उससे एकदम अलग बात है। यानी ग्रीष्मकालीन राजधानी को अस्तित्व में आने के लिए कई चुनौतियों से पार पाना होगा। अमर उजाला ने उन चुनौतियों की पड़ताल करने का प्रयास किया है। प्रदेश उपाध्यक्ष, भाजपा  डॉ.देवेंद्र भसीन का कहना है कि  मुख्यमंत्री ने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा करके एक साहसिक निर्णय लिया है। उन्होंने पार्टी के चुनावी दृष्टि पत्र की अहम घोषणा को पूरा किया है। उत्तरप्रदेश के जमाने में टिहरी बांध बनाने के लिए नई टिहरी शहर का जन्म हुआ। लेकिन गर्मियों में गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। जारी बजट सत्र में मंत्रियों, विधायकों, अधिकारियों व कर्मचारियों को पानी का संकट लगातार गहराता रहा।सरकार को इस संकट की गंभीरता का शायद इल्म है। तभी तो मुख्यमंत्री ने ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा करने के अगले दिन सीधे चैरड़ा झील का रुख किया जहां से जल संकट के समाधान की राह खोजी जा रही है। दूसरा विकल्प 40 किमी दूर अलकनंदा से पानी लाना होगा। वर्ष 2008 में राजधानी चयन आयोग ने अलकनंदा से पानी लाने पर 500 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया था। गैरसैंण में 76 प्रतिशत भूमि पर जंगल है। एक प्रतिशत भूमि पर लोग रह रहे हैं व खेती बाड़ी कर रहे हैं। 23 प्रतिशत भूमि पर ओपन फारेस्ट है। यानी राजधानी का बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए जमीन जुटाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। पर्यावरणीय सरोकारों के दबाव के बीच उसे भवनों का निर्माण करना होगा। राजधानी चयन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गैरसैंण में राजधानी बनाने के लिए 1500 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी।यह भी सच्चाई है कि राज्य गठन के बाद से अब तक सत्तारूढ़ रही कोई भी सरकार प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में एक भी नया शहर नहीं बसा सकी है। गैरसैंण उसके सामने एक अवसर है जिसे वह एक ग्रीष्मकालीन राजधानी के बहाने विकसित कर सकती है। भराड़ीसैंण में सरकार ने विधानसभा का भव्य भवन बनाया है। मंत्रियों, विधायकों और अधिकारी-कर्मचारियों के लिए आवासीय कॉलोनी भी तैयार की है। लेकिन जानकारों का मानना है कि करीब 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित भराड़ीसैंण की पहाड़ियां कच्ची हैं। यानी वहां की इकोलॉजी संवेदनशील है। इसलिए उसकी संवेदनशीलता को देखते हुए बुुनियादी ढांचा तैयार करना आसान नहीं होगा। सरकार ने अभी मिनी सचिवालय के लिए भूमि खोजी है और उसके लिए 50 करोड़ का प्रावधान किया है। लेकिन राजधानी में हर विभाग का मिनी निदेशालय स्थापित करना होगा। सचिवालय, विधानसभा, पुलिस मुख्यालय, निदेशालयों के अधिकारी कर्मचारी और अन्य स्टाफ के लिए आवासीय सुविधाएं जुटानी होंगी। इसके लिए बड़े पैमाने पर आवासीय निर्माण करने होंगे।


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