नास्तिकों के पास वैभव, लेकिन शांति आस्तिकों के पास ही होती है: आचार्य श्री

 


देहरादून : दिगंबर पंचायती जैन भवन में इन दिनों आध्यात्मिक उल्लास और भक्ति का विशेष वातावरण व्याप्त है, जहां परम पूज्य संस्कार प्रणेता, ज्ञानयोगी, उत्तराखंड के राजकीय अतिथि आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज के पावन सानिध्य में कल्याण मंदिर विधान का भव्य आयोजन चल रहा है। यह संगीतमय विधान 30 जुलाई तक प्रतिदिन आयोजित किया जा रहा है, जिसमें भक्तगण अत्यंत श्रद्धा और भक्ति भाव से भाग ले रहे हैं।

कल्याण मंदिर विधान के अंतर्गत प्रतिदिन 23वें तीर्थंकर चिंतामणि भगवान पार्श्वनाथ की आराधना की जा रही है। भक्ति में लीन श्रद्धालु मंत्रोच्चारण, आरती, विधान पूजन और भजन कार्यक्रमों के माध्यम से आध्यात्मिक शांति की अनुभूति कर रहे हैं। आज के विधान के पुण्यार्जक के रूप में जैन मिलन परिवार, श्री संजय जैन एवं ऋतु जैन (अरिहंत एक्सप्रेस), तथा श्री अनिल जैन एवं शैफाली जैन उपस्थित रहे, जिन्होंने पूरे श्रद्धा भाव से भगवान की पूजा अर्चना कर पुण्य अर्जन किया।

पूज्य आचार्य श्री सौरभ सागर जी के सानिध्य में आयोजित इस भव्य आयोजन में दिल्ली सहित विभिन्न स्थानों से पधारे गुरुभक्तों का पुष्प वर्षायोग समिति द्वारा ससम्मान स्वागत और अभिनंदन किया गया। कार्यक्रम के सातवें दिन पूज्य आचार्य श्री ने अपने मंगल प्रवचन में भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि “आराधना ही गृहस्थ जीवन की सबसे बड़ी साधना है। जिस घर में परमात्मा की आराधना नहीं होती, वह परिवार नास्तिकता की ओर अग्रसर होता है।” उन्होंने आगे कहा कि इस संसार में आस्तिक और नास्तिक दोनों प्रकार के लोग होते हैं। ईश्वर को मानने वाले भी होते हैं और ईश्वर का अस्तित्व नकारने वाले भी। दोनों ही प्रकार के लोगों के पास सांसारिक वैभव हो सकता है, लेकिन आस्तिक व्यक्ति को जहां सांसारिक सुख के साथ आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है, वहीं नास्तिक व्यक्ति को वैभव के बावजूद भी मानसिक शांति नहीं मिलती।

उन्होंने स्पष्ट किया कि ईश्वर में आस्था रखने से जीवन केवल भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी समृद्ध होता है। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी को न केवल वैभव की ओर, बल्कि अध्यात्म की ओर भी अग्रसर होना चाहिए, जिससे समाज में संतुलन, करुणा और आत्मिक विकास संभव हो सके।

मीडिया को कार्यक्रम की जानकारी देते हुए मीडिया कोऑर्डिनेटर मधु जैन ने बताया कि इस विधान में प्रतिदिन अलग-अलग सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएं भाग ले रही हैं और अपने-अपने स्तर पर पूजा अर्चना कर रही हैं। प्रतिदिन के कार्यक्रम में अनेक गतिविधियाँ शामिल की जा रही हैं, जिनमें दोपहर 3 बजे पूज्य आचार्य श्री जी के सानिध्य में शंका समाधान सत्र आयोजित होता है। इस सत्र में श्रद्धालु अपने जीवन से जुड़ी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं।

इसके अतिरिक्त प्रतिदिन भक्ति संगीत, वैयावृत्ति, ध्यान सत्र, और पूज्य आचार्य श्री जी की भक्ति से ओतप्रोत विशेष कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें भक्तगण बड़ी संख्या में सम्मिलित होकर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर रहे हैं।

दिगंबर जैन भवन का यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, संस्कार निर्माण और मानसिक शांति का केंद्र भी बन चुका है। आचार्य श्री सौरभ सागर जी के दिव्य विचार और तपस्वी जीवनशैली श्रद्धालुओं को न केवल प्रेरणा दे रहे हैं, बल्कि उन्हें जीवन के उद्देश्य और कर्तव्यों की भी स्पष्ट समझ प्रदान कर रहे हैं। आगामी दिनों में यह आयोजन और भी भव्य स्वरूप लेगा तथा उत्तराखंड की धार्मिक परंपरा में एक ऐतिहासिक अध्याय के रूप में अंकित होगा।

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