लखनऊ: तेजी से फैल रहा अवैध कॉलोनियों का जाल



 लखनऊ / लविप्रा की सुस्त नीति के कारण काेई नई योजना पिछले दस साल से नहीं आ सकी। बसंत कुंज में बचे हुए भूखंड जरूर किस्तों में न के बराबर निकाले गए। मोहान रोड जो पूरी तरह से तैयार है, उसे लांच करने में सालों लग रहे हैं। कागजों पर खाका खींचा जाता है और फिर उपाध्यक्ष का तबादला होते ही नए सिरे से प्रकिया शुरू होती है। यह प्रकिया वर्ष 2015 से चल रही है।वर्तमान में मोहान रोड को गति जरूर मिली लेकिन निजी डेवलपर्स के पाले में गेंद चली गई है और उसे विकसित करना है, शासन से अनुमति आए करीब एक माह हो गया है, फिर भी मीटिंगों का दौर जारी है और शहर में अनियोजित कालोनियों की भरमार होती जा रही है।

 क्योंकि लविप्रा अपनी कोई बड़ी योजना नहीं ला पा रही है। मोहान रोड 270 हेक्टेअर की योजना है। इस संबंध में लविप्रा उपाध्यक्ष अक्षय त्रिपाठी कई दौर की मीटिंग ले चुके हैं। माना जा रहा है कि नए साल में इसे लांच करने की तैयारी है। मोहान रोड आवासीय योजना को गति देने का काम पूर्व उपाध्यक्ष सत्येद्र सिंह के समय शुरू हुआ था, प्रस्तावित कम्पोजिट हाउसिंग स्कीम के अंतर्गत अर्जित भूमि का विकास प्लाटेड डेवलपमेंट के साथ ग्रुप हाउसिंग व व्यावसायिक निर्माण प्रस्तावित है। इस योजना में प्यारेपुर और कलियाखेड़ा के दो गांवों की जमीन सबसे ज्यादा गई है। 

वर्ष 2015 में ही करीब 483 कराेड़ की मांग की गई थी, जिसे करीब करीब दिया जा चुका है। इसके बाद तत्कालीन उपाध्यक्ष के समय मोहान रोड योजना निजी डेवलपर्स को दी गई।निजी डेवलपर्स को योजना पूरी विकसित करनी थी। सत्तर फीसद लाभ निजी डेवपलर्स और तीस फीसद लाभ लविप्रा को रखना था। भूखंडों व व्यावसायिक संपत्तियों की रजिस्ट्री लविप्रा करता। यही नहीं भूखंडों की कीमत का निर्धारण भी लविप्रा द्वारा गठित कमेटी करती, लेकिन अभी इस योजना को रफ्तार जो मिलना चाहिए नहीं मिला। इन छह सालों में दर्जनों अविकसित कालोनियों का विकास जरूर हुआ।

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