सोनिया गांधी समेत कई दिग्गज नेताओं ने उठाए मतदाता सूची संशोधन पर सवाल

 


नई दिल्लीः विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के विभिन्न घटक दलों के सांसदों ने बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ विरोध दर्ज किया। बृहस्पतिवार को संसद भवन परिसर में हुए इस प्रदर्शन में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल समेत कई अन्य दलों के सांसदों ने हिस्सा लिया और इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला करार दिया। संसद के मकर द्वार के पास आयोजित इस शांतिपूर्ण लेकिन स्पष्ट विरोध में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनिया गांधी भी शामिल हुईं, जो इस प्रदर्शन की राजनीतिक गंभीरता को दर्शाता है। प्रदर्शन में शामिल सांसदों ने हाथों में एक बड़ा बैनर ले रखा था, जिस पर लिखा था – ‘एसआईआर: लोकतंत्र पर वार’। इसके अलावा प्रदर्शनकारियों ने ‘एसआईआर वापस लो’ के नारे भी लगाए, जो मतदाता सूची की प्रक्रिया को लेकर उनके गहरे असंतोष का प्रतीक थे।

विपक्षी सांसदों ने इस मुद्दे पर संसद में तत्काल चर्चा की मांग की और आरोप लगाया कि बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में एसआईआर की प्रक्रिया लोकतांत्रिक अधिकारों को कुंद करने की एक साजिश है। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि यह केवल विपक्ष का ही नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर के सांसदों का भी मुद्दा बन चुका है। उन्होंने जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद गिरिधारी यादव के बयान का हवाला देते हुए कहा कि जब सत्ता पक्ष के सांसद भी इस विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर सवाल उठा रहे हैं, तब इसकी पारदर्शिता और उद्देश्य पर गंभीर संदेह खड़ा होता है। वेणुगोपाल ने कहा कि गिरिधारी यादव का यह कहना कि जो मतदाता सूची लोकसभा चुनाव के दौरान सही थी, वह विधानसभा चुनाव में अचानक गलत कैसे हो सकती है, यह अपने आप में सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

विपक्षी गठबंधन का आरोप है कि यह विशेष गहन पुनरीक्षण एकतरफा, पक्षपातपूर्ण और अलोकतांत्रिक कदम है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची में उन तबकों को निशाना बनाना है जो सत्ता पक्ष के खिलाफ मतदान कर सकते हैं। तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं ने भी प्रदर्शन के दौरान कहा कि यह कवायद केवल जनसंख्या आंकड़ों के बहाने से सामाजिक समीकरणों को तोड़ने और चुनिंदा मतदाताओं को वंचित करने की साजिश है। उन्होंने इसे भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर चोट बताया।

विरोध करने वाले सांसदों का यह भी कहना था कि निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक संस्थान की निष्पक्षता और स्वायत्तता इस प्रकार की कार्रवाइयों से गंभीर रूप से प्रभावित होती है। प्रदर्शन में मौजूद समाजवादी पार्टी के एक सांसद ने कहा कि जिस तरह से एसआईआर को लागू किया जा रहा है, वह केवल प्रशासनिक अभ्यास नहीं, बल्कि राजनीतिक हथियार बन चुका है।

विपक्ष ने चेतावनी दी कि अगर इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया और संसद में चर्चा नहीं हुई तो वे राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू करने से भी पीछे नहीं हटेंगे। उनके अनुसार, यह केवल बिहार का नहीं, बल्कि पूरे भारत के मतदाताओं के अधिकारों का मामला है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

विपक्षी दलों का यह समवेत स्वर और संसद परिसर में संगठित विरोध आने वाले चुनावों से पहले मतदाता सूची और चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर एक नया राजनीतिक विमर्श छेड़ सकता है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे को लेकर संसद के भीतर और बाहर राजनीतिक टकराव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

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