जैन धर्मशाला में भगवान पार्श्वनाथ की आराधना, आचार्य सौरभ सागर जी का सान्निध्य
देहरादून: उत्तराखंड के राजकीय अतिथि और परम पूज्य आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महाराज के मंगल सान्निध्य में गांधी रोड स्थित जैन धर्मशाला में 23वें तीर्थंकर चिंतामणि भगवान पार्श्वनाथ की आराधना की गई। जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र द्वारा आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति आराधना का यह चौथा दिन था। आज के विधान के पुण्यार्जक देव जैन, प्रिया जैन (भिंड) तथा मुदित जैन, शशि जैन (साहस्रधारा रोड) रहे।
आचार्य श्री ने प्रवचन में कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संस्कृति की रक्षा का अधिकार है, किंतु संस्कृति तभी बचेगी जब तीर्थ बचे रहेंगे। उन्होंने कहा कि तीर्थ केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र होते हैं। गिरनार पर्वत, जो भगवान नेमिनाथ की मोक्ष स्थली है, उस पर किसी भी प्रकार की पूजा या निर्माण पर रोक लगाना, श्रद्धालुओं के अधिकारों का हनन है। उन्होंने तीर्थ की रक्षा के लिए सतत प्रयास किए जाने की अपील की।
गिरनार तीर्थ क्षेत्र की सुरक्षा और 2 जुलाई को भगवान नेमिनाथ के निर्वाण कल्याणक पर्व पर गुजरात प्रशासन द्वारा जैन श्रद्धालुओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में भारतीय जैन मिलन द्वारा जिलाधिकारी के माध्यम से गुजरात सरकार को ज्ञापन सौंपा गया।
भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नरेश चंद जैन ने कहा कि भारत का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के पालन की स्वतंत्रता देता है, लेकिन गिरनार की पंचम टोंक पर जैन श्रद्धालुओं को उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित किया गया। उन्होंने बताया कि न केवल जयकारे और पूजा सामग्री पर रोक लगाई गई, बल्कि महिलाओं से भी अभद्रता की गई और सुरक्षा के नाम पर कई स्थानों पर चेकिंग के दौरान द्रव्य सामग्री जब्त की गई।
ज्ञापन में बताया गया कि भारत सरकार के पुरातत्व विभाग (ASI) और गुजरात राज्य गजेटियर दोनों ने गिरनार की पंचम टोंक को मूलतः जैन तीर्थ के रूप में मान्यता दी है। साथ ही गुजरात उच्च न्यायालय का 2005 का आदेश भी मौजूद है
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