तालिबान भी है डोभाल के अफगानिस्तान प्लान से खुश

 


 अफगानिस्तान को लेकर एक दिन के अंतर पर भारत और पाकिस्तान में बैठके हो रही हैं। भारत ने जहां बुधवार को एनएसए लेवल पर सात अन्य देशों के साथ बैठक की तो वहीं पाकिस्तान में आज मीटिंग होने जा रही है, जिसमें तालिबान के प्रतिनिधि को भी शामिल किया जाना है। हालांकि, अब तालिबान ने उम्मीद जताई है कि नई दिल्ली में हुई बैठक से क्षेत्र में शांति और स्थिरता लाने में मदद मिलेगी। तालिबान प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने 'न्यूज 18' से बातचीत के दौरान कहा कि तालिबान इस बैठक को एक सकारात्मक विकास के तौर पर देखता है और उसे उम्मीद है कि इससे अफगानिस्तान में 'शांति और स्थिरता' लाने में मदद होगीराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल की अध्यक्षता में भारत ने बुधवार को सात अन्य देशो के साथ वार्ता की।

 इस बैठक में ईरान, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के एनएसए शामिल हुए थे । भारत ने इस बैठक के लिए चीन और पाकिस्तान को भी न्योता भेजा था लेकिन दोनों देशों ने मीटिंग में आने से इनकार कर दिया।सुहेल शाहीन ने कहा कि तालिबान ऐसी किसी भी पहल का समर्थन करता है जिससे उनके देश में शांति और स्थिरता लाने में सहयोग मिले, नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर बने और देश से गरीबी हटाने में सहयोग हो।शाहीन ने कहा, 'अगर उन्होंने (आठ देशों के एनएसए) ने कहा है कि वे अफगानिस्तान के लोगों के लिए देश के पुनर्निमाण, शांति और स्थिरता के लिए काम करेंगे तो यही हमारा उद्देश्य है। 

अफगानिस्तान की जनता शांति और स्थिरता चाहती है क्योंकि पिछले कुछ सालों में उन्होंने बहुत कुछ झेला है। फिलहाल, हम देश में आर्थिक परियोजनाओं को पूरा करना चाहते हैं और नए प्रॉजेक्ट शुरू करना चाहते हैं। हमारे लोगों के लिए नौकरी भी चाहते हैं। इसलिए एनएसए स्तर की बैठक में जो कहा गया, हम उससे सहमत हैं।'बैठक में पाकिस्तान के शामिल न होने पर सुहेल शाहीन ने कहा, 'यह किसी देश पर निर्भर करता है कि वह अपना रुख तय करे। आप इस बारे में उनसे पूछ सकते हैं। जहां तक अफगानिस्तान की सरकार और जनता का सवाल है, हम शांति और स्थिरता के साथ आर्थिक गतिविधियों को दोबारा शुरू करना चाहते हैं।'बता दें कि नई दिल्ली में आठ देशों की बैठक के बाद 'दिल्ली डिक्लेरेशन ऑन अफगानिस्ता' नाम से 12 प्वाइंट का घोषणा पत्र भी जारी किया गया। बैठक में शामिल सभी देश इस बात पर राजी हुए कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आंतकवाद को किसी तरह के पोषण देने, ट्रेनिंग, प्लानिंग या आर्थिक मदद के लिए नहीं किया जाएगा। 

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