बड़ा खुलासा, मौत का खेल खेलने के बाद एक अधिकारी ने दी थी शरण


फरार होने के बाद विकास ने जो भी टिकट लिए, वो संदीप पाल के नाम से लिए। एसटीएफ सूत्रों के मुताबिक वारदात को अंजाम देने के बाद विकास दुबे अपने दो साथियों अमर दुबे व प्रभात मिश्र के साथ शिवली पहुंचा। यहां पर नगर पालिका के एक अधिकारी ने उनको अपने घर पर ठहराया। विकास दो दिन वहीं पड़ा रहा। फिर अधिकारी ने उसको एक कार मुहैया कराई जिससे ये तीनों औरैया पहुंचे। यहां से ट्रक पकड़कर फरीदाबाद गए।


नाम के साथ बदला हुलिया 


विकास ने एसटीएफ को पूछताछ में बताया था कि उसने टीवी पर अपनी फोटो देखी थीं। तीन चार फोटो लगभग एकजैसी ही थीं। इसलिए उसने तत्काल अपना हुलिया बदला। गमछा ओढ़ा और चश्मा-मास्क लगा लिया। दिल्ली से जयपुर और वहां से उज्जैन जाने को जो बस के टिकट लिये उसमें उसने अपना नाम संदीप पाल दर्ज कराया था। एसटीएफ ने टिकट आदि बरामद कर लिये थे। बस स्टैंड के फुटेज भी जुटाए हैं।


मोबाइल तोड़ दिया था


शिवली पहुंचते ही विकास ने मोबाइल को तोड़कर फेंक दिया था। इससे सर्विलांस उसको ट्रेस नहीं कर सकी। जब उससे सवाल किया गया कि उसने पुलिसकर्मियों को क्यों मार दिया तो वो बोला कि मुझे लगा पुलिसवाले केवल घायल हुए होंगे। आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई, ये टीवी पर खबर देखकर पता चला।


विकास बोला मुझे अंजाम पता था


एसटीएफ ने उससे पूछा कि वारदात के बाद बेखौफ होकर फरीदाबाद, जयपुर और उज्जैन में घूमता रहा तो डर नहीं लगा। इस पर विकास ने जवाब दिया है कि मुझे अपना अंजाम पता था। इसलिए डर नहीं लग रहा था। सरेंडर कर जेल जाने की तैयारी थी। इसके लिए उसने कई वकीलों से संपर्क किया।पचास हजार रुपये एडवांस देने की बात भी हो गई थी। मगर उसके पहले ही वो गिरफ्तार हो गया और फिर मुठभेड़ में मार दिया गया।


Source :Amar Ujala 


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