6000 साल पुराने टपकेश्वर महादेव मंदिर में चोरी, चांदी का नाग हुआ गायब

 


देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित प्राचीन और पौराणिक महत्व वाला टपकेश्वर महादेव मंदिर बीते रविवार एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना का साक्षी बना। इस दिन भगवान शिव के मस्तक पर वर्षों से सुशोभित चांदी का नाग किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा चुरा लिया गया, जिससे न केवल मंदिर प्रबंधन बल्कि श्रद्धालुजन भी स्तब्ध और आहत हैं। यह चांदी का नाग लगभग 200 ग्राम वजनी था और मंदिर में एक लंबे अरसे से धार्मिक आस्था का प्रतीक बना हुआ था।

मंदिर प्रबंधन से जुड़े श्री टपकेश्वर महादेव सेवादल (रजि.) के कार्यकारिणी सदस्य अनुभव अग्रवाल ने इस घटना को केवल एक चोर की हरकत नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपरा, आस्था और संस्कृति पर गहरी चोट बताया है। सोमवार को उन्होंने इस घटना के संबंध में देहरादून के कैंट थाना में लिखित शिकायत दर्ज करवाई। उन्होंने बताया कि चोरी की सूचना मिलते ही मंदिर सेवा दल द्वारा सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए और एक संदिग्ध व्यक्ति को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया गया। हालांकि अभी तक उसकी संलिप्तता की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन पुलिस जांच में उसे गंभीरता से लिया जा रहा है।

कैंट थाना प्रभारी केसी भट्ट ने पुष्टि की कि चोरी के संबंध में एफआईआर दर्ज कर ली गई है और मंदिर समिति द्वारा पकड़े गए व्यक्ति से पूछताछ की जा रही है। पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एक विशेष जांच टीम गठित की है, जो न केवल चोर की पहचान और गिरफ्तारी में जुटी है, बल्कि चांदी के नाग की बरामदगी के प्रयास भी कर रही है। पुलिस का कहना है कि उनकी प्राथमिकता है कि भगवान शिव के मस्तक से जो प्रतीक चुराया गया है, उसे यथाशीघ्र पुनः प्रतिष्ठित किया जाए ताकि श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस न पहुंचे।

टपकेश्वर महादेव मंदिर केवल देहरादून ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में गिना जाता है। इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यंत व्यापक है। माना जाता है कि यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और लगभग 6000 वर्ष पुराना है। यह मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है जिसे द्रोण गुफा कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के काल में कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने इसी गुफा में तपस्या की थी।

इस गुफा और मंदिर से जुड़ी एक और अत्यंत प्रसिद्ध कथा के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा जब बचपन में दूध के लिए रो रहा था, तब द्रोणाचार्य की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गुफा की छत से दूध की धारा प्रवाहित की थी। इसी कारण इस स्थान को पहले ‘दूधेश्वर महादेव’ के नाम से भी जाना जाता था। समय के साथ, कलियुग में यह दूध की धारा जल में परिवर्तित हो गई, जो आज भी प्राकृतिक रूप से चट्टान से बूंद-बूंद गिरती है और शिवलिंग पर निरंतर जलाभिषेक करती है। इस विशेष प्राकृतिक जलधारा के कारण ही इस स्थान को ‘टपकेश्वर’ नाम प्राप्त हुआ, जो आज इसकी पहचान बन चुकी है।

हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं, विशेषकर महाशिवरात्रि और श्रावण मास में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। ऐसे में मंदिर में हुई यह चोरी सिर्फ एक सुरक्षा चूक नहीं मानी जा रही, बल्कि लोगों की धार्मिक भावनाओं पर भी यह एक गहरा आघात है।

स्थानीय जनता और मंदिर सेवा दल ने प्रशासन से अपील की है कि इस मामले को सर्वोच्च प्राथमिकता पर लेकर शीघ्र न्याय दिलाया जाए और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए सुरक्षा प्रबंधन को भी और अधिक मजबूत किया जाए। पुलिस ने भरोसा दिलाया है कि चोर की पहचान कर उसे जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा और चांदी का नाग पुनः भगवान शिव के मस्तक पर प्रतिष्ठित किया जाएगा। फिलहाल मंदिर में भक्तों का आना-जाना जारी है, लेकिन वातावरण में एक अनकही पीड़ा और श्रद्धा की सुरक्षा को लेकर चिंता स्पष्ट देखी जा सकती है।

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