बैंक घोटाले में पूर्व शाखा प्रबंधक समेत 6 दोषी, कोर्ट ने सुनाई सजा
देहरादून: सीबीआई की विशेष अदालत ने उत्तराखंड ग्रामीण बैंक में 1.23 करोड़ रुपये की हेराफेरी के एक बेहद पुराने मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। यह मामला करीब 15 साल पुराना है, जिसमें अदालत ने छह आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई। इनमें बैंक के तत्कालीन शाखा प्रबंधक लक्ष्मण सिंह रावत प्रमुख आरोपी हैं, जिन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दो साल की सजा और 15 हजार रुपये का जुर्माना भुगतना होगा। शेष पांच आरोपियों को एक-एक साल की सजा के साथ 10-10 हजार रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया गया है। यह फैसला सोमवार को सुनाया गया और इसे बैंकिंग सेक्टर में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
इस मामले की शुरुआत उत्तराखंड ग्रामीण बैंक के सतर्कता विभाग की एक शिकायत से हुई थी, जिसके आधार पर सीबीआई की देहरादून शाखा ने 24 फरवरी 2010 को मामला दर्ज किया था। शिकायत में कहा गया था कि बैंक की प्रेमनगर शाखा के तत्कालीन प्रबंधक लक्ष्मण सिंह रावत ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कुछ बाहरी व्यक्तियों की मिलीभगत से बैंक के साथ धोखाधड़ी की योजना बनाई और उसे अंजाम भी दिया। आरोपों के अनुसार, रावत ने 16 दिसंबर 2009 को ऑडिट से ठीक एक दिन पहले 1.23 करोड़ रुपये की राशि विभिन्न अभियुक्तों के फर्जी ऋण खातों में ट्रांसफर कर दी थी, ताकि बैंक के रिकॉर्ड में गड़बड़ी छिपाई जा सके और ऑडिट में कोई आपत्ति न आए।
इस रकम का हस्तांतरण सुनियोजित तरीके से किया गया था और इसके लिए जाली दस्तावेजों का सहारा लिया गया। ऑडिट से पहले इतनी बड़ी रकम का हस्तांतरण एक रणनीतिक चाल थी, जिससे बैंक की आंतरिक जांच से धोखाधड़ी को छिपाया जा सके। लेकिन बाद में जब मामला संज्ञान में आया, तो इसकी शिकायत सीबीआई तक पहुंची और जांच शुरू हुई। जांच के बाद सीबीआई ने एक अप्रैल 2011 को इस मामले में चार्जशीट दाखिल की थी।
अदालत में इस मामले की सुनवाई लंबी चली। दो नवंबर 2012 को सभी अभियुक्तों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। इसके बाद अभियोजन पक्ष ने अदालत में 26 गवाहों के बयान दर्ज करवाए, जिनके माध्यम से उन्होंने आरोपों को सिद्ध करने की कोशिश की। वहीं बचाव पक्ष की ओर से भी पांच गवाह पेश किए गए, लेकिन उनकी गवाही अभियुक्तों को राहत दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं रही।
अदालत ने गवाहों के बयान, दस्तावेजी साक्ष्य और सीबीआई की जांच रिपोर्ट के आधार पर छहों आरोपियों को दोषी ठहराया। लक्ष्मण सिंह रावत को भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र), 420 (धोखाधड़ी), 468 (जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी पाया गया।
अन्य पांच अभियुक्तों – माखन सिंह नेगी, कलाम सिंह नेगी, संजय कुमार, आरसी आर्य और मीना आर्य को भी इन्हीं धाराओं के तहत सजा सुनाई गई। उन्हें एक-एक साल की कैद और 10-10 हजार रुपये का आर्थिक दंड भुगतने का आदेश दिया गया।
यह फैसला एक ऐसे समय में आया है जब देशभर में सरकारी और बैंकिंग संस्थाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर लोगों की अपेक्षाएं बढ़ी हैं। अदालत का यह निर्णय यह दर्शाता है कि आर्थिक अपराधों और भ्रष्टाचार के मामलों में कानून अपना काम करता है, चाहे मामला कितना भी पुराना क्यों न हो। इस केस ने यह भी दिखाया कि बैंकिंग संस्थानों में कार्यरत अधिकारियों द्वारा की गई अनियमितताएं लंबे समय बाद भी सजा तक पहुंच सकती हैं। इससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि ऐसे मामलों में आगे भी सख्ती बरती जाएगी और दोषियों को उनके अपराधों के लिए जवाबदेह बनाया जाएगा।
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