उत्तराखण्ड आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत इंद्रमणि बड़ोनी
स्वतंत्रता संग्राम और उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के इतिहास में यदि किसी एक व्यक्तित्व को गांधी जी की तरह जनता के बीच उनके सादे जीवन, अहिंसक आंदोलन, सत्यनिष्ठा और जनता की आवाज़ बनने के लिए याद किया जाता है तो वे हैं इंद्रमणि बड़ोनी। उन्हें उत्तराखण्ड का गांधी कहा जाता है। उनका जीवन साधारण जरूर था लेकिन संघर्ष असाधारण। पहाड़ की आवाज़ को देश की संसद तक पहुँचाने वाले इस महान नेता ने अपना पूरा जीवन उत्तराखण्ड की अस्मिता, संस्कृति और स्वाभिमान के लिए समर्पित कर दिया।
इंद्रमणि बड़ोनी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को टिहरी गढ़वाल जिले के अखोड़ी गाँव में हुआ। बचपन से ही वे प्रकृति, लोक संस्कृति और जनजीवन से गहराई से जुड़े थे। यही कारण था कि आगे चलकर वे उत्तराखण्ड के लोक संस्कृति पुरुष के रूप में पहचाने गए। उन्होंने उत्तराखण्डी लोकगीत, लोकनृत्य और परंपराओं को न केवल संरक्षित किया बल्कि उनके माध्यम से जनता को एकजुट कर आंदोलन की ताकत दी। वे कला और संस्कृति को समाज के उत्थान का माध्यम मानते थे और इसे आंदोलन का स्वरूप देने में सफल भी हुए।
राजनीतिक जीवन में इंद्रमणि बड़ोनी ने जनप्रतिनिधि रहते हुए उत्तराखण्ड को अलग राज्य बनाने की माँग को सबसे पहले स्पष्ट और मुखर रूप से रखा। 1967 में जब वे उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने, तब उन्होंने अलग पहाड़ी राज्य की आवश्यकता को उठाया। उनका मानना था कि मैदानों और पहाड़ों की समस्याएं अलग हैं और पहाड़ों की समस्याओं का समाधान तभी होगा जब यहाँ की जनता का अपना पृथक राज्य होगा। उस समय यह आवाज़ बहुतों को अव्यावहारिक लगी, लेकिन बड़ोनी का दूरदर्शी दृष्टिकोण समय के साथ सही साबित हुआ।
वे जननेता होने के साथ-साथ सच्चे समाजसेवी भी थे। सत्ता और पद की लालसा से दूर, बड़ोनी ने हमेशा जनहित को प्राथमिकता दी। उनका जीवन दर्शन सादगी, ईमानदारी और सत्य पर आधारित था। वे साधारण कपड़े पहनते थे और आम जनता की तरह जीवन व्यतीत करते थे। इसीलिए जनता ने उन्हें अपना नेता ही नहीं, बल्कि अपना "गांधी" मान लिया। उन्होंने विरोध और आंदोलन के हर दौर में अहिंसा और लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि रखा।
उत्तराखण्ड आंदोलन के दौर में जब बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर थे और राज्य की माँग बुलंद हो रही थी, तब इंद्रमणि बड़ोनी की छवि आंदोलनकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। उन्होंने आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाने का काम किया और हमेशा शांति, संयम और धैर्य की राह दिखाई। उनकी सोच थी कि उत्तराखण्ड का भविष्य तभी उज्ज्वल होगा जब यहाँ की संस्कृति, पर्यावरण और संसाधनों की रक्षा होगी और विकास का आधार स्थानीय आवश्यकताओं पर टिकेगा।
इंद्रमणि बड़ोनी ने अपने जीवन में सम्मान और पदों को महत्व नहीं दिया। उनका मानना था कि असली सम्मान जनता की सेवा और उनके अधिकारों की रक्षा में है। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन में भी ईमानदारी और पारदर्शिता की मिसाल कायम की। यही कारण है कि आज भी उन्हें याद करते हुए लोग कहते हैं कि वे सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन और विचारधारा का नाम थे।
उनका निधन 18 अगस्त 1999 को हुआ, लेकिन उनके सपनों का उत्तराखण्ड सिर्फ दो साल बाद 2000 में अस्तित्व में आया। दुर्भाग्य से वे अपने जीवनकाल में राज्य निर्माण होते हुए नहीं देख पाए, लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि यदि इंद्रमणि बड़ोनी जैसे दूरदर्शी और त्यागमयी नेता न होते तो उत्तराखण्ड राज्य की परिकल्पना साकार होने में और भी अधिक समय लग सकता था।
आज जब उत्तराखण्ड की जनता अपने राज्य के विकास और समस्याओं पर विचार करती है तो इंद्रमणि बड़ोनी की याद स्वाभाविक रूप से आती है। वे सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड की आत्मा के प्रतीक थे। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश है कि सादगी, सत्य, अहिंसा और जनसेवा ही सच्चे नेतृत्व की पहचान है। उत्तराखण्ड के गांधी इंद्रमणि बड़ोनी हमेशा प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।
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