निर्वाचक मंडल के गठन और तैयारी में जुटा चुनाव आयोग
नई दिल्ली: निर्वाचन आयोग ने उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर दी है। इस दिशा में सबसे पहला कदम निर्वाचक मंडल का गठन है, जिसमें संसद के दोनों सदनों — लोकसभा और राज्यसभा — के निर्वाचित और मनोनीत सदस्य शामिल होंगे। आयोग की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, गृह मंत्रालय ने मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की आधिकारिक सूचना आयोग को दे दी है, जिसके बाद संवैधानिक रूप से नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया तत्काल शुरू करना अनिवार्य हो जाता है।
धनखड़ ने अपने पाँच साल के कार्यकाल को पूरा किए बिना ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के साथ ही देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद रिक्त हो गया है। हालाँकि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश वर्तमान में उच्च सदन की कार्यवाही को सभापति के रूप में संभाल रहे हैं, लेकिन यह एक अस्थायी व्यवस्था है। उपराष्ट्रपति के रूप में धनखड़ का कार्यकाल अभी दो वर्ष और शेष था, लेकिन उनके उत्तराधिकारी को शेष कार्यकाल नहीं, बल्कि पूर्ण पाँच वर्ष का कार्यकाल प्राप्त होगा, जैसा कि संवैधानिक व्यवस्था में प्रावधान है।
चुनाव आयोग ने 23 जुलाई को जारी प्रेस नोट में स्पष्ट किया कि उपराष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर विभिन्न तैयारियाँ शुरू कर दी गई हैं। इन तैयारियों में निर्वाचक मंडल की सूची को अंतिम रूप देना, रिटर्निंग अधिकारियों की नियुक्ति, और चुनाव प्रक्रिया से संबंधित प्रशासनिक प्रबंध शामिल हैं। यह सभी गतिविधियाँ चुनाव कार्यक्रम घोषित किए जाने से पूर्व की जाती हैं ताकि चुनाव की पूरी प्रक्रिया समयबद्ध और पारदर्शी ढंग से संपन्न हो सके।
धनखड़ का इस्तीफा संसद के मानसून सत्र के पहले दिन की कार्यवाही की अध्यक्षता करने के कुछ ही घंटों बाद आया, जिससे राजनीतिक हलकों में हैरानी और कई तरह की अटकलें शुरू हो गईं। इससे पहले वह केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल और एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। उनके उपराष्ट्रपति पद से हटने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि विभिन्न राजनीतिक दल इस चुनाव में क्या रणनीति अपनाते हैं और कौन-से नाम उम्मीदवार के रूप में उभरकर सामने आते हैं।
इस पद के लिए चुनाव में केवल सांसद ही मतदान करते हैं, और यह मतदान गुप्त होता है। चुनाव आयोग जल्द ही तारीखों की औपचारिक घोषणा करेगा, जिसके बाद नामांकन दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जांच, मतदान और मतगणना की विस्तृत समय-सारणी सार्वजनिक की जाएगी। यह प्रक्रिया अगले कुछ हफ्तों में तेज़ी पकड़ने की उम्मीद है क्योंकि उच्च संवैधानिक पद को लंबे समय तक रिक्त नहीं रखा जा सकता। उपराष्ट्रपति का पद केवल प्रतिष्ठा का नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण संसदीय कार्यों के संचालन का भी केंद्र होता है, विशेषकर राज्यसभा में।
नए उपराष्ट्रपति के चयन के साथ राजनीतिक संतुलन, संसदीय कार्य संचालन की दिशा और सरकार की उच्च स्तर पर संवाद व्यवस्था की झलक भी मिलती है। ऐसे में यह चुनाव केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत भी बन जाता है।
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