बंशवाद के मोह से नहीं बच पा रही सियासत,अजित चौधरी की सियासी विरासत संभालेंगे जयंत चौधरी

 

 



लखनऊ / मृत्युलोक में कुछ भी स्थायी नहीं है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नर-नारी सबका अंत तय है, लेकिन कुछ लोग अपने किए गए कार्यो से मरने के बाद भी अमर रहते हैं। इसमें  नेतानगरी, फिल्मी दुनिया, व्यापार, रोजगार, वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर तमाम क्षेत्रों के लोग शामिल हैं, जिन्होंने अपने साथ-साथ देश का भी मान सम्मान बढ़ाने मे भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसमें से कई अभी जिंदा है तो तमाम ऐसे भी हैं जो अब हमारे बीच नहीं हैं। क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी सब कुछ बदलता रहता है। कुदरत के इसी खेल के चलते कई राजा फकीर हो जाते हैं तो कई फकीरों के सिर पर ‘ताज’ सज जाता है। ऐसे लोग बिरले होते हैं जो आमजन के दिलोदिमाग पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम जनमानस के लिए ऐसे लोग हमेशा अमर रहते हैं। इसी लिए तो कभी कोई दूसरा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, धीरूभाई अंबानी, टाटा-बिरला, अब्दुल कलाम, अमिताभ बच्चन, किशोर कुमार, मुकेश, मो. रफी, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर आदि नहीं पैदा होता है। इन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। यह लोग जननायक होते हैं तो इनके नाम के सहारे इनकी कई पीढ़िया अपना जीवन संवारने और रोजी-रोटी कमाने में कामयाब रहती है। खासकर राजनीति में यह परम्परा कुछ ज्यादा ही देखने को मिलती है। पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर जम्मू कश्मीर का अब्दुला परिवार, उत्तर प्रदेश का मुलायम सिंह यादव, बिहार का लालू यादव, राम विलास पासवान तमिलनाडु में करूणानिधि आदि तमाम नेताओं का परिवार इसकी जिंदा मिसाल हैं। जिन्होंने अपने बाप-दादा के नाम का फायदा उठाकर सियासत में वो मुकाम हासिल कर लिया, जिसको पाने के लिए आम आदमी की पूरी जिंदगी गुजर जाती है, तब भी उनमें से कई को अपनी मंजिल नसीब नहीं होती है, जबकि देश या समाज सेवा के लिए किए गए इनके कार्य नहीं के बराबर होते हैं। कांग्रेस का इंदिरा परिवार तो इससे भी कई कदम आगे निकला उसने तो बड़े ही शातिराना तरीके से अपने साथ ‘गांधी’ का ही टाइटिल जोड़ लिया। इसके पीछे की इस परिवार की मंशा सिर्फ महात्मा गांधी के नाम को भुनाना ही था, जिसमें यह सफल भी रहा। इस कड़ी में अब एक नया नाम राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख नेता और चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी का जुड़ने जा रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र और किसानों के मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण के पौत्र जयंत चौधरी 18 मई से पार्टी की कमान संभालने जा रहे हैं। चौधरी परिवार की विरासत के नये अधिकारी जयंत चौधरी के लिए रालोद का अध्यक्ष बन जाना भले ही आसान हो लेकिन पार्टी का जनाधार बढ़ाने की बड़ी चुनौती से निपटना उनके लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि पिछले कुछ वर्षो में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत का रंग काफी बदल गया है। अब यहां जाट राजनीति के कई सिरमौर हौ गए हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों और एक विधान सभा चुनाव के नतीजों के आधार पर कहा जाए तो पश्चिमी यूपी में आज की तारीख में भाजपा का ‘सिक्का चलता है। भाजपा का दबदबा है, जबकि इससे पहले के चुनावों में सपा-बसपा यहां अपनी ताकत दिखा चुके थे, चौधरी अजित सिंह यहां कभी इस स्थिति में नहीं रहे कि बिना किसी दल के समर्थन के अपनी पार्टी की साख बचा पाते। इसलिए जयंत के लिए भी चुनौती कम नहीं है। फिर अबकी पीढ़ी ने चौधरी चरण सिंह का नाम जरूर सुन रखा है, परंतु देश के लिए चरण सिंह के योगदान की जानकारी कम लोगों के पास ही है।

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