उत्तराखंड में 10 साल में करंट लगने से 35 हाथियों और 8 गुलदारों की गई जान


उत्तराखंड में पिछले दस साल में करंट लगने से 35 हाथी और 8 गुलदारों की जान चली गई। वन्यजीवों से खेती को बचाने के लिए लोगों ने करंट वाली तारें खेतों में लगाई थीं, जिनसे ये हादसे हुए। वाइल्ड लाइफ प्रोटक्शन सोसाइटी आफ इंडिया की रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आया है। सोसाइटी ने वन्यजीव सप्ताह के समापन पर रिपोर्ट जारी की।


सोसाइटी के कार्यकारी अधिकारी जोजेफ टीटो ने बताया कि देश भर के कई राज्यों में करंट से वन्यजीवों की मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में सोसाइटी की ओर से सभी राज्यों में इसकी रिपोर्ट तैयार की गई। इसमें ये सामने आया कि उत्तराखंड में 2010 से अब तक 35 हाथी और 8 गुलदार मारे गए। जिसकी सबसे बड़ी वजह हाइटेंशन लाइनों को वक्त के साथ ढीला होना है।


इसके चलते हाथी अक्सर ऐसी लाइनों की चपेट में आ जाते हैं। इसके अलावा लोग खेती को वन्यजीवों से बचाने के लिए तारबाड़ों में रात को करंट छोड़ दिया करते हैं। इससे गुलदार, सुअर और बंदर आदि करंट की चपेट में आ जाते हैं। इससे आठ गुलदारों की मौत हुई, जबकि बड़ी संख्या में बंदर और अन्य जानवरों ने भी जान गंवाई। कई जानवर अपंग हो गए।


टीटो के अनुसार रिपोर्ट के साथ राज्यों को इससे बचाव के सुझाव भी दिए गए हैं, ताकि ऐसे हादसे रोके जा सकें। टीटो के अनुसार सबसे ज्यादा हादसे हरिद्वार और नैनीताल जिले में हुए। 


जंगली जानवरों की मौत का मुख्य कारण है कि करीब दो साल में हाईटेंशन लाइनें ढीली होकर झूलने लगती हैं। इसके लिए ऊर्जा निगम को लिखा गया है कि वे समय समय पर लाइनें टाइट करें। जो खेतों में करंट लगाते हैं उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाते हैं। इसे लेकर सभी जगह ज्यादा सतर्कता बरतने को भी कहा गया है। 
जेएस सुहाग, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन  


Source:Hindustan samachar


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