प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रशासन की नाक के नीचे सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा


उत्खनित यज्ञ वेदिका के प्रतिबंधित क्षेत्र के अंतर्गत निर्माणाधीन सड़क के किनारे सरकारी जमीन पर दुकानों का अवैध निर्माण। काफी समय से चल रहा रहा है निर्माण कार्य।


पनघट,मरघट के रास्तों में भी हो रहा है अवैध निर्माण।


नीरज उत्तराखंडी/पुरोला


पुरोला नगर क्षेत्र में प्रशासन के नाक के नीचे आये दिन सड़कों के किनारे व सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा कर निर्माण कार्य चल रहा है। अतिक्रमणकारियों के हौसले इस कदर बुलन्द हैं कि पिछले कुछ दिनों पूर्व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के ठीक पीछे देवढूंग, छिबाला, कोटी, मोलटाड़ी आदि दर्जनों गांवों के मरघट के रास्ते पर अतिक्रमण कर तारबाड़ लगा कर रास्ता बंद कर दिया। जिस पर आक्रोशित ग्रामीणों ने उपजिलाधिकारी से नाराजगी जताते हुए रास्ता खुलवाने की मांग की थी, लेकिन अभी तक रास्ते में हुए अतिक्रमण पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।


वहीं अब रामासिराईं के कमल नदी के किनारे निर्माणाधीन पुरोला भदराली, मोलटाड़ी, कुमारकोट, पोरा आदि गांवों को जाने वाली सड़क के किनारे 5 नाली से भी अधिक गोघट, पनघट,चरान चुगान की सरकारी जमीन, जो कि उत्खनित यज्ञ वेदिका के प्रतिबंधित क्षेत्र के अंतर्गत है, अवैध कब्जा कर दर्जनभर दुकानों का निर्माण कार्य शुरु कर दिया। प्रशासन के हाथ-पांव तब फूल गए, जब देवढूंग के ग्रामीणों ने निर्माण कार्य की सूचना उपजिलाधिकारी सोहन सिंह सैनी को दी।



देवढूंग के ग्राम प्रधान बनिता देवी, सुनील कुमार, प्रकाश चुनार, प्रेम सिंह, किसन चुनार, हरि प्रसाद नौटियाल, रोहित कुमार, अतोल सिंह आदि लोगों ने उपजिलाधिकारी सोहन सिंह सैनी को ज्ञापन दिया। आक्रोशित ग्रामीणों ने कहा कि ऐतिहासिक यज्ञ वेदिका के नजदीक प्रतिबंधित क्षेत्र में रातों-रात 12 दुकानों का निर्माण कार्य कर ग्रामीणों के चरान चूँगान, पनघट, मरघट के रास्तों को बंद किया गया है। यदि तत्काल अवैध निर्माण को नहीं हटाया गया तो ग्रामीणों को उग्र आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ेगा।


उपजिलाधिकारी सोहन सिंह सैनी ने कहा कि ग्रामीणों ने अतिक्रमण की सूचना दी। जिस पर तहसीलदार चमन सिंह को राजस्व टीम के साथ मौके पर भेज दिया गया है तथा अवैध निर्माण को ध्वस्त कर अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं। स्थानीय प्रशासन अतिक्रमण का संज्ञान लेकर ध्वस्तीकरण की कार्ययवाही शुरू की जा रही है।


Source :Mukhyadhara


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