क्यों करना चाहती है ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड का निगमीकरणकेंद्र सरकार


ओएफबी की स्थापना 1979 में की गई थी। इसके तहत फिलहाल 41 फैक्ट्रियां हैं और इनमें करीब 80 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं।इस बोर्ड का निगमीकरण केंद्र सरकार इसलिए करना चाहती है कि यहां निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं।



 


आयुध फैक्ट्री बोर्ड (OFB) के निगमीकरण को लेकर चर्चा काफी तेज है। रक्षा उत्पादन विभाग के तहत काम करने वाले इस बोर्ड का निगमीकरण केंद्र सरकार इसलिए करना चाहती है कि यहां निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। ओएफबी की स्थापना 1979 में की गई थी। इसके तहत फिलहाल 41 फैक्ट्रियां हैं और इनमें करीब 80 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं। यहां से सेना को गोलाबारूद से लेकर वर्दी और जूते तक की सप्लाई की जाती है, लेकिन बीतते वक्त के साथ इनकी गुणवत्ता गिरती गई और इससे कई जवानों की जान भी चली गई। 







मित्र देशों ने भी किया इनकार


यह चिंता का विषय है कि कुछ देशों ने उत्पादन की गुणवत्ता, फैक्ट्री प्रोसीजर और सेल्स के बाद सर्विस चिंताओं के कारण ऑर्डिनेंस फैक्ट्री-निर्मित गोला-बारूद और उपकरणों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।


 


खराब गुणवत्ता का उत्पादन 



जवाबदेही की कमी और उत्पादन की गुणवत्ता खराब होने की वजह से लगातार दुर्घटनाओं होती है। जिसकी वजह से सैनिकों घायल होते हैं और मौतें होती हैं। 


एयर डिफेंस से इंफेंट्री तक हादसे


ओएफबी निर्मित गोला बारूद और आयुध के कारण हताहतों की संख्या



औसतन हर हफ्ते एक हादसा हुआ। 2020 में अबतक 13 हादसे



  • 2016 में महाराष्ट्र के पुलगांव स्थित सेंट्रल एम्युनेशन डिपो में हुए हादसे में 19 लोगों की मौत हो गई थी।   


 


खराब गुणवत्ता उत्पादन के कारण सरकारी खजाने को नुकसान




  • अप्रैल 2014 से अप्रैल 2019 के बीच सेल्फ लाइफ के भीतर 658.58 करोड़ रुपये का निस्तारण हुआ।

  • ओएफबी के रसायनों की क्वालिटी व मिक्सिंग सही न होने से तय समय से पहले ही खराब हो गया 960 करोड़ का गोला-बारूद।

  • रिपोर्ट में जिन आयुध पर सवाल उठाया गया है उनमें 25 मिमी. एयर डिफेंस शेल्स, आर्टिलरी शेल्स और 125 मिमी. टैंक शेल्स के साथ ही इंफेंट्री की असॉल्ट राइफल्स में इस्तेमाल होने वाली बुलेट्स भी हैं। 


आयुध कारखानों में उपलब्ध तकनीक हो चुकी है पुरानी


 वर्ष 2000 में टीकेए नायर कमेटी ने ओएफबी के निगमीकरण का सुझाव दिया और कहा कि इसका नाम आयुध फैक्ट्री कॉरपोरेशन लिमिटेड किया जा सकता है। वर्ष 2004 में विजय केलकर कमेटी ने पाया कि आयुध कारखानों में उपलब्ध तकनीक पुरानी हो चुकी है और नई तकनीक तक इनकी पहुंच नहीं है। इस कारण यह अपने मुख्य उपभोक्ता यानी सेना की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए, कमेटी ने सभी आयुध कारखानों को एक ही निगम के तहत निगमित करने का सुझाव दिया। वर्ष 2015 में रमन पुरी कमेटी ने पाया कि ओएफबी के वर्तमान कामकाज को बदलना जरूरी है क्योंकि यह आधुनिक तरीकों के साथ सामंजस्य बिठाने में अक्षम है। इसलिए, समिति ने ओएफबी को तीन या चार भागों में विभाजित करने और इन्हें रक्षा मंत्रालय के सरकारी उपक्रम (DPSU) के रूप में परिवर्तित करने की सिफारिश की। एक साल बाद 2016 में शेखतकर कमेटी ने भी रक्षा मंत्रालय और रक्षा बलों की व्यापक समीक्षा की और ओएफबी के निगमीकरण की सिफारिश की।


निगमीकरण के फायदे



बेहतर दक्षता- ओएफबी के निगमीकरण के फलस्वरूप कामकाज और गतिशील निर्णय लेने में अधिक स्वायत्तता के साथ इसके कामकाज के बेहतर प्रबंधन की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप कारखानों द्वारा समय पर डिलीवरी और बेहतर गुणवत्ता की आपूर्ति होती है।


मूल्य निर्धारण- वर्तमान में, कीमतों को तय करने के लिए ओएफबी द्वारा एक लागत प्लस तंत्र का पालन किया जाता है। इस प्रणाली में आकस्मिकता के लिए अधिकतम अनुमानित लागत प्लस 20 प्रतिशत लेकर मूल्य तय किया जाता है, जिसे अगले वर्ष 8 से 15 प्रतिशत बढ़ा दिया जाता है। इसने कैग के साथ अधिक मूल्य निर्धारण को भी इंगित किया कि कुछ मामलों में ओएफबी उपकरणों के आयात मूल्य से भी अधिक शुल्क ले रहा है। यह परिकल्पना की गई है कि कॉरपोरेटीकरण से कम और प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण होगा, क्योंकि ओएफबी रक्षा उद्योग में निजी खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा।


वित्तीय स्वतंत्रता- ओएफबी को फंडिंग के लिए सरकार पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा क्योंकि यह अन्य माध्यमों से फंड उत्पन्न करने में सक्षम होगा। जैसे कि अन्य डीपीएसयू के समान स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया जाना। जिससे वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने में सक्षम होने के साथ ही धन का उपयोग आधुनिकीकरण, आर एंड डी और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए कुशलतापूर्वक किया जा सकता है।





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