व्यंग्य के नाम पर स्तरहीन हास्य अथवा फूहड़ रचनाओं के सृजन से बचें !

आलेख


विनोद कुमार विक्की


व्यंग्य अर्थात व्यंजना वर्तमान साहित्य क्षेत्र की सबसे लोकप्रिय विधा है।वैसे साहित्यिक कसौटी पर व्यंग्य विधा की प्रमाणिकता एवं व्यंग्य का अस्तित्व विवादास्पद रहा है लेकिन इस सच से इंंकार नहीं किया जा सकता है कि इन दिनों व्यंग्य साहित्य, लेेेेखक एवं पाठक दोनों वर्गो की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं पसंदीदा विधा बन चुकी है।इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि लेखन की सभी विधाओं में व्यंग्य का तथा कवि,कथाकार,गजलगो,शायर आदि कलमकारों में व्यंग्यकार का क्रेज़ ज्यादा चलन में है।


वर्तमान में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं यथा अट्टहास,व्यंग्य यात्रा,रंग चकल्लस,व्यंग्योदय,हास्यम व्यंग्यम आदि व्यंग्य साहित्य संवर्धन में महती भूमिका निभा रही है तो व्यंग्य विशेषांक के द्वारा मरू नवकिरण,सृजनकुंज अट्टहास,अनवरत, शोधदिशा,पर्तो की पड़ताल,आलोक पर्व,सत्य की मशाल,निभा आदि कई पत्रिकाओं ने उम्दा रचनाओं के माध्यम से नवोदित एवं युवा व्यंग्यकारों को साहित्य पटल पर लाने का सराहनीय प्रयास भी किया है। 


अब तो आलम यह है कि साहित्यिक पत्रिकाओं के अलावा दैनिक समाचार पत्र से समाचार पत्रिका तक ने भी अपने नियमित प्रकाशन में व्यंग्य स्तम्भ को स्थान एवं सम्मान देना प्रारंभ कर दिया है। परिणामतः व्यंग्यकार बनने की उत्कट इच्छा ने नवोदित एवं युवा रचनाकारों को व्यंग्य लेखन केे प्रति आकर्षित किया है।तंज,कटाक्ष एवं तीक्ष्ण लेखन के दम पर निर्विवाद रूप से कई युवा साहित्यकार व्यंग्यकार की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं तो कई जद्दोजहद में हैं!


इस संदर्भ में कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन पर व्यंग्यकार बनने की चाह रखने वाले हमारे नवोदित एवं युवा साहित्यकार मित्रों को ध्यान देना आवश्यक है।


■हरिशंकर परसाई,शरद जोशी,श्रीलाल शुक्ल आदि सहित वर्तमान वरिष्ठ व्यंग्यकारों की कालजयी व्यंग्य साहित्य को पढ़ें एवं समझें!समसामयिक विषयवस्तु पर व्यंग्य लिखने से बचें क्योंकि ये अल्पकालिक प्रभाव वाली होती हैं। ऐसी व्यंग्य रचनाओं का सृजन करें जिनका प्रभाव दीर्घकालिक हो!


■वरिष्ठ व्यंग्यकारों का सम्मान करें उनसे सलाह एवं मार्गदर्शन लें किन्तु चापलूसी और अतिशय भक्ति से बचें अन्यथा संबंधित वरिष्ठ के प्रभावित या सिफारिशी क्षेत्र तक ही आप,आप की मानसिकता और रचनाएँ सिमट कर रह जाएंगी।  


■वर्तमान परिदृश्य में व्यंग्य गुरु,मठाधीश,व्यंग्य मौलाना,व्यंग्य पादरी आदि के चरण-वंदन,सिजदा,आरती,बंदगी से खुद को तटस्थ रखते हुए गुटबाजी से बचना एक बहुत बड़ी चुनौती है। आपकी रचना पूर्वाग्रह से रहित निष्पक्ष हो ये आवश्यक है।सृजन ऐसा हो कि आप किसी खास लेख़क मठ या पंथ के व्यंग्यकार बनने की बजाय अपनी व्यंग्य रचनाओं के प्रभाव से स्वयं की पहचान निष्पक्ष व्यंग्यकार के रूप में पाठक समुदाय में स्थापित कर सकें !


■स्तरहीन पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य प्रकाशन एवं सोशल मीडिया में उनके प्रदर्शन के मोह से बचें!हमेशा उम्दा लिखें स्तरीय पत्र-पत्रिकाएं हमेशा स्तरीय रचनाओं को ही प्राथमिकता देती है।दिखने और छपने के लिए नहीं बल्कि पाठकों के मन मस्तिष्क में छाप छोड़ने के लिए लिखिए।व्यंग्य केन्द्रित पत्रिकाओं के लिए रचनाएँ लिखना व्यंग्य को सीखने और लिखने का शशक्त माध्यम हो सकता है।पत्र-पत्रिकाओं के अलावा आन-लाइन मैगजीन, सोशल मीडिया या ब्लाग पर भी आप अपनी रचनाओं से पाठकों को प्रभावित कर सकते हैं।


 ■छपास और लिखमेनिया जैसे लेखन के "कै-दस्त" वाले महामारी के संक्रमण से स्वयं को बचाना होगा अर्थात हर दिन हर घंटा थोक में व्यंग्य लिखने की बजाय समय देकर प्रभावशाली एवं उत्कृष्ट व्यंग्य सृजन का उद्देश्य निर्धारित करना होगा।अल्पकालिक सृजन की बजाय दीर्घावधि वाली रचनाओं के सृजन पर फोकस करें ताकि देर से ही सही किन्तु उम्दा रचनाएं पाठकों तक पहुंच सकें!


■ गैर प्रमाणिक साहित्य संस्थानों द्वारा आयोजित होने वाले फेसबुक या व्हाटसएप समूह पर दैनिक संचालित होने वाले निर्धारित विषयों पर आॅनलाइन व्यंग्य/आलेख/साहित्य आदि लिखने की होड़ तथा डिजिटल सम्मान सर्टिफिकेट प्राप्त करने के माया मकड़जाल से बचने का प्रयास करें ।ऑनलाइन साहित्य प्रतियोगिता के होड़ में शामिल होने की बजाय संभव हो तो वरिष्ठ व्यंग्यकारों द्वारा आयोजित व्यंग्य गोष्ठी में शामिल होकर व्यंग्य को सीखने और समझने का प्रयास ज्यादा लाभदायक होगा।


व्यंग्य का दायरा व्यापक है।इसे तय समय सीमा या तय शब्द सीमा में अभिव्यक्त करना मानक व्यंग्य की कसौटी पर उत्तम सृजन का आधार नहीं माना जा सकता है। 


■सोशल मीडिया पर प्रेषित या प्रकाशित व्यंग्य आलेख पर मित्रों के आहा,वाह-वाह,नाइस,गुड आदि टिप्पणियों पर तथा बिना पढ़े कापी पेस्ट करने वाले दैनिक पत्र में रचना को व्यंग्य शीर्षक से प्रकाशित किए जाने पर तथा आपके नाम के साथ "लेखक व्यंग्यकार है" छपने पर उत्साहित होने की बजाय वरिष्ठ या मित्रों के द्वारा रचनाएँ पढ़ कर दिए जाने वाले सुुुझाव, प्रतिक्रिया एवं मार्गदर्शन पर ध्यान दें।


■वामपंथी एवं दक्षिणपंथी विचार धारा से प्रभावित होने की बजाय व्यंग्यपंथी विचार धारा को अपनाएं ताकि लेखन का उद्देश्य जन सारोकार से संबंधित हो एवं विषय विसंगतियों और विद्रूपताओं पर केंद्रित हो।सरकार की एकतरफा अंधभक्ति एवं एकतरफा अंधविरोध वाले लेखन तथा विचारों से आप किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता तो बन सकते हैं किन्तु स्वयं को कभी भी व्यंग्यकार साबित नहीं कर सकते हैं। 


■व्यंग्य रचना के नाम पर सस्ता हास्य अथवा फूहड़ रचनाओं के सृजन से बचें!फूहड़ता की बजाय तंज एवं मारक क्षमता वाली रचनाओं को तवज्जों दें!हास्य पुट के साथ व्यंग्य हो तो चलेगा किन्तु व्यंग्य के नाम पर फूहड़ हास्य को परोसना उचित नहीं।


■कभी-कभी रचनाओं पर कुछ आलोचक या लेखकों के नकारात्मक प्रतिक्रिया या टिप्पणी भी मिलेंगी उनसे निराश या घबराने की आवश्यकता नहीं है!अपनी कमियों को तलाशे और उनमें गुणात्मक सुधार लाने का प्रयास करें। थोक में लिखने की बजाय कम ही सही किन्तु उम्दा लिखें। समकालीन व्यंग्यकारों की रचनाओं को पढ़े और उनसे रचनात्मक सुधार हेतु सलाह एवं मार्गदर्शन भी ले सकते हैं।


 


 


■ सहयोग राशि आधृत साझा संकलन या विभिन्न प्रकाशनों के प्रलोभन वाली योजना के तहत राशि देकर पुस्तकों के प्रकाशन के लोक लुभावन झांसा से बचना भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।


 


 पुस्तक प्रकाशन की जल्दबाजी में प्रायः कुछेक उम्दा रचनाओं के साथ अधिकांश स्तरहीन रचनाओं के प्रकाशन की संभावना ज्यादा रहती है।


 


अतः हड़बड़ी या अति उत्साह में स्तरहीन पुस्तक प्रकाशित करवा लेना आपके लेखक या व्यंग्यकार के रूप में बन रहे पहचान को नाकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।सर्वप्रथम बेहतरीन सृजन पर ध्यान दें उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने दें।उन रचनाओं पर पाठकों एवं समीक्षकों की प्रतिक्रिया का आकलन करें। तत्पश्चात ही उन उम्दा संकलन को पुस्तक रूप देने पर विचार करें।  


■शर्तों पर व्यंग्य लेखन से बचें।किसी खास पत्र-पत्रिकाओं में छपने के लिए 200-300 शब्द सीमा वाले निर्देशों में व्यंग्य लेखन से एक ओर जहाँ आपकी मानसिकता एवं लेखनी के दायरे को संकुचित कर सकता है तो वहीं लंबी रचनाओं के सृृृृजन में व्यंग्य की मौलिकता क्षीण हो सकती है।अतः रचनाएँ दो सौ शब्दों की हो या दो पेज की कोई मायने नहीं रखता बस रचनाएँ ऐसी हो कि शुरू से अंत तक शब्दों की मारक क्षमता बनी रहे एवं लेखन उद्देश्यपूर्ण हो। 


■व्यंग्य के नाम पर राजनेता और राजनीति जैसी घिसी-पीटी विषयवस्तु वाली रचनाओं को बार बार व्यंग्य के रूप में परोसा जाना अथवा वर्तमान पाठकों के अभिरुचि के अनुरूप निष्पक्ष स्तरीय रचनाओं के सृजन का अभाव वर्तमान व्यंग्य साहित्य से पाठकों के विलगाव का कारण हो सकता है।


इसमे कोई संदेह नहीं कि समय के साथ साथ व्यंग्य पाठकों की रूचि बदली है तो निश्चय ही व्यंग्य का दायरा भी बढ़ा है।सोशल लाइफ से सोशल मीडिया तक राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक,सांस्कृतिक, न्यायिक,धार्मिक,तकनीकी आदि हर क्षेत्र में विसंगतियां एवं विद्रूपताओं की भरमार है।ये विषमताएं ही उत्कृष्ट व्यंग्य लेखन का प्रचूर राॅ मैटेरियल (कच्चा माल) है।  


अतः आप उन सभी क्षेत्रों अथवा समसामयिक विषयों पर अपने शब्दों से तंज एवं कटाक्ष से लबरेज़ रचनाओं का सृजन करें जो जन सामान्य के जीवन,उनके परिवेश,आचरण व दिनचर्या से सम्बद्ध रखता हो। 


Source Through E. Mail


 


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