मौत के ‘पिंजरे’ में छटपटाते 26 बेजुबान

 



कोटद्वार/  जिन वन्य जीवों की सुरक्षा को आमजन पर कई कानून थोप दिए गए उन्हें स्वयं जिम्मेदारों ने ही मौत के 'पिंजरे' में कैद किया हुआ है। कोटद्वार से 12 किमी दूर एतिहासिक कण्वाश्रम स्थित मालिनी मृग विहार की। यहां 'पिंजरे' में कैद 26 बेजुबानों को आए दिन जान बचाने के लिए गुलदार से जूझना पड़ता है। वन महकमे की ओर से अनाधिकृत रूप से संचालित इस मृग विहार में न तो मृगों की सुरक्षा को पुख्ता इंतजाम हैं, न उनके भोजन की कोई व्यवस्था ही। लैंसडौन वन प्रभाग की कोटद्वार रेंज में 12 हेक्टेयर भूमि पर फैले मृग विहार का उद्घाटन वर्ष 1954 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉण् संपूर्णानंद ने किया था। वर्ष 1958 में मृग विहार को कोटद्वार अंचल के वन्य जीव प्रतिपालक के सुपुर्द किया गया और बाद में यह कालागढ़ टाइगर रिजर्व के संरक्षण में आ गया। टाइगर रिजर्व की ओर से मृग विहार पर ध्यान न दिए जाने के कारण वर्ष 2011 में यह फिर लैंसडौन वन प्रभाग के अधीन आ गया। इस सबके बावजूद शासन स्तर से यहां मृगों के भरण.पोषण व सुरक्षा को कोई धनराशि नहीं दी जाती। वर्ष 2011.-12 में लैंसडौन वन प्रभाग ने मृग विहार को मिनी जू में तब्दील करने का प्रस्ताव जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया को भेजा। लेकिन उसने न सिर्फ प्रस्ताव को नकार दिया बल्कि यहां बिना अनुमति रखे गए मृगों को अन्यत्र शिफ्ट करने के निर्देश भी शासन को दे दिए। लैंसडौन वन प्रभाग के डीएफओ जीसी बेलवाल बताते हैं कि अब मृग विहार को रेस्क्यू सेंटर में तब्दील करने का प्रस्ताव सेंट्रल जू अथॉरिटी को भेजा गया है। इसे स्वीकृति का इंतजार है।मृग विहार खोलने से पूर्व इसके लिए जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया की अनुमति नहीं ली गई जिस कारण यह कहीं रिकॉर्ड में भी नहीं है। हालांकि, लैंसडौन वन प्रभाग विभिन्न मदों में मिलने वाली धनराशि से मृगों के भरण.पोषण व सुरक्षा का प्रबंध करता है। लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है। मृग विहार के चारों ओर लगी इलेक्ट्रिक फेंसिंग पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है। तारबाड़ भी कई जगह टूटी हुई है। जिससे आए दिन गुलदार यहां घुस जाता है। मार्च 2019 तक मृग विहार में 41 चीतल और नौ सांभर थे लेकिन अब मात्र 20 चीतल और छह सांभर रह गए हैं। मृगों को चारे के नाम पर पत्तियां दी जाती हैं जिसका प्रबंध मृग विहार में तैनात दैनिक श्रमिक करता है।


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