हाकम सिंह केस से उजागर हुई परीक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार की गंभीरता

 



 
(सलीम रज़ा पत्रकार)

देवभूमि उत्तराखण्ड में खनन,शिक्षा,शराब और नकल माफियाओं का बोलबाला है। सरकार चाहें कुछ भी कर ले लेकिन इनकी हिममत को दाद देनी चाहिए जैसे कि इन माफियाओं ने कसम खा ली हो कि हम सुधरने वाले नहीं हैं। जैसा कि आप सभी को मालूम ही हे कि सरेकारी भर्ती में नकल माफियाओं के पकड़ में आने की हालिया खबर ने तो मानो जैसे शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता और छात्रों के भविष्य को लेकर नए सवाल और नई बहस खड़ी कर दी है। जैसा कि आप सुन देख ही रहे हैं कि हाल ही में हाकम सिंह और उसके साथी पंकज गौड़ को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। यह वही लोग हैं जिन्होंने उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) की परीक्षाओं में अभ्यर्थियों से ₹12 से ₹15 लाख की रकम लेकर उन्हें पास कराने का झांसा दिया था। इस बात से तो ये साबित हो गया कि कि नकल माफिया अब केवल परीक्षा केंद्रों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि शिक्षा और राजनीति के कई स्तरों में उनकी अच्छी पैठ है।

अदना से आला बने हाकम सिंह की कहानी भी चौंकाने वाली है। उत्तरकाशी के मोरी इलाके का रहने वाला हाकम सिंह पहले एक सरकारी अधिकारी के घर रसोइया था। वहीं से उसने नकल माफियाओं के नेटवर्क से जुड़ना शुरू किया। धीरे-धीरे उसने अपनी राजीतिक गलियारों में पैठ बनाई नतीजतन वह राजनीतिक दया दृष्टि से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतकर अपने दबदबे को और मजबूत कर दिया। इस तरह के मामले यह दिखाते हैं कि नकल माफिया केवल छात्रों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि प्रशासन और राजनीतिक संबंधों का भी ये भरपूर लाभ उठाते हैं।

उत्तराखण्ड में नकल माफियाओं की बढ़ती सक्रियता देवभूमि की शिक्षा व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा है। इससे न केवल लायकवर छात्रों का हक छीना जाता है बल्कि भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता की संस्कृति को भी बढ़ावा मिलता है। नकल माफियाओं के कारण परीक्षा प्रणाली में विश्वास कम होता है और ईमानदार छात्रों का मनोबल टूटता है।

इस समस्या का समाधान बहुआयामी होना चाहिए। सबसे पहले, परीक्षा प्रणाली में ट्रांसपेरंसी और सुरक्षा बढ़ाना आवश्यक है। परीक्षा केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरे, मोबाइल जैमर, बायोमेट्रिक पहचान और स्वतंत्र पर्यवेक्षक तैनात करने जैसे तकनीकी उपाय अपनाए जा सकते हैं। इससे नकल करने के प्रयासों पर लगाम लगाई जा सकती है।

दूसरी ओर, कानूनी कार्रवाई में सख्ती लाना बहुत जरूरी है। केवल गिरफ्तारी और जुर्माने तक सीमित न रहकर दोषियों को लंबी जेल की सजा का प्रावधान भी होना चाहिए। इसके साथ ही, जो शिक्षक, अभिभावक या संस्थान नकल को बढ़ावा देते हैं, उन्हें भी दंडित करना चाहिए। यह संदेश देना बेहद जरूरी है कि नकल करने वाले और उसे सहारा देने वाले सभी जिम्मेदार होंगे।

तीसरा सबसे अहम है कि समाज में जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है। अभिभावकों और शिक्षकों को यह समझाना होगा कि नकल केवल शॉर्टकट है, और यह छात्रों के भविष्य के लिए घातक हो सकता है। स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा और एथिक्स के पाठ्यक्रम शामिल करने चाहिए। छात्र स्वयं नकल के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं और ईमानदारी को प्राथमिकता दें।

इसके अलावा, छात्राओं और छात्रों के लिए मॉक टेस्ट, ऑनलाइन अध्ययन सामग्री और मार्गदर्शन की सुविधाएं उपलब्ध कराना भी समाधान का हिस्सा है। जब छात्रों को सही समय पर अध्ययन सामग्री और मार्गदर्शन मिलेगा, तो नकल करने की आवश्यकता खुद-ब-खुद कम हो जाएगी।

ये कहना गलत नहीं होगा कि उत्तराखण्ड में नकल माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए सरकार, प्रशासन, शिक्षक और समाज सभी का सामूहिक प्रयास जरूरी है। केवल कानून बनाने या तकनीकी उपाय अपनाने से समस्या का समाधान नहीं होगा। सभी को मिलकर शिक्षा के प्रति सम्मान, ईमानदारी और नैतिकता को बढ़ावा देना होगा। यही उपाय न केवल नकल माफियाओं पर लगाम लगाएगा बल्कि उत्तराखण्ड के शिक्षा तंत्र को मजबूत, पारदर्शी और विश्वसनीय बनाएगा।

इस तरह के कदम उठाने से यह सुनिश्चित होगा कि उत्तराखण्ड के छात्र वास्तविक ज्ञान और मेहनत के बल पर आगे बढ़ें और राज्य में शिक्षा का स्तर उच्च और ईमानदार बना रहे।

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