देहरादून बना साइकिल-फ्रेंडली शहर का प्रतीक,हर उम्र के सवारों ने लिखी एक नई कहानी
देहरादून : आज का दिन साइकिलिंग के इतिहास में सुनहरे अक्षरों से दर्ज हो गया। शहर के प्रतिष्ठित घंटाघर से लेकर सिटी फ़ॉरेस्ट तक सैकड़ों साइकिल सवारों ने न केवल अपनी ऊर्जा और उत्साह का परिचय दिया, बल्कि समाज को स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामूहिक जिम्मेदारी का गहरा संदेश भी दिया।
इस विशेष राइड की शुरुआत बीटीडीटी के संस्थापक लोकेश ओहरी ने की, जिन्होंने दो सबसे छोटे राइडर्स के साथ हरी झंडी दिखाकर साइकिलिंग यात्रा का शुभारंभ किया। जैसे ही घंटाघर से साइकिलें रवाना हुईं, पूरे मार्ग पर एक अलग ही माहौल बन गया—नया उत्साह, उमंग और एकजुटता का नज़ारा देखने को मिला।
इस आयोजन की सबसे प्रेरणादायक झलक विश्व धीमान (72 वर्ष), देहरादून की साइकिल मेयर और उनके पति कमलजीत सिंह (76 वर्ष) रहे। दोनों पिछले 9-10 वर्षों से नियमित रूप से साइकिल चला रहे हैं और आज भी युवाओं के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं। उम्र की सीमाओं को पार करते हुए उन्होंने यह दिखा दिया कि साइकिलिंग केवल खेल या शौक नहीं, बल्कि जीवनशैली है।
इस राइड में देहरादून और आसपास के सभी प्रमुख साइकिलिंग ग्रुप्स ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। मैत्रेयी एडवेंचर क्लब, रोड स्पिन वॉरियर, पहाड़ी पैडलर्स, विकासनगर एथलेटिक्स कम्युनिटी, बाइक क्राफ्ट, अर्बन ट्रेल और अन्य कई ग्रुप्स के राइडर्स ने मिलकर सामूहिक ऊर्जा का शानदार प्रदर्शन किया। सभी उम्र के प्रतिभागियों ने इसमें भाग लेकर यह साबित कर दिया कि साइकिलिंग किसी एक वर्ग की नहीं, बल्कि पूरे समाज की धरोहर है।
राइड का समापन सिटी फ़ॉरेस्ट में हुआ, जहां प्रतिभागियों ने एक-दूसरे के अनुभव साझा किए और साइकिलिंग को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने का संकल्प लिया। आयोजन पूरी तरह से जिम्मेदारी, सहयोग और एकजुटता के साथ संपन्न हुआ, जो देहरादून की सामुदायिक संस्कृति का प्रतीक है।
इस राइड ने न केवल स्वास्थ्य और फिटनेस के महत्व को रेखांकित किया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण कम करने और सामूहिकता की भावना को भी मज़बूती से सामने रखा। यह आयोजन आने वाले समय में देहरादून को साइकिल-फ्रेंडली शहर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
पर्यावरण बचाना है तो आदतें बदलनी होंगी" – विश्व धीमान
देहरादून की साइकिल मेयर विश्व धीमान का मानना है कि साइकिल चलाना केवल स्वास्थ्य और फिटनेस का प्रतीक नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश है। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब वह कश्मीर से कन्याकुमारी की ऐतिहासिक साइकिल यात्रा पर निकलीं, तो रास्ते में अक्सर छोटे-छोटे जलपान स्थलों पर चाय या पानी कागज के गिलास में ही मिलता था। शुरुआत में उन्होंने भी इन्हीं का इस्तेमाल किया, लेकिन जल्द ही एहसास हुआ कि यदि साइकिलिंग जैसे अभियान में भी कचरा फैलाया जाए तो इसका असली मक़सद अधूरा रह जाएगा।
धीमान जी ने तुरंत निर्णय लिया कि अब से वह स्टील के गिलास ही साथ रखेंगी। यह न केवल एक व्यवहारिक उपाय था बल्कि पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदारी का भी प्रतीक। उनका कहना है –
"अगर हम खुद छोटी-छोटी चीज़ों में बदलाव नहीं करेंगे तो प्रदूषण कम करने की बातें सिर्फ़ भाषण बनकर रह जाएँगी।"
आज वह हर राइड और हर कार्यक्रम में अपने स्टील गिलास का उपयोग करती हैं और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करती हैं। उनका संदेश साफ़ है – “स्वच्छता और पर्यावरण सुरक्षा के लिए हमें अपनी आदतों में बदलाव करना ही होगा।”
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