कांवड़ यात्रा से पहले क्यूआर कोड को लेकर उठे सवाल, धार्मिक पहचान की आशंका गहराई

 


11 जुलाई से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा से पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने तीर्थयात्रियों की सुविधा और स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विशेष खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता अभियान की शुरुआत की है। इस बार सरकार ने तीर्थ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों, रेस्टोरेंट और दुकानों पर ‘फ़ूड सेफ्टी कनेक्ट’ मोबाइल ऐप से जुड़े क्यूआर कोड वाले स्टिकर लगाना अनिवार्य कर दिया है। इसके ज़रिए यात्रियों को पारदर्शिता, गुणवत्ता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि इस वर्ष यात्रा में चार करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है।

खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की विशेष सचिव एवं अपर आयुक्त रेखा एस. चौहान ने जानकारी दी कि राज्य के सभी कांवड़ मार्गों पर रेस्टोरेंट और दुकानों पर विशेष निगरानी रखी जा रही है। प्रत्येक रेस्टोरेंट से कहा गया है कि वे खाद्य सामग्री की रेट लिस्ट प्रमुखता से प्रदर्शित करें और स्वच्छता मानकों का कड़ाई से पालन करें। इसके साथ ही ढाबों, भोजनालयों और भंडारा आयोजकों को साफ-सफाई और गुणवत्तायुक्त भोजन सुनिश्चित करने के स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं।

हालाँकि, इस नए प्रयास पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी देखने को मिली है। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने सरकार की इस पहल पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या सरकार अब रोज़गार के अवसरों के लिए भी क्यूआर कोड लगाएगी? उन्होंने आरोप लगाया कि त्योहारों और धार्मिक आयोजनों के माध्यम से सरकार समाज में विभाजन और नफरत फैलाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि बेरोज़गारी जैसे गंभीर मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है।

हालांकि इस वर्ष अब तक धार्मिक पहचान या नाम-पत्रों को लेकर कोई नया निर्देश नहीं आया है, फिर भी मालिक के नाम और पंजीकरण से जुड़ा क्यूआर स्टिकर लोगों को जुलाई 2024 की उस घटना की याद दिला रहा है, जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने 240 किलोमीटर लंबे कांवड़ मार्ग पर दुकानदारों को अपना नाम और फ़ोन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित करने का निर्देश दिया था। उस आदेश को बाद में 9 जुलाई 2024 को पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया था।

उस समय कई लोगों ने इस आदेश की आलोचना की थी, इसे मुस्लिम दुकानदारों की पहचान उजागर करने का प्रयास बताया गया था। धार्मिक पहचान से जुड़ी घटनाओं ने उस दौरान जनमत को झकझोर दिया था, जिसमें एक घटना में एक स्वयंभू धार्मिक नेता की टीम ने एक रेस्टोरेंट कर्मचारी को अपना धर्म साबित करने के लिए कपड़े उतारने को मजबूर कर दिया था।

इस बार सरकार की ओर से भले ही धार्मिक पहचान के संदर्भ में कोई सीधा आदेश न हो, लेकिन डिजिटल स्टिकर की अनिवार्यता और पुराने विवादों की पृष्ठभूमि को देखते हुए यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है। सरकारी तंत्र इसे यात्रियों की सुविधा के लिए जरूरी कदम बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे सामाजिक विभाजन और धार्मिक पहचान को उभारने की रणनीति मान रहा है।

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