कारगिल दिवस: कहीं शिलापट गायब तो कहीं मिट गए निशान,देहरादून में शहादत की हो रही उपेक्षा

 


   आज कारगिल विजय दिवस (शौर्य दिवस) है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी देश की के लिए शहादत देने वालों की वीरता को नमन किया जाएगा, लेकिन इसकी शहादत की स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए जो शिलापट लगाए गए हैं और जिन सड़कों का नामकरण शहीदों के नाम पर किया गया है, उनकी हालत बदहाल है। कहीं शिलापट गायब हैं तो कहीं इनके निशान मिट गए हैं। शहादत की इस उपेक्षा पर न तो प्रदेश सरकार और न ही जिला प्रशासन की नजर पड़ रही है।दून के वीर सपूत मेजर विवेक गुप्ता, स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर, राइफल मैन विजय भंडारी, नायक मेख गुरंग, राइफल मैन जयदीप भंडारी, राइफलमैन नरपाल सिंह, सिपाही राजेश गुरंग, नायक हीरा सिंह, नायक कश्मीर सिंह, नायक देवेंद्र सिंह, लांस नायक शिवचरण सिंह आदि जवान कारगिल युद्ध में लोहा लेते वीरगति को प्राप्त हुए थे।तत्कालीन सरकार ने इनके नाम पर बल्लीवाला चौक, बल्लूपुर चौक, न्यू कैंट रोड, चांदमारी, तुनवाला चौक, श्यामपुर प्रेमनगर, तेलपुर, नेहरूग्राम, कैनाल रोड, चाय बागान सहित कईं स्थानों पर सड़कों का नामकरण शहीदों के नाम पर किया था। इन सड़कों को इंगित करने के लिए सड़क किनारे संगमरमर के शिलापट भी लगाए थे, लेकिन अब कई स्थानों पर शहीदों के नाम से लगाए गए यह शिलापट या तो गायब हैं, या बदहाल स्थिति में हैं। शिलापटों के आगे झाड़ियां उगी हुई हैं और इनके आगे कूड़ा फेंक कर सरेआम शहादत का अपमान किया जा रहा है। सड़कों का नामकरण तो जरुर शहीदों के नाम पर किया गया है, लेकिन शायद ही कोई ऐसी सड़क हो जो कारगिल शहीदों के नाम से जानी जाती हो। यहां तक कि सरकारी फाइलों में भी अभी तक सड़कों के पुराने नाम ही अंकित हैं। इसकी न तो सरकार और न ही जिला प्रशासन सुध लेने को तैयार है।


22 साल बाद भी फाइलों में कैद हैं सरकार के वादे


कारगिल युद्ध के शहीदों के परिजनों के लिए केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकार ने बड़े -बड़े वायदे किए थे। पूरे 22 साल गुजर चुके हैं, लेकिन राज्य सरकार की ओर से किए गए वादे अभी तक फाइलों में ही हैं।कारगिल शहीदों के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे केशर जन कल्याण समिति के अध्यक्ष एडवोकेट एनके गुसाईं ने कहा कि यह अफसोस जनक है कि जिन सीमाओं के प्रहरियों के बदौलत हम देशवासी चैन की नींद सोते हैं, उनकी शहादत के दो दशक बाद भी सरकारों ने उनके सम्मान में की गई घोषणाओं को धरातल पर नहीं उतारा है।

वादे जो रह गए अधूरे


- शहीद परिवार को शहरी क्षेत्र में मकान के लिए प्लॉट या ग्रामीण क्षेत्र में 5 बीघा कृषि भूमि जिलाधिकारियों द्वारा आवंटित करने
- शहीद के घर को जोड़ने वाले संपर्क मार्ग का नामकरण शहीद के नाम पर करना
- नजदीकी शिक्षण संस्था का नामकरण शहीद के नाम पर करना
- सैनिक अस्पताल के साथ ही सभी अस्पतालों में निशुल्क दवा और इलाज कराना
- शहीदों के आश्रितों को ग्रीन कार्ड पर उचित मान सम्मान देना
- निजी स्कूलों में शहीदों के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देना

Sources:AmarUjala

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