फुटपाथों पर ठिठुर रहे बेघर और रैन बसेरे खाली,कागजों में हो रही खानापूर्ति कोविड-19 नियमों का हो रहा पालन


अचानक ठंड बढ़ने से फुटपाथों पर जीवन यापन करने वाले बेघर लोगों की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं। नगर निगम और जिला प्रशासन ने अभी तक सार्वजनिक स्थानों पर अलाव जलाने की व्यवस्था शुरू नहीं है। ऐसे में बेघर फुटपाथों पर ठिठुरने को मजबूर हैं। रैन बसेरे तो बने हैं, लेकिन वहां रहने में कागजी खानापूर्ति और कोविड नियमों के मानक आड़े आ रहे हैं।


बाजारों, सरकारी दफ्तरों से लेकर राजनीतिक कार्यक्रमों में भले ही शारीरिक दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं, लेकिन रैन बसेरों में इन नियम का हवाला देकर सीमित लोगों को ही प्रवेश की अनुमति दी जा रही है।  रात कई फुटपाथ और रैन बसेरों पर पहुंचकर पड़ताल की तो हकीकत सामने आई। 


1- जगह - सिंहद्वार, समय रात दस बजे। पुल के दोनों तरफ फुटपाथ पर छह लोग ठंड से सिकुड़कर सो रहे थे। आवाज देने पर लड़खड़ाती जुबान से 50 साल के रमन ने कंबल हटाते हुए मुंह बाहर निकाला। रमन ने बताया कि वह बदायूं का मूल निवासी है। हरिद्वार में ही भीख मांगकर पेट भरता है। रमन की बात सुनकर उनके पास ही सोए अन्य व्यक्ति ने भी मुंह बाहर निकाला। ठंड की स्थिति के बारे में पूछने पर दोनों बोल पड़े कि गरीब सड़कों पर ही जिंदा रहते हैं और यही मर जाएंगे। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।



2- जगह - बिरला पुल, समय रात साढ़े दस बजे। घाट और पुल के पास फुटपाथ पर कई लोग सोए मिले। आवाज सुनकर फक्कड़ बाबा मदन राम उठा और बीड़ी सुलगाने लगा। मदन राम ने बताया कि रैन बसेरों में उनकी एंट्री नहीं है। पहचान पत्र मांगते हैं। आजकल कोरोना बीमारी का बहाना बनाकर अंदर घुसने तक नहीं देते हैं। मदन राम ने बताया कि पुल और घाट पर भीख मांगकर पेट भरने वाले खुले आसमान के नीचे रहते हैं।



3- जगह - रैन बसेरा हाथी वाला पुल, रात 11 बजे। केयर टेकर से अनुमति लेकर रैन बसेरे में अंदर पहुंचे। यहां दस लोग सोए थे। जबकि इसकी क्षमता 30 से अधिक लोगों के ठहरने की है। केयर टेकर अशोक ने बताया कि भिक्षा मांगने वाले रैन बसेरे में गंदगी फैलाते हैं। इसलिए प्रवेश नहीं देते हैं। कोरोना महामारी को देखते हुए नियमों का पालन किया जा रहा है।



नगर निगम 42 जगहों पर अलाव जलाता है। हर साल करीब छह सौ कुंतल लकड़ी खरीदी जाती है। अभी तक लकड़ी खरीदी नहीं गई है। तीन रैन बसेरे भी हैं। इनमें करीब 100 से अधिक लोगों के ठहरने की क्षमता है, लेकिन कोरोना काल में क्षमता आधी की गई है। सुरक्षा की दृष्टि से पहचानपत्र दिखाना अनिवार्य है। 



- विनोद कुमार, सहायक नगर आयुक्त


Sources:AmarUjala


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