राष्ट्रीय खेल दिवस : हिटलर को झुकाने वाले हॉकी सम्राट ध्यान चंद को 60 साल बाद मिला सम्मान


नई दिल्ली /  शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि 29 अगस्त को खेल दिवस के रूप में कैसे ध्यानचंद खेल दिवस का नाम दिया गया था। इसकी शुरूआत तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार ने 1994 में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित कर दिया। जिस पर बिना आपति के तत्कालीन खेल मंत्री मुकुल वासनिक ने कहा कि देश की महान हस्तियों को याद करने के लिए हर मौका खोजा जाना चाहिए।


असल में हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ददा के कुछ करीबियों, हाकी प्रशासकों, हाकी प्रेमियों और आम आदमी ने इस अभियान की शुरूआत की। जिसकी अगुवाई उस वक्त झाँसी के सांसद पंडित विश्वनाथ शर्मा कर रहे थे। उनका मानना था कि ददा ध्यानचन्द को उनके अपने देश ने वह सम्मान नहीं दिया, जिसके हकदार थे। ऐसे में वह चाहते थे कि उनके जन्मदिवस ( 29 अगस्त) को भारत खेल दिवस के रूप में मनाए।


इस खेल दिवस पर देश के चुने हुए खिलाड़ियों को खेल रत्न, द्रोणाचार्य , ध्यान चन्द और अर्जुन अवार्ड जाए। लेकिन क्रिकेट प्रेम के देश ने दद्दा के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का फैसला काफी मेहतन के उपरांत किया जा सका। यहीं नहीं तत्कालीन नेहरू हॉकी टूर्नामेंट सोसायटी के सचिव शिव कुमार वर्मा भी इस आग में कूद गए थे। असल में उनकी ही इच्छा शाक्ति के कारण ही हाकी के महानतम खिलाड़ी के जन्मदिन को यादगार बनाया गया। शिवकुमार वर्मा ने एक दिन मीडिया के सामने यह प्रस्ताव रखा और देशभर में ध्यान चन्द जी के जन्मदिन को खास बनाने के लिए जोरदार माँग शुरू होे गई है। उनका मानना था कि जिस रफ्तार से भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ रही है और भारत का राष्ट्रीय खेल हाकी में भारत का स्तर गिर रहा है। अतः उन्होंने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए। इस लडाई में मैं खूद भी शामिल था।


मेजर ध्यानचन्द के परम स्नेही और प्रशंसक पंडित विश्वनाथ, शिव कुमार वर्मा, अशोक ध्यान चन्द, ओलम्पियनों और तमाम खेल पत्रकारों की कड़ी मेहनत अंततः रंग लाई। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार ने 1994 के 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित कर दिया। उन्होने दद्दा की याद को खेल दिवस के रूप में मनाने के लिए पंडित विश्वनाथ शर्मा और शिवकुमार वर्मा के प्रयासों की तारीफ भी की। डसके उपरांत 29 अगस्त 1995 को मेजर ध्यान चंद की मूर्ति राजधानी के नेशनल स्टेडियम में स्थापित की गई और नेशनल स्टेडियम को ध्यान चंद स्टेडियम के नाम से जाना जाने लगा। 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक स्वर्ण विजेता और विश्व के श्रेष्ठतम खिलाड़ी ध्यानचंद को सम्मान पाने के लिए लगभग 60 वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ी।


जिस खिलाड़ी ने हिटलर जैसे तानाशाह को झुका दिया और जिसके नेतृत्व में भारत ने जर्मनी को उसके हजारों समर्थकों के सामने सिर झुकाने के लिए मजबूर किया उसके सम्मान में हमारी अपनी सरकारों ने श्रेय लूटने के सिवाय और कुछ नहीं किया।


हालांकि राजनीति करने वाली सरकारों के बहुत से नेता सांसद हांकी के महान योद्धा को खेल दिवस जैसा बड़ा सम्मान देने के लए तैयार नहीं थे। ऐसे में पंडित विश्वनाथ ने जब लोक सभा के पटल पर प्रस्ताव रखा तो विरोध करने का साहस कोई नहीं जुटा पाया। हालाँकि कुछ एक चाहते थे कि 29 अगस्त को हॉकी दिवस या ध्यान चन्द दिवस के रूप में मनाया जाए। लेकिन पंडित विश्वनाथ डटे रहे। उन्हें शिव कुमार वर्मा, ध्यान चन्द के सुपुत्र अशोक कुमार और सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का समर्थन प्राप्त था, इनमें हरबिन्दर सिंह, ब्रिगेडियर चिमनी, अशोक दीवान, जफर इकबाल,एमके कौशिक, हरेन्द्र सिंह , विनीत कुमार जैसे नाम शामिल थे।


इसके उपरांत अभियान से जुडे लोगों को मानना था कि उन्होंने कम से कम अपनी जिंदगी में एक काम तो खेलों के लिए कर ही दिया, वह अब कह सकेंगे कि हमने इस अभियान से जुडकर कोई बुरा काम नहीं किया।


Source :Agency news


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