492 साल बाद रामनवमी को दर्शन देंगे रामलला, दरबार में दोपहर को लगेगी हाजिरी 

 




अयोध्या/दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न युक्त बेला में पुत्र राम को जन्म दिया था। लेकिन, श्रीरामजन्मभूमि पर आदिकाल से मनने वाला भव्य जन्मोत्सव सन 1528 में बाबर के सेनापति मीरबाकी के हमले के बाद भक्तों की पहुंच से दूर हो गया था। 
अब सुप्रीम कोर्ट से रामलला के पक्ष में आए फैसले के बाद पहली रामनवमी पर दोपहर में रामलला के दरबार को भक्तों के लिए खोलने की तैयारी है। ट्रस्टियों का कहना है कि फाइबर के बन रहे अस्थाई मंदिर के सामने इतनी जगह बनाई जा रही है कि जन्मोत्सव की आरती में ट्रस्टी, संत-धर्माचार्य समेत कुछ भक्त भी शामिल हो सकें। 
श्रीरामजन्मभूमि पर विराजमान रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सतेंद्र दास कहते हैं कि प्रभु राम के जन्म को लेकर तुलसीदास ने लिखा है-नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।। अर्थात पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था। ऐसे समय में आने वाला यह पर्व आज भी लोगों को हर्षित करता है। वे कहते हैं कि 1528 में मीरबाकी ने रामजन्मस्थान पर बाबरी मस्जिद बनवाई। मुक्ति को लेकर सैकड़ों साल संघर्ष चला। 1992 में ढांचा ध्वस्त होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गर्भगृह में विराजमान रामलला का वे पूजन करते आ रहे हैं। हर रामनवमी को कलश स्थापना के साथ जन्मोत्सव मनाते हैं। लेकिन भक्तों की कमी बहुत खलती है। दर्शन की अवधि दोपहर 11 बजे से 1 बजे तक बंद रहती है, लिहाजा भक्त शामिल नहीं हो पाते हैं। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्टी व निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्र दास कहते हैं कि रामानंद जी ने अयोध्या को तीन अखाड़ों निर्मोही, निर्वाणी व दिगंबर के बीच बांटा था, उनके हिस्से श्रीरामजन्मस्थान आया। 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने श्रीरामजन्मस्थान मंदिर तोड़वाकर विवादित ढांचा का निर्माण कराया। 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई। निर्मोही अखाड़ा तबसे चबूतरा पर पूजा करता रहा है। 23 दिसंबर 1949 को, ढांचा के भीतर गर्भगृह में जब भगवान राम का प्राकट्य हुआ तो सरकार ने इसे विवादित मानकर ताला लगवा दिया।तब भी निर्मोही अखाड़ा चबूतरे के पास अखंड सीताराम का जाप करता रहा, जो 6 दिसंबर 1992 को ढांचा ढहने तक जारी रहा। इसके बाद अस्थाई टेंट में रामलला का पूजन-आरती विधि-विधान से होती आ रही है, लेकिन श्रीरामजन्मोत्सव के समय भक्त शामिल नहीं हो पाते थे। अब फैसले के बाद इसी रामनवमी से भक्तों को शामिल करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। 


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