जैन धर्म की मूल पहचान पर दिया जोर, युवा पीढ़ी को अपनाने की आचार्य श्री ने दी प्रेरणा
देहरादून : परम पूज्य संस्कार प्रणेता, ज्ञानयोगी, जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र, उत्तराखंड के राजकीय अतिथि आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज का वर्षायोग के अंतर्गत मंगल प्रवास अत्यंत ही श्रद्धा और भक्ति भाव के वातावरण में संपन्न हुआ। आचार्य श्री का प्रवास जैन धर्मशाला से प्रारंभ हुआ, जहां से वह तीर्थंकर महावीर चौक होते हुए लालपुल से गुजरते हुए श्री संजय जैन जी मल्टीचैनल के निवास देहराखास के लिए पधारे। इस अवसर पर भक्तों का उत्साह और भक्ति भाव देखने योग्य था। जुलूस की भांति निकले इस मंगल प्रवास में जैन धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए और पूरे मार्ग में भगवान महावीर के जयकारों से वातावरण गुंजायमान होता रहा।
आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज जब भक्तों के बीच पधारे तो सभी ने भक्ति भाव से उनका स्वागत किया। गुरुदेव ने अपने आशीर्वचन में जैन धर्म की मूल अवधारणा को सरल भाषा में समझाते हुए कहा कि धर्म का अर्थ वस्तु के स्वभाव से है। जैसे पानी का स्वभाव शीतलता है और अग्नि का स्वभाव उष्णता है, उसी प्रकार प्रत्येक वस्तु का अपना मूल धर्म होता है।
उन्होंने कहा कि जैन श्रावकों की पहचान उनकी दिनचर्या और आचरण से होती है। पानी छानकर पीना, रात्रि भोजन का त्याग, देव दर्शन करना और अन्य अनुशासित क्रियाएं ही वे लक्षण हैं जिनसे समाज में जैन अनुयायियों की पहचान होती है। गुरुदेव ने विशेष रूप से आज की युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए कहा कि जैनत्व केवल नाम या उपाधि से नहीं बल्कि आचरण और व्यवहार से झलकना चाहिए। समाज को स्वयं देखकर यह कहने का अवसर मिले कि यह व्यक्ति जैन है।
आचार्य श्री के आशीर्वचन के पश्चात आहरचर्या और संध्याकालीन गुरुभक्ति का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। सभी ने अपने गुरुदेव के सान्निध्य में आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव किया और धर्म भावना से परिपूर्ण हुए।
कार्यक्रम की जानकारी देते हुए मीडिया समन्वयक मधु जैन ने बताया कि इसी श्रृंखला में आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी का कल विहार श्री राजीव जैन जी के निवास के लिए होगा। भक्तगण इस आगामी प्रवास को लेकर भी अत्यंत उत्साहित हैं और सभी अपने गुरुदेव के स्वागत की तैयारी में लगे हुए हैं।इस प्रकार आचार्य श्री का यह मंगल प्रवास न केवल श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक उत्सव का अवसर बना, बल्कि जैन धर्म की मूल शिक्षाओं और जीवन में आचरण की शुद्धता के महत्व का भी गहन संदेश प्रदान कर गया।
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