राजनीतिक आजादी से आगे सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता

 


 

(सलीम रज़ा पत्रकार)

आजादी सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना या किसी तारीख का नाम नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत एहसास है, एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो हर पीढ़ी को अपने तरीके से जीनी और समझनी पड़ती है। यह केवल गुलामी की जंजीरों को तोड़ने भर से पूरी नहीं होती, बल्कि यह हमारे विचारों, सोच और समाज की संरचना में एक गहरी स्वतंत्रता का नाम है। जिस आजादी के लिए अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उसका असली मायने सिर्फ गुलामी से आजादी पाना नहीं था, बल्कि देश के हर नागरिक को एक सम्मानजनक, समान और सुरक्षित जीवन जीने का मौका देना था।

आजादी का मतलब है कि हर व्यक्ति को वगैर किसी डर, भेदभाव या दबाव के अपनी बात कहने का अणिकार हो। यह वह स्थिति है जब समाज के हर वर्ग को, चाहे वह किसी भी जाति,धर्म, भाषा या लिंग से जुड़ा हो, बराबरी का स्थान मिले। असली आजादी तभी है जब भूख, बेरोज़गारी, अशिक्षा और अन्याय की बेड़ियां भी टूटें। केवल राजनीतिक आजादी हासिल कर लेना ही काफी नहीं है बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी हर इंसान को स्वतंत्र बनाना आवश्यक है। जब तक एक किसान अपने खेत का मालिक होते हुए भी कर्ज के बोझ से दबा रहे, जब तक एक मजदूर अपने पसीने की कीमत न पा सके, जब तक एक महिला अपने अधिकारों और सम्मान के लिए संघर्ष करती रहे, तब तक मेरी समक्ष में आजादी अधूरी है।

आजादी के असली मायने आत्मनिर्भरता से भी जुड़ा है। यह केवल देश की सीमाओं की सुरक्षा भर से नहीं है बल्कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि देश के संसाधनों पर देश के नागरिकों का ही अधिकार हो। हमें अपने फैसला खुद लेने की क्षमता और हिम्मत हो, चाहे वह राजनीति के स्तर पर हो या व्यक्तिगत जीवन में। स्वतंत्रता का अर्थ है कि हम अपने देश की दिशा स्वयं तय करें और किसी बाहरी ताकत की नीतियों के अधीन न रहें।

आजादी में एक और अहम पहलू है जिम्मेदारी। स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि हम जो चाहें वह बिना परिणाम की परवाह किए करें, बल्कि इसका अर्थ है कि हम अपने अधिकारों के साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी पूरी ईमानदारी से निभाएं। हमें यह समझना होगा कि एक जिम्मेदार नागरिक ही एक स्वतंत्र राष्ट्र का सही आधार होता है। अगर हम अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लें और केवल अधिकारों की बात करें तो स्वतंत्रता का संतुलन बिगड़ जाता है।

आज, जब हमें आजाद हुए आठ दशक का समय होने वाला हैं, हमें यह सोचना चाहिए कि क्या हम उस आजादी के सही मायने समझ पाए हैं जिसके लिए हमारे बुजुर्गों ने बलिदान दिया था। क्या हमने जात.पात, धार्मिक कट्टरता, भ्रष्टाचार और असमानता की जंजीरों को पूरी तरह तोड़ दिया है 0? क्या हर बच्चे को शिक्षा का समान अवसर, हर महिला को बराबरी का हक और हर नागरिक को सुरक्षा की गारंटी मिली है ? अगर इन सवालों का जवाब ‘‘ नहीं’’ है, तो हमें यह मानना पड़ेगा कि हमारी आजादी अभी अधूरी है और उसे पूरा करने की जिम्मेदारी हमारी ही है।

आज़ादी के असली मायने यह है कि हम न केवल अपने लिए बल्कि अपने आसपास के हर व्यक्ति के लिए भी समान अवसर, सम्मान और अधिकार सुनिश्चित करें। यह एक सामूहिक यात्रा है जिसमें हर नागरिक का योगदान जरूरी है। जब हमारे विचार स्वतंत्र, हमारा समाज समान और हमारा देश आत्मनिर्भर होगा, तभी हम गर्व से कह सकेंगे कि हमने आजादी के असली मायने समझ लिए हैं और उन्हें साकार किया है। यह सिर्फ एक दिन मनाने की चीज नहीं, बल्कि हर दिन जीने और निभाने का संकल्प है।

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