"ईद सिर्फ त्योहार नहीं, आत्मा की परीक्षा है"

 



(सलीम रज़ा)

इस्लाम धर्म में दो प्रमुख त्योहारों में से एक है ईद-उल-अजहा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व त्याग, समर्पण, और अल्लाह की राह में हर चीज़ अर्पित करने की भावना का प्रतीक है। हर वर्ष इस्लामी पंचांग के अनुसार ज़िलहिज्जा माह की 10 तारीख को यह पर्व मनाया जाता है।

ईद-उल-अजहा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

इस पर्व की पृष्ठभूमि में मौजूद है हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की वह घटना, जब उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने सबसे प्रिय बेटे हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) को कुर्बान करने का संकल्प लिया।
यह परीक्षा केवल बाहरी बलिदान की नहीं, बल्कि अंदरूनी आस्था, अल्लाह पर विश्वास और पूरी तरह समर्पण की थी।
अल्लाह ने उनकी सच्ची नीयत को स्वीकार करते हुए उनके बेटे की जगह एक दुम्बा भेजा और कुर्बानी की रस्म वहीं से शुरू हुई।

आज उसी याद में मुसलमान हर साल कुर्बानी (बलिदान) करते हैं और अल्लाह के प्रति अपने समर्पण और आज्ञाकारिता को दर्शाते हैं।

कुर्बानी की धार्मिक प्रक्रिया और उसका उद्देश्य

कुर्बानी का अर्थ केवल जानवर की बलि देना नहीं है। यह आत्मा को पवित्र करने, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, और दूसरों की सेवा का माध्यम है।

 कुर्बानी के कुछ महत्वपूर्ण पहलू:

  • कुर्बानी सामर्थ्य रखने वाले मुस्लिम पर वाजिब (अनिवार्य) है।

  • कुर्बानी के लिए सही उम्र और सेहत वाला जानवर होना चाहिए।

  • कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है:

    • एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को

    • दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों व पड़ोसियों को

    • तीसरा हिस्सा स्वयं के लिए

यह व्यवस्था इस बात को दर्शाती है कि ईद-उल-अजहा केवल व्यक्तिगत उत्सव नहीं, बल्कि यह सामाजिक सहयोग और करुणा का पर्व है।

कुर्बानी और स्वच्छता: सामाजिक जिम्मेदारी

वर्तमान समय में ईद-उल-अजहा की रस्म अदा करते समय साफ-सफाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
धार्मिक विद्वान जैसे कि मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने हाल ही में एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा:

  • सड़क या गली में कुर्बानी न करें, केवल निर्धारित स्थानों पर ही रस्म अदा करें।

  • खून और अवशेषों को नालियों में बहाने की बजाय, कच्ची ज़मीन में दबा देना चाहिए

  • कुर्बानी की फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से बचें, इससे भावनाएं आहत हो सकती हैं और पवित्रता भंग होती है।

ईद का सच्चा संदेश: सेवा, संवेदना और सौहार्द

ईद-उल-अजहा हमें यह सिखाती है कि त्याग केवल जानवर की कुर्बानी तक सीमित नहीं है, बल्कि हमें अपने अहंकार, स्वार्थ और द्वेष की भावना को भी कुर्बान करना चाहिए।

पर्व का उद्देश्य है:

  • जरूरतमंदों तक भोजन पहुंचाना

  • रिश्तों को संजोना और समाज में भाईचारा फैलाना

  • देश, समाज और मानवता के लिए प्रार्थना करना

मौलाना फरंगी महली ने इस बार यह भी कहा कि मुसलमानों को देश की रक्षा में लगे जवानों के लिए भी दुआ करनी चाहिए, जो अपने परिवार से दूर रहकर हमारी सुरक्षा में लगे हैं।

निष्कर्ष: ईद-उल-अजहा को बनाएं इंसानियत का उत्सव

ईद-उल-अजहा हमें सिखाता है कि सच्चा धर्म केवल पूजा या रस्में नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीना और जरूरतमंदों की सेवा करना है।
यह पर्व हमें धैर्य, समर्पण, और सब्र की शिक्षा देता है और याद दिलाता है कि अल्लाह को केवल बलिदान नहीं, बल्कि नियत की सच्चाई पसंद है।इस ईद पर आइए, हम सब मिलकर यह प्रण लें कि हम अपनी आस्था को समाज की सेवा और मानवता के उत्थान का माध्यम बनाएंगे।

टिप्पणियाँ