प्रशासन की नींद में दून की जान जोखिम में, पेड़ गिरने से बड़ा हादसा कभी भी संभव
देहरादून : एक ओर जहां उत्तराखंड की राजधानी देहरादून को हरा-भरा और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर शहर कहा जाता है, वहीं दूसरी ओर शहर की सड़कों और बस्तियों में खड़े सूखे और झुके हुए पेड़ अब लोगों की जान पर भारी पड़ने लगे हैं।
चाहे बात हो चकराता रोड की हो या राजपुर रोड की, मालसी, रायपुर से लेकर मोहब्बेवाला और शिमला बाईपास तक—हर इलाके में गिरासू पेड़ (झुक चुके, सूखे और कमजोर पेड़) एक चलता-फिरता खतरा बन चुके हैं।
हर आंधी के साथ डर: कब कहां कौन सा पेड़ गिर जाए, कोई नहीं जानता
गर्मी के मौसम में तेज आंधियों और बारिश का सिलसिला दून में आम है। ऐसे में पुराने, सूखे और झुके पेड़ों के गिरने का डर लोगों के लिए रोजमर्रा की चुनौती बन गया है। कई बार स्थानीय निवासियों ने इन पेड़ों के बारे में नगर निगम और वन विभाग को जानकारी दी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
स्थानीय दुकानदारों और राहगीरों का कहना है कि हर तूफान के साथ घर से बाहर निकलना किसी जोखिम से कम नहीं। बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा को लेकर लोग बेहद चिंतित हैं।
खतरे में हैं ये क्षेत्र:
चकराता रोड
सहस्रधारा रोड
राजपुर रोड
गांधी रोड
मालसी और रायपुर
सुद्धोवाला, दूधली और मोथरोवाला
रिंग रोड और शिमला बाईपास रोड
इन इलाकों में कई ऐसे पेड़ हैं जो या तो सूख चुके हैं, या फिर बिजली के तारों और घरों की दीवारों की ओर खतरनाक ढंग से झुक गए हैं। एक छोटी सी चूक या मौसम का बदला मिज़ाज, किसी भी वक्त हादसे की वजह बन सकता है।
100 साल पुराने पेड़ बन चुके हैं आफ़त का कारण
दून शहर में कई पेड़ ऐसे हैं जो 100 वर्ष से अधिक पुराने हैं। वर्षों पहले लगाए गए ये वृक्ष अब सूख चुके हैं और उनकी जड़ें मिट्टी में मजबूती से जमी नहीं रहीं। इससे ये पेड़ हवा या बारिश में गिरने की स्थिति में आ जाते हैं।
कुछ हरे पेड़ भी झुकाव की स्थिति में हैं, जो सड़क पर वाहनों और पैदल यात्रियों के लिए सीधा खतरा बन गए हैं।
प्रशासन पर उठते सवाल, कार्रवाई नदारद
विभिन्न सामाजिक संगठनों और नागरिकों ने मांग की है कि प्रशासन तुरंत सर्वे कराकर इन खतरनाक पेड़ों की सूची तैयार करे और प्राथमिकता के आधार पर छंटाई (ट्रिमिंग) या कटान कराए। साथ ही सुझाव दिया गया है कि इन स्थानों पर नए और सुरक्षित प्रजातियों के वृक्ष लगाए जाएं, ताकि हरियाली बनी रहे लेकिन सुरक्षा से समझौता न हो।नगर निगम और वन विभाग की चुप्पी पर सवाल उठते रहे हैं। लोगों का कहना है कि जब हादसा हो जाएगा, तब जिम्मेदार जागेंगे—ये कैसी व्यवस्था है?
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