तीन युवाओं की मौत के बाद भी नहीं पसीजी पुलिस, शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर बर्बरता

 


आगरा: घटना की शुरुआत एक जून को हुई थी जब करकुंज मार्ग पर बोलेरो और ऑटो की टक्कर में आशुतोष और रितिक नामक दो युवकों की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि तीसरा युवक साजन गंभीर रूप से घायल हुआ था। साजन को बचाने की तमाम कोशिशें की गईं, इलाज के लिए चंदा इकट्ठा करना पड़ा, लेकिन मंगलवार की तड़के उसने भी दम तोड़ दिया। इसके साथ ही एक ही मोहल्ले के तीन घरों के चिराग बुझ गए।

मंगलवार को जैसे ही यह खबर मोहल्ले में फैली, लोग आक्रोशित हो गए। परिजन और पड़ोसी सूरसदन तिराहे पर शव रखकर प्रदर्शन करने पहुंचे और आरोपी वाहन चालक की गिरफ्तारी तथा मुआवजे की मांग करने लगे। प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रख रहे थे, लेकिन पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करते हुए लाठियां बरसाईं।

इस बर्बर कार्रवाई में गिहार बस्ती का अर्जुन नामक युवक बुरी तरह घायल हो गया। अर्जुन का कहना है कि वह शव के साथ आ रहा था और शांतिपूर्वक खड़ा था, तभी कुछ लोगों से कहासुनी हुई और पुलिस ने अचानक डंडे बरसाने शुरू कर दिए। उसे खींचकर ले जाया गया और नाले के पास जब वह बेहोश हो गया, तब भी पुलिस मारती रही। अर्जुन ही नहीं, अन्य लोगों का आरोप है कि पुलिस ने बच्चों तक को नहीं बख्शा और महिलाओं पर भी लाठियां चलाईं।

पीड़ित परिवारों की दर्दनाक कहानी दिल झकझोर देने वाली है। साजन की दादी राधा ने बताया कि पहले ही उनके बेटे और बहू की मृत्यु हो चुकी थी और अब पोते की मौत ने उन्हें बिल्कुल अकेला कर दिया है। इलाज के लिए जो थोड़ी बहुत पूंजी थी, वह खर्च हो गई और अंत में चंदा जुटाकर इलाज कराया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन की ओर से किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिली।

साजन की भाभी मीनाक्षी ने बताया कि यदि हादसे के बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए बोलेरो चालक की गिरफ्तारी की होती, तो प्रदर्शन की जरूरत ही नहीं पड़ती। मोहल्ले के अन्य लोगों का कहना है कि वे केवल मुआवजे और न्याय की मांग करने गए थे, लेकिन पुलिस ने बल प्रयोग कर उनके शांतिपूर्ण विरोध को हिंसक बना दिया।

इतना ही नहीं, अब पुलिस ने उन्हीं लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है जो डंडे खाकर घायल हुए थे। साजन की बुआ जूली और मोहल्ले के सत्यपाल ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने कोई हिंसा नहीं की थी, लेकिन पुलिस ने नाम पूछ-पूछकर केस दर्ज किया। केवल अपनी बात रखने पर उन पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया। यह न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा भी है।

सूरसदन तिराहे पर हुए प्रदर्शन को लेकर पुलिस ने 18 नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। जिन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है, उनमें पुनीत उर्फ तबला, नीरज, पांडे, मधू, सनी, राधा, संदीप, राहुल, जूली, पार्वती, ज्योति, बबली, रोहित, शिवानंद, अन्नू उर्फ अर्जुन, गुड्डी, राहुल कुमार, विशाल उर्फ बिरयानी सहित 100 से अधिक अज्ञात लोग शामिल हैं। एसीपी हरीपर्वत विनायक भोसले के अनुसार, सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल वीडियो के आधार पर अन्य प्रदर्शनकारियों की पहचान की जा रही है और उनके खिलाफ भी नाम बढ़ाए जाएंगे।

इस बीच, पुलिस का कहना है कि उन्हें घटना का एक महत्वपूर्ण सीसीटीवी फुटेज हाथ लगा है जिसमें दिखता है कि बोलेरो वाहन सेक्टर 11 की पानी की टंकी से करकुंज की तरफ जा रहा था, जबकि सामने से ऑटो और बाइक सवार आ रहे थे। इसी दौरान हादसा होता है और बोलेरो चालक मौके से भाग जाता है। गाड़ी इटावा नंबर की बताई जा रही है और पुलिस के अनुसार वाहन मालिक का पता चल गया है, जबकि चालक की तलाश जारी है।

इस पूरे घटनाक्रम ने प्रशासनिक संवेदनशीलता और पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर हादसे में जान गंवाने वाले परिवार न्याय की गुहार लगा रहे हैं, तो दूसरी ओर उन्हें ही अपराधी बनाकर पेश किया जा रहा है।

गिहार बस्ती के लोगों की पीड़ा केवल तीन जिंदगियों के बुझने की नहीं है, यह उस व्यवस्था पर गुस्से की अभिव्यक्ति है जो न्याय के बजाय लाठी दिखाकर जवाब देती है। जब तक पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा और दोषियों को सजा नहीं दी जाएगी, तब तक इस आक्रोश की आग बुझने वाली नहीं है।

यह घटना उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक मशीनरी को आईना दिखाने के लिए काफी है। क्या वाकई लोगों की आवाज दबाने के लिए लाठियों की जरूरत है, या फिर संवेदनशील संवाद और त्वरित न्याय की? यह सवाल अब केवल गिहार बस्ती का नहीं, पूरे समाज का है।

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