टॉर्चर, अवैध हिरासत और झूठे केस: रानीपुर विधायक और भांजी को छह माह की सजा
हरिद्वार/देहरादून : दहेज उत्पीड़न मामले में रानीपुर विधायक आदेश चौहान, उनकी भांजी दीपिका चौहान, इंस्पेक्टर दिनेश कुमार और सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह रौतेला को सीबीआई की विशेष अदालत ने सोमवार को दोषी करार देते हुए सजा सुना दी। अदालत ने विधायक आदेश चौहान और दीपिका को छह-छह महीने, जबकि पुलिस अधिकारियों को एक-एक साल की सजा दी है। हालांकि, फैसला सुनाने के बाद सभी को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला वर्ष 2009 का है, जब दीपिका चौहान और मनीष चौहान के बीच विवाहोत्तर विवाद शुरू हुआ। दीपिका, विधायक आदेश चौहान की भांजी हैं, जबकि मनीष, सेवानिवृत्त लेक्चरर डीएस चौहान के बेटे हैं।
आरोपों के अनुसार, 11 जुलाई 2009 को डीएस चौहान को पांच लाख रुपये लेकर गंगनहर कोतवाली बुलाया गया। वहां उन्हें बताया गया कि यह राशि दीपिका को समझौते के तहत देनी होगी। जब डीएस चौहान थाने पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें लॉकअप में बंद कर दिया।
दो दिन अवैध हिरासत, फिर झूठे मुकदमे
डीएस चौहान को दो दिनों तक अवैध हिरासत में रखने के बाद 13 जुलाई को उन्हें, उनके बेटे मनीष, पत्नी और बेटी को झूठे दहेज उत्पीड़न केस में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
डीएस चौहान को एक दिन बाद ही जमानत मिल गई, जबकि परिवार के अन्य सदस्यों को 10 दिन बाद जमानत मिली।
हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सीबीआई जांच
डीएस चौहान ने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर लोकायुक्त से शिकायत की। जांच के आदेश दिए गए, लेकिन स्थानीय पुलिस ने एफआर (Final Report) लगा दी। इसके बाद डीएस चौहान ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए। वर्ष 2019 में सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया और वर्ष 2022 में अदालत ने आरोप तय किए। अब विचारण के बाद कोर्ट ने चारों आरोपियों को दोषी ठहराते हुए सजा सुना दी।
कौन-कौन दोषी और कितनी सजा?
आदेश चौहान (विधायक, रानीपुर) – 6 माह
दीपिका चौहान (भांजी) – 6 माह
इंस्पेक्टर दिनेश कुमार – 1 साल
सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह रौतेला – 1 साल
(सभी को सजा के बाद जमानत दे दी गई)
कोर्ट की टिप्पणियां और गड़बड़ियों की परतें
जांच में यह भी सामने आया कि जब हाईकोर्ट ने एसएसपी हरिद्वार को जांच सौंपी थी, तो इसे एक इंस्पेक्टर रैंक अधिकारी के बजाय एक एसआई को दे दिया गया। डीएस चौहान ने इस पर भी आपत्ति जताई थी, जिसके बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया।
विधायक का बयान
“मैं जनप्रतिनिधि हूं और राजनीतिक पार्टी से जुड़ा रहा हूं। थाने-चौकी में आना-जाना लगा रहता है। यह मामला मेरी भांजी से जुड़ा था, इसलिए मैं वहां मौजूद था। इस फैसले के खिलाफ नियमानुसार अपील की जाएगी।”
यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि राजनीतिक और पुलिसिया गठजोड़ में फंसे आम नागरिकों को न्याय पाने के लिए सालों की लड़ाई लड़नी पड़ती है। हालांकि, हाईकोर्ट और सीबीआई की निष्पक्षता के चलते आखिरकार न्याय की जीत हुई।फिलहाल सभी दोषी जमानत पर हैं, लेकिन मामला अब उच्च न्यायालय में अपील की ओर बढ़ेगा।
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