पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने जातीय भेदभाव पर जताया दुख

 


 नयी दिल्ली /  भारत की पहली महिला स्पीकर मीरा कुमार ने 21 सदी में जारी जातीय भेदभाव पर गहरा दुख जताया। उन्होंने कहा कि 21वीं शताब्दी के भारत में भी जाति व्यवस्था कायम है। देश में दो प्रकार के हिंदू हैं, एक वह जो मंदिर जा सकते हैं और दूसरे वह जो नहीं जा सकते। दलित समुदाय से आने वाली और पूर्व राजनयिक मीरा कुमार ने राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश की नई किताब 'द लाइट ऑफ एशिया: द पोएम दैट डिफाइंड बुद्धा' के विमोचन के अवसर पर यह टिप्पणी की। इससे पहले भी कांग्रेस नेताओं की किताब पर बवाल मच चुका है। सर्वप्रथम सलमान खुर्शीद की अयोध्या पर लिखी किताब और फिर मनीष तिवारी की किताब के चलते कांग्रेस बैकफुट पर नजर आ रही थी।इसी बीच मीरा कुमार ने बताया कि उनके पिता बाबू जगजीवन राम से बहुत लोगों ने हिंदू धर्म छोड़ने को कहा था क्योंकि उन्हें जाति के कारण भेदभाव सहना पड़ता था। हालांकि, पिता बाबू जगजीवन राम ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि वो अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे और जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ेंगे। मीरा कुमार ने आगे बताया कि उनके पिता यह पूछते थे कि क्या धर्म बदलने से किसी की जाति बदल जाती है ? इसी बीच मीरा कुमार ने जयराम रमेश को उनकी नई किताब के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस किताब ने सामाजिक व्यवस्था का एक बंद दरवाजा खोलने में मदद की है, जिसके अंदर लोगों का दम घुट रहा था।साल 2017 में राष्ट्रपति चुनाव के लिए यूपीए की उम्मीदवार रहीं मीरा कुमार का जन्म बिहार के सासाराम में पूर्व उप-प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम के घर में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाऊस से कानून की पढ़ाई करने वाली मीरा कुमार भारत की पहली महिला स्पीकर बनीं। बेजोड़ प्रतिभा की धनी मीरा कुमार को कविताओं का भी अच्छा खासा सौख है। शांत और सहनशीलता उनके व्यक्तित्व की सबसे खास बात है। हमेशा नम्र लहजा अपनाने वाली मीरा कुमार साल 1973 में विदेश सेवा में शामिल हुईं और फिर अलग-अलग देशों में नियुक्त हुईं। हालांकि 1985 में उनके राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत हुई। मीरा कुमार ने मायावती, रामविलास पासवान जैसे दिग्गजों को चुनाव में परास्त किया है। हालांकि 1999 में उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा था लेकिन फिर उन्होंने अपने पिता की सीट से चुनाव जीता। इसके बाद 2009 में देश की पहली महिला स्पीकर बनीं। कांग्रेस नेता ने खुद किताब लिखने के पीछे का मकसद बताया। जयराम रमेश ने कहा कि उनकी किताब कविता पर लिखी गई है। दरअसल, सर एडविन अर्नोल्ड की लाइट ऑफ एशिया किताब साल 1879 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में बुद्ध के जीवन को एक कविता के रूप में प्रस्तुत किया गया था और जयराम रमेश इसी किताब से प्रेरित होकर ही नई किताब लिखे हैं। 

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