यूपी: एक माह 1500 मौतें दहल गया था देवरिया जिला,अफसरों ने झांकने की जहमत भी नहीं करी गवारा

बीस अप्रैल से बीस मई एक माह की अवधि में देवरिया जिले में आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 1500 से अधिक मौतों ने लोगों को दहला कर रख दिया है। इसमें कुछ कोरोना तो अधिकतर अन्य बीमारियों की चपेट में आकर जान गंवा बैठे। इतनी अधिक मौतों के बाद भी अफसर गांवों में झांकने तक नहीं गए। स्वास्थ्य विभाग की टीम सिर्फ कागजों में ही गांवों में पहुंच रही है। अभी भी हजारों की संख्या में ग्रामीण अंचल में लोग बीमार हैं। जिन्हें समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा हैं। वैसे प्रशासनिक अधिकारी मौत के आंकड़ों से इनकार कर रहे। लेकिन लोगों की मानें तो विवरण जुटाया जाए तो इससे भी अधिक मौतें हुई हैं। जिले में 1185 गांव एवं 11 नगर निकाय है। शायद ही कोई ऐसा मोहल्ला एवं गांव होगा जहां तीन से चार लोगों की मौत एक माह के अंतराल में नहीं हुई होगी। जनपद में एक माह में मौत का ग्राफ बढ़ा है। गांवों में मौत से ग्रामीण दहशत में हैं। गांवों में फैल रही बीमारियों और मौतों की जानकारी अमर उजाला ने जुटाई तो पाया है कि संक्रमण का डर लोगों में कम नहीं हो रहा है। समय पर इलाज व दवा नहीं मिल पा रही है। 20 अप्रैल से 20 मई तक आंकड़ों के अनुसार बरहज कटइलवा मुक्तिधाम पर 1110 शवों के जलाएं जाने का विवरण दर्ज है। इसके अलावा बरहज में ही मोहन सेतु, मोहरा समोगर, कपरवार संगम, मेहियवां, रगरगंज, भागलपुर, रूद्रपुर, भाटपाररानी, सलेमपुर, तरकुलवा क्षेत्र के पटनवा पुल सहित अन्य स्थानों पर तकरीबन 400 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार होने का अनुमान है। इतनी बड़ी संख्या में हुई मौतों ने लोगों में दहशत का माहोल बना दिया है, लेकिन कोई अफसर झांकने तक नहीं गए। जनप्रतिनिधि भी इससे अनभिज्ञ हैं। जिनकी मौतें हुई है उनमें अधिकतर इलाज के अभाव में दम तोड़े हैं। ज्यादतर मौत घरों में हुई। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग की टीम और कोई प्रशासनिक अफसर झांकने तक गांवों में नहीं पहुंचा। लोगों को सता रहा अपनों के खोने का दर्द
गांवों में हुई मौत को लोग भूला नहीं पा रहे हैं। लोगों को अपनों के खोने का दर्द सता रहा है। वे पीड़ित परिवारों को ढांढस बंधाने की हिम्मत नहीं जुटा रहे हैं। आपदा की काली घड़ी का खौफ सभी के जेहन में है। अर्थी को कंधा देते कंधे जहां थम रहे हैं वहीं आंखें पथरा गई हैं। बड़ी मुश्किल से किसी तरह एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने की हिम्मत कर रहे हैं।गांवों में हो रहा कम वैक्सीनेशन ासन-प्रशासन वैक्सीनेशन पर जोर दे रहा है, लेकिन जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण का कार्य धीमी गति से हो रहा है। इसके प्रति गांव में जागरूकता कम है। वहीं हर जगह टीका लगवाने की सुविधा नहीं है, जिससे गांव के अधिकांश लोगों का टीकाकरण नहीं हो सका है। एप रजिस्ट्रेशन करने की अनिवार्यता ने और मुश्किल खड़ी कर दी है। न ीम हकीम के सहारे मरीज गांवों में कोविड-19 संक्रमण के प्रसार में कमी आई है, लेकिन गांवों में अभी भी खतरा है। सर्दी, बुखार होने पर लोग चौराहों पर झोलाछाप का सहारा ले रहे हैं। हालत गंभीर होने पर ये किसी और चिकित्सक के पास ले जाने की बात कह पल्ला झाड़ ले रहे हैं। जिससे बहुत से मरीज अस्पताल ले जाते समय रास्ते में तो कुछ इलाज शुरू होने के बाद दम तोड़ देते हैं।सीएमओ डॉ. आलोक पांडेय ने बताया कि कोविड-19 के मरीजों के लिए चिकित्सा के इंतजाम किए गए हैं। हर गांव में निगरानी समितियां कार्य कर रही हैं। टीमें घर-घर जाकर जांच कर रही हैं। लक्षण मिलने पर लोगों को दवा किट दी जा रही हैं। गंभीर मरीजों के लिए एंबुलेंस की सुविधा है। फोन करने पर एंबुलेंस मरीज को अस्पताल पहुंचाएगी, जहां इलाज का समुचित प्रबंध किया गया है। गांव में संक्रमित मरीज की सूचना मिलने पर टीम भी पहुंच रही है। जहां तक मौत की बात है तो अधिक उम्र होने के कारण कुछ लोगों की स्वाभाविक मौत हुई। Sources:AmarUjala

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