लखनऊ/ अस्पताल के सौदागर- अस्पताल का बिल नहीं चुका पाने वाली माँ को बिल के बदले बेचना पड़ा बच्चा


लखनऊ/ अस्पताल के सौदागर- अस्पताल का बिल नहीं चुका पाने वाली माँ को बिल के बदले बेचना पड़ा बच्चा


उत्तर प्रदेश में कोख के सौदागरों का खेल एक बार फिर उजागर हुआ है, यह खेल आगरा के अस्पतालों में चल रहा है. ताजा मामला यमुना पार के अस्पताल में नवजात की खरीद- फरोख्त का सामनें आया है. नवजात की मां अपनी गरीबी का हवाला लेकर अस्पताल का बिल चुकाने को लेकर बच्चे को बेचने की बात कह रही है. वहीं अस्पताल संचालक महिला स्टांप पेपर पर लिखे गए गोदनामे को अपनी ढाल बना रही हैं.


आपकों मामले से अवगत कराते हुए बताते हैं कि 36 साल की बबिता ने पिछले हफ्ते एक बच्चे को जन्म दिया, उसकी डिलीवरी सर्जरी से हुई. अस्पताल वालों ने उसे सर्जरी के 30,000 रुपये और दवाओं के 5,000 रुपये समेत 35 हजार रुपये के बिल तैयार किया. बबिता के 45वर्षीय पति शिवचरण रिक्शा चलाते हैं, उनके पास इतने रुपये नहीं थे कि वह अस्पताल का पूरा बिल भर सकें.


उत्तर प्रदेश के आगरा में शंभू नगर इलाके में किराए के कमरे में रहते हैं. बताते हैंकि रिक्शा चलाकर शिवचरण की रोज 100 रुपये आमदनी हो जाती है. उनका सबसे बड़ा लड़का 18 वर्ष का है. वह एक जूता कंपनी में मजदूरी करता है. कोरोना लॉकडाउन में उसकी फैक्ट्री बंद हो गई तो वह भी बेरोजगार हो गया. बता दे कि पीड़ित दंपती पांचवां बच्चा है. इनमे 4बेटे व एक बेटी है.


जानकारी के मुताबिक बबिता ने बताया कि एक आशा वर्कर उनके घर आई. उसने कहा कि वह उसकी फ्री में डिलीवरी करवा देगी. शिवचरण ने कहा कि उन लोगों का नाम आयुष्मान भारत योजना में नहीं है लेकिन आशा ने कहा कि फ्री इलाज करवा देगी. जब बबिता अस्पताल पहुंची तो अस्पताल वालों ने कहा कि सर्जरी करनी पड़ेगी. 24 अगस्त की शाम 6 बजकर 45 मिनट पर उसने एक लड़के को जन्म दिया. अस्पताल वालों ने उन लोगों को बिल थमाया. शिवचरण ने कहा मेरी पत्नी और मैं पढ़ लिख नहीं सकते हैं. हम लोगों का अस्पताल वालों ने कुछ कागजों में अंगूठा लगवा लिया, हम लोगों को डिस्चार्ज पेपर नहीं दिए गए. दंपती का आरोप हैकि अस्पताल वालों ने उनसे कहा कि बिल चुकाने के लिए अपने बच्चे को एक लाख रुपये में बेच दें. उन्होंने बच्चे को एक लाख रुपये में खरीद लिया.


सीएमओ डॉक्टर आरसी पांडेय ने कहा कि यह गंभीर मामला है. इस तरह अस्पताल से बच्चे को नहीं बेचा जा सकता. मामले की जांच कराई जाएगी अगर सही पाया गया तो अस्पताल सील किया जाएगा.


वहीं इस मामले में जिलाधिकारी प्रभूनाथ सिंह ने कहा कि यह मामला गंभीर है. इसकी जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी.


ट्रांस यमुना कॉलोनी फेज टू स्थित जेपी अस्पताल प्रशासन ने अस्पताल ने सभी आरोपों को खारिज किया है, उन्होंने कहा हैकि बच्चे को दंपती ने छोड़ दिया था उसे गोद लिया गया है, खरीदा या बेचा नहीं गया है. हम लोगों ने उन्हें बच्चे को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया. ट्रांस यमुना इलाके के जेपी अस्पताल की प्रबंधक सीमा गुप्ता ने कहा, मेरे पास माता-पिता के हस्ताक्षर वाली लिखित समझौते की एक प्रति है इसमें उन्हें खुद बच्चे को छोड़ने की इच्छा जाहिर की है.


आपको बता दें कि हर बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण ने निर्धारित की है उसी प्रक्रिया के तहत ही बच्चे को गोद दिया और लिया जा सकता है. अस्पताल प्रशासन के पास जो लिखित समझौता है उसका कोई मूल्य नहीं है. यह अपराध की श्रेणी में आता है. बच्चे को गोद लेने की एक विधिक प्रकिया है, इसमें यह भी देखा जाता है कि देानों पात्र हैं या नहीं. इसके बाद पूरी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद बच्चा गोद लिया जा सकता है. इस तरह स्टांप पेपर पर लिखकर बच्चा गोद नहीं लिया जा सकता. स्टांप पेपर पर क्या लिखा है यह भी जांच का विषय है. अब देखना होगा कि इस मामलें में अस्पताल प्रशासन पर क्या कोई कार्यवाही होती है या मामलें को कुछ समय बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया जायेगा.


Source :Agency news


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