ठोको नीति, हजारों एनकाउंटर फिर भी कानून व्यवस्था बदहाल


गोंडा एनकाउंटर की पटकथा से मिलती है बिकरु


कानपुर की कहानी, वहां भी गई थी सीओ की जान और यहां भी


लखनऊ। Thousands of encounters रिहाई मंच ने कहा कि पहले पुलिस कर्मियों की जानें गईं और अब उनको मारने के आरोप में ताबड़तोड़ एनकाउंटर का दावा। विकास मुठभेड़ कांड की सच्चाई छुपी नहीं है, देश में संविधान-कानून को मानते हुए पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की रिहाई मंच मांग करता है ।


मंच ने कहा कि कानपुर कांड जिसमें पुलिस कर्मियों की जाने गईं न सिर्फ वो सवालों के घेरे में है बल्कि ऐसे अपरिपक्व आपरेशन के लिए जिम्मेदार कौन है। वहीं पुलिस के मनोबल के नाम पर हत्याओं का जो सिलसिला चल रहा उसे तत्काल रोका जाए क्योंकि इससे आम जनता में दहशत पैदा हो रही है । जो न जनता के हित में है न पुलिस के ।


रिहाई मंच महासचिव राजीय यादव ने कहा कि माधवपुर, गोंडा 1982 फर्जी मुठभेड़ कांड को नहीं भूलना चाहिए जिसमें डीएसपी केपी सिंह की हत्या के आरोप में पुलिस वालों को फांसी और उम्र कैद की सजा हुई ।


कानपुर मुठभेड़ या अन्य मुठभेड़ों की जांच हो जाए तो इस स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता. यहां गौर करने की बात है कि पूरी कहानी में सिर्फ विकास को ही मुख्य किरदार बनाया गया। क्या 1982 माधवपुर, गोंडा एनकाउंटर की तरह बिकरू, कानपुर एनकाउंटर नहीं हो सकता ।


वहां भी सीओ की जान गई और यहां भी. वहां भी थानेदार और सीओ में विवाद था और यहां भी । वहां भी सीओ ने एसपी से थानेदार की शिकायत की थी और यहां भी जिसको देवेंद्र मिश्रा की बेटी ने एसपी, थानेदार और उनके पिता के बीच की काल रिकार्डिंग को जारी कर बताया।


थानेदार को ही हत्या का दोषी पाते हुए सजा सुनाई


ठीक जिस तरह गोंडा में सीओ अपराधी को पकड़ने गए और वहां उनके ही थानेदार को उनकी ही हत्या का दोषी पाते हुए सीबीआई ने सजा सुनाई। क्या वो घटना बिकरु से मिलती-जुलती नहीं है।


थानेदार-सीओ के बीच की लड़ाई अमूमन या कहें कि किसी भी विभाग में कर्मचारियों के बीच इस तरह के झगड़े रहते हैं । बिकरु में भी कहा जा रहा कि जिन पुलिस वालों ने मुखबिरी की वो पीछे-पीछे चल रहे थे।


SOURCE :Agency news 


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