बदल जाएगा दुनिया का युद्ध करने का तरीका #कोरोना वायरस

अनमोल पचौरी



  • बायोलॉजिकल वेपन होंगे दुनियां की नई युद्ध रणनीति का हिस्सा

  • मानव जाति ने शुरू कर दी है अपने ही विनाश की पहल?

  • कोरोना महामारी से क्या बायोलॉजिकल वारफेयर के खिलाफ एक जुट होगी महाशक्तियाँ?


मनुष्य ने जब से साम्राज्यों की स्थापना की है तभी से अपने आप को शक्तिशाली समृद्धि दिखाने और सशक्त दिखाने के लिए ताकतवर सेना की जरूरत पड़ी है । एक छत्र अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए हमेशा से ही मनुष्य ने सेनाओं पर और उनके हथियारों पर भारी निवेश किया है, तीर कमान तलवारों से शुरू हुई यह हथियारों की होड़ कब मशीन गन और भारी-भरकम तोपों में तब्दील हुई मनुष्य को पता ही नहीं चला । इसी होड़ के चलते और अपने आप को सशक्त दिखाने की रेस में प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध का इतिहास काली स्याही से लिख दिया गया ।प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भारी नरसंहार के बाद यह तय किया गया की भविष्य में इस तरीके का नरसंहार ना होने पाए लेकिन कई देशों की तबाही और अर्थव्यवस्था को चौपट कर देने के बाद शांति की जिम्मेदारी भी उन्हीं देशों ने संभाली जिन्होंने उस युद्ध में बढ़-चढ़कर भाग लिया और युद्ध के पश्चात हथियारों की एक ऐसी दौड़ शुरू कर दी जिसका कोई अंत है ही नहीं ।
 द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया दो भागों में बट गई जिस का एक भाग था सोवियत रूस और दूसरा था अमेरिका । दोनों ही पूरी दुनिया को अपने अपने ढंग से चलाना चाहते थे, और पूरी दुनिया की राजनीति में अपना हस्तक्षेप प्रभावी रूप से बनाना चाहते हैं ।  इसीलिए यूनाइटेड नेशन आर्गेनाईजेशन की स्थापना की गई और इसमें भी एक महत्वपूर्ण संगठन बनाया गया जिसको हम यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल के तौर पर जानते हैं जो देश इसके परमानेंट मेंबर हैं माना जाता है कि वही देश दुनिया में सबसे शक्तिशाली तथा एक ताकतवर सेना के मालिक है । लेकिन इतनी बड़ी व्यवस्था कर देने के बाद भी कोरोना की जंग एक के बाद एक देश हारते जा रहे है ।


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महज़ कुछ ही दिनों में दुनिया की महाशक्ति कहे जाने वाले देश घुटनों पर ला देने वाला एक छोटा सा वायरस अब दुनिया की नजरों में चढ़ चुका है । जिस अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के नाम से ही दुनिया के बाकी के देश अपने फैसले बदलने पर मजबूर हो जाते थे उन्होंने यह देख लिया कि बड़े से बड़े शक्तिशाली देश चाहे वह सेना और आर्थिक तौर पर कितना ही मजबूत क्यों ना हो बायो लॉजिकल वार फेयर के सामने घुटने टेक देगा।


इसका एक प्रबल उदाहरण यह भी है की रूस के खिलाफ अमेरिका ने अपने यूएसएस रूज़वेल्ट फ्लीट का कई बार इस्तेमाल किया यह फ्लीट इतनी शक्तिशाली है कि समंदर में इसकी मौजूदगी ही किसी भी देश की सेना के पसीने छुड़ा सकती है । लगभग 100 लड़ाकू विमानों से लैस परमाणु मिसाइलों से लैस यह जहाजों का बेड़ा कई बार चीन की नाक में भी नकेल डाल चुका है और रूस सेे अपनी शर्तें अमेरिका अपनी इसी फ्लीट के दम पर मानवता है , लेकिन अमेरिका की यह शक्तिशाली नौसैनिक बड़ा ही कोरोना की चपेट में आ चुका है और इस पर मौजूद सभी नौ सैनिकों की जान खतरे में है, खतरा इतना बड़ा है कि अमेरिका ने इस फ्लीट को समंदर में ही मौजूद एक नेवल बेस पर खड़ा करवा दिया है। कैप्टन समेत सभी 5000 नाविक कोरोना संक्रमित पाए गए हैं यही नहीं इस पूरे जंगी जहाज को सैनिटाइज करने में लगभग 1 साल का समय लगेगा ।यानी इतना बड़ा रूस जिस काम को इतने सालों में नहीं करवा पाया वह महज इस छोटे से वायरस ने कर दिया हमारी चिंता का विषय है की पूरी दुनिया बहुत महंगे और बड़े हथियारों में निवेश करने की बजाय भविष्य में अब इन बायोलॉजिकल वेपंस में निवेश करना ज्यादा बेहतर  समझेगी। क्योंकि यह पारंपरिक हथियारों से सस्ते ज्यादा खतरनाक साबित होंगे हमले के  लिए किसी मिसाइल का नहीं बल्कि वायरस से संक्रमित एक  व्यक्ति ही काफी होगा


संक्रमित व्यक्ति को ट्रैक कर पाना नामुमकिन सा है और देखते ही देखते पूरा देश लॉक डाउन और अर्थव्यवस्था चौपट।हमला किस देश ने किया और कब किया इसका पता लगाना भी पीड़ित देश के लिए नामुमकिन हो जाएगा। और यदि ये वायरस किसी आतंकवादी संघठन के हाथ लग गए तो नतीज़े की भयावतः हम कल्पना में भी नही सोच सकते।
लिहाज़ा दुनिया अब एकजुट होकर इस प्रकार के वायरसों के खिलाफ कमर कस ले अन्यथा कही बहुत देर न होजाये ।



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