पाकिस्तान को इस दुःस्साहस के लिए सबक मिलना चाहिए। 

 




सलीम रज़ा
ऐसे समय में जब समस्त भारत में नागरिकता संशोधनविधेयक,राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण,राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पर लोगों में आक्रोश है, जगह-जगह धरने-प्रर्दशन हो रहे हैं ऐसे में पाकिस्तान के ननकाना साहिब गुरूद्वारे में पाकिस्तानी भीड़ द्वारा पथराव की घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वो मानवता और धर्मिक मूल्यों को नजर अन्दाज करके कट्टरपंथियों की हाथ की कठपुतली है। विश्व पटल पर अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान के बारे में अब कुछ भी कहने और समझाने की गुंजाईश न के बराबर है। मैं काफी समय से ये देखता चला आ रहा हूं कि सकारात्मक और नकारात्मक लेखन क्या चीज हैं क्या सकारात्मक वो है कि सरकार के किसी भी कार्य के लिए जिससे मानवीय संवेदना आहत होती हों और जानते हुए भी सकारात्मक रूख रखना या फिर सरकार के द्वारा उठाया गया सही कदम को जानते हुए भी नकारात्मक रूख अपनाना ये किस सोच का परिचायक है? अगर आप ऐसा करते हैं तो सही मायनों में आप अभी भी अपने आप को गुलाम समझते हैं। आपका लेखन मात्र एक दिखावा है जो समाज के एक हिस्से में अपनी पहचान बनाने का उत्कृष्ट साधन है, जहां पर खड़े होकर आप स्टार बनने की कोशिश कर रहे हैं। 


हर इंसान अपने बारे में बेहतर समझता और जानता है लेकिन दूसरों के बारे में समझना और जानना एक भावनात्मक कला है। अगर आपके अन्दर भावना का समावेश नहीं है तो यकीनन आप मुकम्मल इंसान नहीं हैं। कभी आपने सोंचा है कि जिस बात के लिए आप सरकार के खिलाफ लामबन्द हैं उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे। नागरिकता संशोधन विधेयक जिस वक्त सरकार ने लागू करा लाखों लोग उसका अपोज करने के लिए सड़कों पर उतर गये हैं हालांकि सरकार ये ही कहती रही है कि तीन मुस्लिम देशों से प्रताड़ित होकर जो लोग भारत आये हैं उनको इस कानून के तहत नागरिकता प्रदान की जायेगी। अब सवाल ये है कि धार्मिक प्रताड़ना कैसी होती है? इसे समझने में इतना वक्त क्यों लगा? जबकि सच सबके सामने है क्या इस पर भी कोई प्रोटेस्ट करेगा?क्यों खामोशी है? क्या मानवीय संवेदनाओं का इस प्रताड़ना से कोई लेना देना नहीं है? अगर लेना देना नहीं है तो फिर क्यों सियासी मोहरे बनकर भीड़ जमा कर रहे हो? कम से कम ये तो देखिये कि हमने किस देश में रहकर कैसे संस्कार अधिग्रहित किये हैं। 


अगर आप सच में संवेदनहीन नहीं हैं तो इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि ऐसे समय में पाकिस्तान ने सुनियोजित तरीके से गुरूद्वारे पर न सिर्फ जुमे के दिन हमला किया वल्कि हिन्दुस्तान में रह रहे तमाम मुस्लिमों को अलग-थलग करने का काम किया है,जिन्होंने अपना संयम तोड़ते हुये नागरिकता संशोधन के खिलाफ जुमे का दिन चुना।  आखिर इन सारी बातों के पीछे जुमा ही बदनाम क्यों? जबकि ये बात प्रचारित की जाती रही है कि मस्जिदों में जुमे के दिन ही ऐसी कार्य योजनाओं को अंजाम दिये जाता हैं ‘दैन एू आर सस्पैक्टेड’ क्यों आप नहीं सोचते कि इन बातों का असर आपके धर्म को कमजोर कर रहा है । इसमें वे लोग भी शामिल हो जाते हैं जिन्हें इन बातों से कोई लेना देना नहीं होता।


बहरहाल आज देश के अन्दर जो भी हालात बनाये या पैदा करे जा रहे हैं वो किसी भी नजरिये से शुभ संकेत नहीं कहे जा सकते हैं। पाकिस्तान में गुरूनानक देव जी की जन्म स्थली ननकाना साहिब गुरूद्वारे पर हुये हमले की पृष्ठभूमि में देखिए कि किस तरह से वहां अल्पसंख्यक प्रताड़ित हो रहा है जो अपने धर्म का आस्तित्व बचाने के लिए अपनी इज्जत कुर्बान करने को मजबूर है,लेकिन हिन्दुस्तान में सी.ए.ए. के विरोध में खुद सिक्ख सड़कों पर हैं ? क्या धर्म का भी राजनीतिकरण हो चुका जिसमें मानवता का ईंधन जलाकर राजनीतिज्ञ अपने हाथ सेंक रहे हैं। आज जो भी पाक्स्तिान में हुआ उसकी सभी धर्मों को भत्र्सना करनी चाहिए ये ऐसा समय है जब आप अलग-अलग टुकड़ों में बंटकर अपने लिए आवाज उठायेंगे ऐसे में न तो आपकी आवाज सुनी जायेगी और न ही आप अपने धर्म को सुरक्षित रख पायेंगे। लिहाजा जरूरत है कि धर्म विरोधी ताकतों का मुह तोड़ जबाब दिया जाये इसके लिए सरकार की जवाब देही तय होनी चाहिए।


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