गाड़ियों को बुलेटप्रूफ बनाने की कवायद सवालों के घेरे में, बुलेटप्रूफ ट्रायल में गाड़ी और मोर्चे को गोली ने भेदा

 



दिल्ली/ देश के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल सी.आर.पी.एफ. में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। खासतौर पर आतंकियों और नक्सलियों से लोहा ले रहे जवानों व अफसरों की सुरक्षा के लिए उनकी गाड़ियों को बुलेटप्रूफ बनाने की कवायद अब सवालों के घेरे में है। इस प्रक्रिया के तहत गाड़ियों के साथ साथ विभिन्न जगहों पर बने मोर्चों को भी बुलेटप्रूफ बनाया जाना है। बल के विश्ववसनीय सूत्रों के अनुसार सी.आर.पी.एफ. के बुलेटप्रूफ ट्रायल के दौरान गोली ने वाहन और मोर्चे दोनों को भेद दिया। गोली आसानी से वाहन और मोर्चे के बीच से होती हुई पार होकर निकल गई। इसके पीछे कथित तौर पर विदेश से मंगाए गए घटिया क्वालिटी के स्टील को जिम्मेदार ठहराया गया है। आरोप है कि सी.आर.पी.एफ. की खरीद प्रक्रिया को देखने वाली शाखा ने जर्मन कंपनी 'प्रोटेक्ट' का सेकंड हैंड माल खरीदा है। इस कंपनी के स्टील का रेट 150,180 रुपये प्रति किलो बताया गया है। यह स्टील भी मूल कंपनी से नहीं बल्कि इसके लिए संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी की एक कंपनी से बात की गई। यह स्टील 80 फीसदी मामलों में गोली नहीं झेल पाता। सी.आर.पी.एफ. के सूत्र बताते हैं कि पहले रैमर कंपनी से बुलेटप्रूफ स्टील खरीदने की बात हुई थी। इस कंपनी का स्टील अच्छा माना जाता है, लेकिन यह भी वाहन और मोर्चे पर गोली झेलने के ट्रायल में 50-.50 प्रतिशत कामयाब रहा। अर्थात गोली रूक भी सकती है और नहीं भी। इसका मतलब है कि इस स्टील के पीछे बैठा जवान सुरक्षित नहीं होगा। यह हार्ड स्टील होता है। इसका रेट 200,.210 रुपये प्रतिकिलो बताया गया है। स्वीडन की कंपनी आर्मोक्स से बातचीत की गई। इस कंपनी के स्टील का रेट 350,400 रुपये प्रति किलो था।
हालांकि इस कंपनी के स्टील से बने बुलेटप्रूफ वाहन या मोर्चे 95 फीसदी कामयाब रहते हैं। केवल पांच फीसदी मामलों में यह डर बना रहता है कि गोली स्टील की परत को भेद सकती है। सी.आर.पी.एफ. ने यह स्टील खरीदने की बजाए अबूधाबी से जर्मन कंपनी का सेकंड हैंड माल मंगाया जिसका रेट 150.180 रुपये प्रतिकिलो बताया जा रहा है। जर्मन कंपनी के सेकेंड हैंड स्टील को जब वाहन और मोर्चे पर लगाकर उसका ट्रायल किया तो नतीजे देखकर आंखें खुली रह गई। एक बार नहीं कई दफा फायर किया गया। गोली कभी तो वाहन के भीतर तक चली जाती और कभी उसे भेद कर पार भी चली गई। सूत्रों का कहना है कि बल आगे के लिए इसी स्टील को खरीदने का मन बना रहा है। सी.आर.पी.एफ. में कई वर्षों से प्रोविजनिंग शाखा का कामकाज देख रही आईजी अनुपम कुलश्रेष्ठ का कहना है कि ऐसी कोई बात नहीं है। ट्रायल में सफलता मिलने के बाद ही कोई वस्तु खरीदी जाती है। आप डी.जी से बात कर लें। उन्होंने कहा, वैसे ये मामला तो मेरी जानकारी में नहीं है। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि बुलेटप्रूफ सामग्री में घटिया क्वालिटी के स्टील का इस्तेमाल हुआ है तो उन्होंने कहा, हम सारी चीजें जांच करते हैं। कोई चीज ट्रायल में फेल है तो उसे नहीं खरीदेंगे। वैसे आप डीजी से ही इस मामले में बात कर लें।


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