दूषित राह पकड़ती छात्र राजनीति

 




सलीम रज़ा 



जब-जब देश में सरकार के द्वारा कोई भी कदम उठाया जाता है उसके बाद सड़कों पर उतरकर छात्रों के हिंसक प्रदर्शन को देखकर लगता है कि छात्र राजनीति दूषित राह पर चल पड़ी है। उनके उपद्रव और राजनीतिक संरक्षण देखकर सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि क्यों वे बड़े नेताओं को सड़कों पर तांडव मचवाने के लिए अपने कन्धे उधार दे देते हैं। हम काफी अर्से से देख रहे हैं कि जे.एन.एू. ए.एम.यू. जामिया, बी.एच.यू ,इलाहाबाद, वगैराह-बगैराह के छात्र समय-समय पर उग्र प्रदर्शन करके न सिर्फ सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाते है,ं वल्कि कानून व्यवस्था को भी तार-तार कर देते हैं। आज छात्रों को जो रोल है उसने पूरे देश में एक ही पैगाम दिया है कि छात्र राजनीति की जरूरत क्यों और क्या है ? सही मायनों में कालेज प्रांगण के अन्दर तो सियासत होनी ही नहीं चाहिए। अब तो छात्र यूनियनें भी राजनीतिक पार्टियों की होकर रह गईं अब ऐसा नहीं लगता कि छात्र राजनीति मानों रसातल की तरफ अग्रसर होने लगीं । 


काश पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त लिंगदोह की सिफारशें लागू हो जातीं तो शायद आज छात्र राजनीति की ये भयानक तस्वीर न होती जिसमें उन घुमक्कड़  प्रवृति के लोगों को राजनीति करने का मौका दिया जिन्हें राजनीति क्या होती है जानना होगा? मदन मोहन मालवीय जी ने अपने एक लेख में कहा था, जब तक राष्ट्र पर कोई बड़ा संकट नहीं आये तब तक छात्रों को राजनीति से दूरी रखनी चाहिए और अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर केन्द्रित करना चाहिए, ताकि वो एक वुद्धिजीवी नागरिक बन सकें और देश की तरक्की में अपना येगदान दे सकें। लेकिन ये छात्रों के साथ राजनीति का एक भद्दा मजाक नहीं तो और क्या है ? जिसे हम आजादी के बाद से अब तक के सफर में महसूस कर रहे हैं। यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी समझता हूं कि मेरी बात अलग न हो जाये और छात्रों को लगे कि मैं उनके खिलाफ हूं आपको ये बता दूं कि छात्र राजनीति का दोहन और उनका सदुपयोग करने वाले कहां से आये क्योंकि  जब छात्र अपने हितों के लिए लड़ते-लड़ते थक गया तो उसने राजनीति सक्रिय राजनीति की पाठशाला में तब्दील करके रख दी, क्योंकि कोरे आदर्शों के दम पर चलकर रोजगार पाना आज भी असंभव है, और सभी राजनीतिक पार्टियां उनके हितों को नजर अन्दाज करती चली गईं। राजनीतिक पार्टियों ने उनके अन्दर विरोध का बीज बो दिया और उसी का नतीजा है कि आज जिस तरह से छात्र नेता 'पार्टी समर्थित' सड़कों पर उतरकर बड़ी बेरहमी से सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुचाते हैं वो किसी भी हालत में ठीक नहीं है।


 हम देखते हैं कि छात्र राजनीति में भी राष्ट्रीय पार्टियां अपना दखल खूब रखती है,सवाल ये उठता है कि वो इस बात से इत्तेफाक रखती हैं कि छात्रों को सड़कों पर उतारकर ये देखा जाये कि उनके अन्दर किस तरह की क्षमता है कि नहीं जिसकी वो तवक्कों करते हैं? लेकिन ये कम से कम आज के दौर में ठीक नहीं है जब देश अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर नहीं ला पा रहा है ,ऐसे में जरूरी है कि छात्रों को राजनीति की शिक्षा के साथ व्यवहारिक समझ होना भी बहुत जरूरी है। आज जितनी भी राष्ट्रीय पार्टियां हैं उनका भी दायित्व बनता है कि वे छात्रों कों लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली से रूबरू करायें साथ ही उन्हें इस बात की भी जिम्मेदारी दी जाये कि वे राष्ट्रीय हित में अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित करें। मेरा मानना है कि सभी पार्टियों के लिए छात्र महज सड़को पर उतरकर तोड-़फोड़ मचाने आगजनी करने के साथ सत्तारूढ़ पार्टी के अन्दर खौफ पैदा करने के हथियार के रूप में ही इस्तमाल किये जाते हैं। जाहिर सी बात है कि अपने निहित सवार्थ के लिए जब-जब राजनीतिक पार्टियां छात्रों का इस्तेमाल करती हैं तो वे ये भूल जाती हैं कि उनके द्वारा किया गया कृत्य राष्ट्र के साथ विश्वासघात है।  ये एक ऐसा चक्र है जो सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ देखने को मिल जाता है, चाहें कोई भी छात्र संगठन हो। 


बहरहाल, दन दिनों देश के अन्दर जो कुछ भी हुआ वो कोई नया नहीं है लेकिन देश के बड़े इदारों में पढ़ने वाले छात्रों से ऐसी उम्मीद नहीं थी । क्या इसी को कहते हैं छात्र राजनीति? जिसका नंगा रूप देखने को मिला जहां उन्होंने प्रशासन को भी अपना कोपभाजन का शिकार बनाया ये किसी भी हालत में ठीक नहीं है । अगर छात्र और वो लोग ठीक मानते हैं तो इस बात में कोई शक नहीं है कि छात्र राजनीति का अपराधीकरण करने में बड़ी पार्टियों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। मेरा ये ही मानना है कि छात्र राष्ट्रहित की बात करें, सही गलत को समझने का माद्दा रखें अपनी राजनीति का प्रयोंग पार्टी बिशेष को खुश करने के वजाय देश हित के लिए करें। सबसे बड़ी बात है कि राजनीति में अपराधी तत्वों को दूर रखने के लिए उन्हें छात्र राजनीति की शिक्षा प्रदान की जाये छात्र राजनीति जरूरी है अपने हक की लड़ाई के लिए लेकिन उन्हें अपने आप को छात्र जीवन से विरक्त नहीं होना चाहिए। छात्र राजनीति का बस एक मूल मंत्र है, कि उनका अपनी शिक्षा के महत्व को राजनीति के समक्ष देखकर आगे बढ़ना ही उनकी जिम्मेदारी है। क्योंकि वे देश का भविष्य हैं अगर वे पढ़ेंगे आगे बढ़ेंगे तभी राष्ट्र निर्माण में वे अपनी सहभागिता और साझेदारी सुनिश्चित कर पायेंगे। 


टिप्पणियाँ

Popular Post