माशेलकर समिति को लेकर ठाकरे सरकार पर लगाए आरोप बेबुनियाद: राउत

 


शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने एक बार फिर भाजपा पर तीखा हमला बोला है। इस बार मुद्दा बना है महाराष्ट्र में तीन-भाषा नीति और माशेलकर समिति की रिपोर्ट को लेकर भाजपा की ओर से किए जा रहे दावे। राउत ने मीडिया को संबोधित करते हुए भाजपा पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि झूठ बोलना भाजपा की राष्ट्रीय नीति बन चुका है।

राउत ने कहा कि भाजपा महाराष्ट्र में उसी रणनीति के तहत कार्य कर रही है, जिसमें सच्चाई को तोड़ा-मरोड़ा जाता है और गलत सूचनाएं फैलाई जाती हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर भाजपा की उस टिप्पणी को खारिज किया, जिसमें कहा गया था कि माशेलकर समिति की रिपोर्ट ठाकरे सरकार के दौरान पेश की गई थी। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि यदि यह रिपोर्ट वास्तव में ठाकरे सरकार के कार्यकाल में पेश की गई थी, तो उसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?

राउत ने स्पष्ट कहा कि यदि माशेलकर समिति की रिपोर्ट वाकई कैबिनेट में रखी गई थी, तो क्या उस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए थी? उन्होंने भाजपा पर यह भी आरोप लगाया कि पार्टी ने जबरन कैबिनेट में हिंदी थोपने की कोशिश की, जो कि राज्य की भाषायी विविधता और आत्मसम्मान के खिलाफ है। राउत ने यह सवाल भी उठाया कि अगर कोई नीति ‘राष्ट्रीय नीति’ के नाम पर राज्यों पर थोपी जाती है, तो उस पर सार्वजनिक चर्चा क्यों नहीं की जाती?

संजय राउत ने उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को निशाने पर लेते हुए कहा कि वह तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, फिर भी इस तरह के झूठे आरोपों में शामिल हो रहे हैं। क्या उन्हें इतना भी ज्ञान नहीं है कि समिति की सिफारिशों को कैसे और कब लागू किया जाता है?

यह बयान उस समय आया है जब महाराष्ट्र सरकार को विपक्ष की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। सरकार पर आरोप है कि वह राज्य पर 'हिंदी भाषा थोपने' की कोशिश कर रही है। विपक्ष, खासकर शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी, लगातार इसे महाराष्ट्र की मातृभाषा मराठी के अस्तित्व के लिए खतरा बता रहे हैं। इस विरोध के चलते महाराष्ट्र सरकार को तीन-भाषा नीति के दो आदेशों को वापस लेना पड़ा।

महाराष्ट्र सरकार के एक प्रेस नोट के अनुसार, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 24 जून को घोषणा की थी कि तीन-भाषा फॉर्मूला पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में माशेलकर समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि उस समय इसके लिए एक कार्यान्वयन पैनल भी बनाया गया था।

हालांकि, संजय राउत और विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह बयान पूरी तरह भ्रामक है और जनता को गुमराह करने की कोशिश है। इस पूरे प्रकरण ने महाराष्ट्र की राजनीति में भाषाई अस्मिता को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। भाजपा जहां इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति से जोड़कर देख रही है, वहीं विपक्ष इसे मराठी संस्कृति पर हमले के तौर पर प्रचारित कर रहा है।इस विवाद ने राज्य की राजनीति को गरमा दिया है और आने वाले दिनों में इस पर और तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल सकती हैं।

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