केरल में 33 सीटों पर असरदार ईसाई, जिन्हें अपने पाले में लाने की छिड़ी लड़ाई

  

केरल में लेफ्ट की एलडीएफ और कांग्रेस की यूडीएफ के बीच बारी-बारी से सत्ता का स्थानांतरण होता रहता है। इसके साथ ही राज्य में बीजेपी खुद को राज्य में इन दोनों के विकल्प के तौर पर पेश कर रही है। केरल में 27 प्रतिशत मुस्लिम, 18 फीसदी ईसाई और 55 प्रतिशत हिंदू आबादी है। राज्य की ईसाई आबादी एर्नाकुलम, इडुक्की और पठानमिथिट्टा जिलों की 33 सीटों पर जीत-हार के परिणामों को प्रभावित करती है। आम तौर पर कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले इस समुदाय पर वाम और बीजेपी दोनों की नजरें टिकी हैं। राज्य में सबसे बड़ी ईसाई पार्टी केरल कांग्रेस (एम) के औपचारिक विभाजन के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। जबकि केसी (एम) पिछले 40 वर्षों से कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ का सहयोगी था। लेकिन पार्टी का आधिकारिक गुट अब पार्टी के दिवंगत अध्यक्ष केएम मणि के बेटे जोस के मणि के नेतृत्व में काम कर रहा है। केरल कांग्रेस एम ने इस बार सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ की ओर रुख किया है। इसके साथ ही एलडीएफ की ओर से केरल कांग्रेस (एम) को इस बार 13 सीटें दी गईं हैं जो कि सूबे में ईसाई वोट की महत्ता बताने के लिए काफी हैं। और तो और सीपीएम ने पार्टी कैडरों के विरोध को दरकिनार करते हुए अफनी 25 वर्षों से जीती परंपरागत सीट पठानमथिट्टा की रान्नी भी केसी (एम) को दे दी। दूसरी ओर अनुभवी पीजे जोसेफ के नेतृत्व में प्रतिद्वंद्वी केसी (एम) गुट यूडीएफ के साथ है। कोट्टायम, इडुक्की और पठान- अमित्ता जिलों में उन्हें 9-10 सीटें मिलने की संभावना है। 

चर्च का झगड़ा

साल 2017 के सुप्रीम कोर्ट के फैसला जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने जेकोबाइट या मलरांका चर्च के तहत 1100 पादरियों के समूह और उनके चर्चों का नियंत्रण ऑर्थोडॉक्स धड़े को सौंपने का आदेश दिया था। जिसके के बाद केरल में पहला विधानसभा चुनाव हैं, अपने चर्चों के नुकसान के बाद जेकोबाइट 8-10 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। हाल के स्थानीय निकाय चुनावों मेंराज्य सरकार द्वारा अध्यादेश लाए जाने के बाद जैकबाइट गुट ने एलडीएफ का समर्थन किया और दोनों गुटों के विश्वासपात्रों को एक ही दफन जमीन का उपयोग करने की अनुमति दी गई। लेकिन समुदाय सीपीएम की अगुवाई वाली सरकार से कानून लाने में नाकाम रहने के कारण '' अपने हितों की रक्षा न कर पाए जाने की वजह से नाराज हैं। लंबे समय से चले आ रहे विवाद का हल खोजने के लिए, जैकोबाइट गुट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित आरएसएस-भाजपा नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की है। कहा तो ये भी जा रहा है कि यदि पार्टी उनके अधिकारों के संरक्षण का आश्वासन बीजेपी की ओर से दिया जाता है तो आगामी चुनावों में भी भाजपा के लिए समर्थन करेगी। संयोग से, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी सी चाको, जिन्होंने बीते दिनों पार्टी को अलविदा कहा है भी जेकबाइट गुट के हैं। रूढ़िवादी समुदाय के प्रमुख राजनीतिक चेहरा कांग्रेस के ओमन चांडी को केरल चुनाव का प्रभार दिया गया, चर्च नेतृत्व यूडीएफ के समर्थन में दिख रहा है। दिलचस्प बात यह है कि चेंगन्नूर निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के समर्थन में रूढ़िवादी गुट भी सामने आया है। कहा जाता है कि बीजेपी-आरएसएस के हस्तक्षेप के बाद क हजार साल पुराने रूढ़िवादी चर्च को विध्वंस से बचाया जा सका। 2016 के विधानसभा चुनाव में चेंगन्नूर में भाजपा को 16% वोट मिले थे।

हिंदू-ईसाई वोट पर नजर

ईसाई मतदाताओँ को अपने पाले में करने के लिए बीजेपी हो या सीपीएम दोनों की ओर से यूडीएफ का नियंत्रण आईयूएमएल के हाथों में होनी की बात कही जा रही है। जबकि सीपीएम ने आरोप लगाया है कि आईयूएमएसल, य़ूडीएफ और दक्षिणपंथी संगठन जमात-ए-इस्लाम के बीच एक पुल का काम करती है। वहीं बीजेपी की कोशिश मुस्लिम अतिवाद के मुद्दे को उठाकर केरल में ईसाई और उच्च जाति के हिंदू मतदाताओं को एक साथ लाने की है। कुछ वक्त पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मलंकारा चर्च से जुड़े चार सौ साल पुराने विवाद में अपने स्तर पर बात की।  वहीं मलंकारा ऑर्थोडॉक्स और जैकबाइट चर्च ने आरएसएस के मनमोहन वैद्य से फोन पर बात की। 


Sources:Prabhashakshi

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