बदलता जा रहा है नया साल मनाने का स्वरूप - कहकशा नसीम

 

 
       कहकशा नसीम

  (प्रभागीय वनाधिकारी,मसूरी वन प्रभाग)

कुछ ऐसे दिन होते हैं जिनको मनाने के पीछे कुछ न कुछ छिपा होता है जिसके जश्न और उल्लास में कोई कमी नहीं होती, उसकी खास वजह ये है कि इनमें किसी भी तरह का जाति,धर्म का बन्धन नहीं होता। ऐसा ही नये साल को सेलीब्रेट करने का दिन भी है जिसके स्वागत के लिए लोग तरह-तरह की योजनाऐं पूर्व नियोजित कर लेते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं वैसे-वैसे नये साल को सेलीब्रेट करने का अन्दाज भी बदलता जा रहा है जिसमें संकल्पों का अभाव और इस दिन को ढ़ोने का खुमार के साथ शोर ज्यादा है। इस खुमार में उम्र का भी कोई बन्धन नहीं होता हां ये जरूर देखा जाता है कि इस दिन हर कोई विश करना नहीं भूलता जिसको देखकर कहा जा सकता है कि ये दिन महज औपचारिकताओं तक सिमट कर रह गया है। बहरहाल साल 2020 त्रासदी भरा रहा पूरा साल कोरोना जैसी महामारी की भेंट चढ़ गया जिसमें असंख्य लोग दुनिया को अलविदा कह गये न जाने कितने बच्चों के सिर से माता-पिता का साया छिन गया लेकिन अभी भी कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है, फिर नया साल मनाने का औचित्य ही नहीं रह जाता। होना तो ये चाहिए कि हम नये साल में संकल्प लें कि हमें उन लोगों के लिए कुछ न कुछ करना है जिनके परिवार के वे लोग जो अपने परिवार की अजीविका का साधन थे उनके लिए कुछ करा जाऐ नये साल के जश्न में बर्बाद होने वाले धन को इन बेसहारा लोगों तक पहुंचाया जाऐं जिससे नये साल को मनाने का सही संदेश लोगों तक पहुंच सके। 


By- Saleem Raza

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