किसी ने नहीं सुना तो कोटाड़ के ग्रामीणों ने श्रमदान से शुरू किया 3 किलोमीटर सड़क निर्माण


उत्तराखंड सरकार भले ही गांव-गांव में सड़क पहुंचाने के विज्ञापनों से मीडिया का मुंह बंद कर चुकी हो लेकिन आए दिन सोशल मीडिया पर यह खबरें सुर्खियां बन रही हैं कि, कोई न कोई गांव सरकार से हताश निराश होकर खुद ही सड़क निर्माण श्रमदान से शुरू कर रहा है। लॉकडाउन में ही उत्तराखंड के कई गांवों में बाहर से लौटे प्रवासी युवाओं के साथ मिलकर ग्रामीणों ने श्रमदान से अपने-अपने गांव के लिए सड़कें बना डाली है। ऐसा ही एक गांव रानीखेत विधानसभा के अंतर्गत ताड़ीखेत ब्लॉक का सुदूर कोटाड़ गांव है। लंबे समय से सरकार से मांग करने के बावजूद जब सरकार ने उनकी मांग अनसुनी कर दी तो फिर ग्रामीणों ने थक हार कर खुद ही अपने गांव के लिए तीन किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य शुरू कर दिया।


किसी ने नहीं सुना तो कोटाड़ के ग्रामीणों ने श्रमदान से शुरू किया 3 किलोमीटर सड़क निर्माण


उत्तराखंड सरकार भले ही गांव-गांव में सड़क पहुंचाने के विज्ञापनों से मीडिया का मुंह बंद कर चुकी हो लेकिन आए दिन सोशल मीडिया पर यह खबरें सुर्खियां बन रही हैं कि, कोई न कोई गांव सरकार से हताश निराश होकर खुद ही सड़क निर्माण श्रमदान से शुरू कर रहा है। लॉकडाउन में ही उत्तराखंड के कई गांवों में बाहर से लौटे प्रवासी युवाओं के साथ मिलकर ग्रामीणों ने श्रमदान से अपने-अपने गांव के लिए सड़कें बना डाली है। ऐसा ही एक गांव रानीखेत विधानसभा के अंतर्गत ताड़ीखेत ब्लॉक का सुदूर कोटाड़ गांव है। लंबे समय से सरकार से मांग करने के बावजूद जब सरकार ने उनकी मांग अनसुनी कर दी तो फिर ग्रामीणों ने थक हार कर खुद ही अपने गांव के लिए तीन किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य शुरू कर दिया।


लॉकडाउन के बाद गांव के तमाम युवक अपने गांव लौट आए और यहां पर जब उन्होंने अपने गांव की हालत देखी तो फिर उन्होंने खुद ही कुछ करने की ठानी। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि चुनाव में जनप्रतिनिधि आते हैं और आश्वासन दे जाते हैं लेकिन उनकी सड़क पर किसी ने भी कार्रवाई शुरू नहीं की। कई बार उत्तराखंड सरकार को लिखा, यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र व्यवहार किया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हो पाई।


ग्रामीणों का कहना है कि, कई बार तबीयत खराब होने पर इतने लंबे रास्ते से मरीज को कंधे पर ले जाने के चलते मरीज की तबीयत और भी अधिक बिगड़ जाती थी। सड़क से 3 किलोमीटर दूर इस गांव मे भारी सामान लाना ले जाना भी एक बड़ी समस्या थी। कई बार स्थानीय विधायकों को कहा भी, लेकिन किसी ने नहीं सुनी तो फिर खुद ही सड़क निर्माण करने की ठानी। बहरहाल पिछले तीन-चार दिन से कोटाड़ गांव के सभी बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं, युवा गैंति, कुदाल, दरांति, सब्बल, फावड़ा लेकर सुबह से शाम तक जुटे हुए हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गांव वालों का उत्साह देखते ही बनता है। उम्मीद है जल्दी ही ग्रामीण अपनी मेहनत की एक नई मिसाल पेश करेंगे।


Source :Parvatjan 


 


 


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