बाजार खुले, अब मन्दिरों की बारी


देहरादून। लाकडाउन चार के अंतिम चरण में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा पूरे राज्य में बाजारों को सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक खोल दिया गया है। वहीं एक जून के बाद सूबे के चार धामों सहित अन्य सभी धार्मिक स्थलों को खोलने की तैयारी चल रही है।


एक तरफ राज्य में कोरोना संक्रमण के आंकड़े हर रोज एक नया रिकार्ड बना रहे है वहीं दूसरी ओर लाकडाउन की सभी पाबंदियंों को समाप्त करने की दिशा में शासन—प्रशासन उतावला दिखायी दे रहा है। सरकार सभी पाबंदियों को हटाना चाहती है साथ ही सोशल डिस्टेंििसंग का पालन और अधिक कड़ाई से कराने की बात कर रही है। क्या जब सभी लोग घरोें से बाहर निकलेंगे तो सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन संभव है? क्या प्रशासन के पास इतने सुरक्षाकर्मी है। जो सड़कों और चौराहों से लेकर बाजारों की दुकानों तक निगरानी कर सकें। ढील का नतीजा अगर कोरोना के पब्लिक ट्रांसमीशन तक पहुंुचा तो क्या होगा? ऐसे कई सवाल है जिनका जवाब नहीं है।


सरकारों को अब सिर्फ अपनी आर्थिक सेहत की चिंता है और इसके लिए वह कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है। मन्दिरों और धार्मिक स्थलों को खोले बिना राज्य का वह पर्यटन पटरी पर नहीं आ सकता जो जीरो हो चुका है। यही कारण है कि सरकार न सिर्फ चार धामों और अन्य धार्मिक स्थलों को खोलने की तैयारी में है बल्कि अन्य सभी पर्यटक स्थलों को भी खोलने जा रही है। सीएम का कहना है कि अगर केन्द्र सरकार लाकडाउन पार्ट फाइव में ऐसी छूट देती है तो मन्दिरों को श्रद्धालुओं की सीमित संख्या और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ खोला जायेगा। लेकिन साथ ही उनका कहना है कि केन्द्र सरकार जो गाइड लाइन तय करती है उन्हे तो मानना ही पड़ेगा। उधर राज्य का परिवहन विभाग भी अब तक 80 करोड़ का नुकसान कोरोना के कारण उठा चुका है। इसलिए रोडवेज बसों के संचालन पर चर्चा जारी है। लेकिन इस सबके बीच यक्ष प्रश्न यही है कि इन तमाम पाबंदियों के हटने से कोरोना बेकाबू हुआ तो क्या होगा? और कौन इसके लिए जिम्मेदार होगा?


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