आहिस्ता - आहिस्ता

विस्तृत,अनंत, शांत आसमान में,
खामोशी को समेटे आहिस्ता- आहिस्ता,
विचरता पूरी रात का आधा चांद।

अनगिनत प्रेमी- प्रेमिकाओं के प्रेम संदेश लिए,
भटक रहा है यहां से वहां।
उसके इस भटकाव में साथी हैं,
निहारिका परिवार के असंख्य तारे।

टटोलती रहती हूं उसकी धुंधली चांदनी में,
तुम्हारी प्रेम की सुनहरी चादर,
जो ढके हुए हैं मुझे नख से शिख तक।

तुम्हारी छुअन की अनुभूति लिए,
लिपट जाती हैं मुझसे उसकी रजत किरणें।
सपनों की आकाशगंगा पर उभर आते हैं,
रुपहली यादों के कुछ छायाचित्र।


 

प्रेषक :कल्पना सिंह

पता: आदर्श नगर ,बरा, रीवा( मध्य प्रदेश)

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