हर साल उत्‍तराखंड रोडवेज में 180 बसें  हो रही हैं कंडम

 


 





देहरादून/रोडवेज में हर दूसरे दिन एक बस कंडम हो रही, यानी प्रत्येक माह पंद्रह बसें। तय किलोमीटर और साल के हिसाब से कंडम बसों को बस बेड़े से बाहर कर देना चाहिए मगर रोडवेज ऐसी बसों को घसीटे जा रहा। ऐसा इसलिए भी क्योंकि यहां नई बसों की खरीद भी मानक के अनुसार नहीं हो रही। नियमानुसार बेड़े में हर साल 180 नई बसें शामिल करने की जरूरत है, मगर हर साल तो दूर, यहां चार-चार साल तक नई बसों की खरीद नहीं होती। कंडम बसें ही सड़क पर धकेली जा रहीं हैं। ऐसे में चलती बस में आग लगना, स्टेयङ्क्षरग अचानक जाम हो जाना, कमानी टूट जाना या अन्य तकनीकी परेशानी जैसी घटनाएं आएदिन सामने आ रही हैं। ये आशंका भी है कि कहीं बस के ब्रेक फेल न हो जाएं और...। परिवहन निगम के तय नियमानुसार एक बस अधिकतम छह साल या आठ लाख किलोमीटर तक चल सकती है। इसके बाद बस की नीलामी का प्रावधान है, मगर यहां ऐसा नहीं हो रहा। परिवहन निगम के पास 1323 बसों का बेड़ा है। इनमें साधारण व हाईटेक बसों के अलावा 180 वाल्वो और एसी बसें भी शामिल हैं। इनमें करीब 800 बसें रोजाना ऑनरोड होती हैं जबकि बाकी विभिन्न कारणों से वर्कशॉप में। इनमें 300 बसें कंडम हो चुकी हैं और इनकी नीलामी हो जानी चाहिए थी, पर निगम इन्हें दौड़ाए जा रहा है। रोडवेज के सेवानिवृत्त कार्मिक राम चंद्र रतूड़ी भी मानते हैं कि यहां बसों की खरीद तय प्रक्रिया के तहत नहीं हो रही है। उनकी मानें तो एक साथ नई बसों की खरीद होगी तो ये सभी बसें एक समय पर रिटायर हो जाएंगी। अगर, माहवार खरीद होती रहे, तो निगम आदर्श-स्थिति तक जा सकता है। उत्तराखंड परिवहन निगम में पहला नया बस बेड़ा जुड़ा वर्ष 2004-05 में नारायण दत्त तिवारी सरकार के दौरान। रोडवेज की जर्जर वित्तीय स्थिति देखते हुए सरकार ने 60 करोड़ रुपये नई बसें खरीदने को दिए, जबकि 33 करोड़ की बैंक गारंटी दी। इस बजट से 450 बसें पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों के लिए खरीदीं गईं। खास बात ये थी कि इसी दौरान परिवहन निगम ने 30 डीलक्स हाईटेक बसें भी खरीदीं। फिर सरकार की नजरें परिवहन निगम से हट गईं और इसी बस बेड़े के जरिए निगम नैय्या पार करने की छटपटाहट में लगा रहा। सवाल उठने लगे तो वर्ष 2011-12 में भाजपा की डा. रमेश पोखरियाल श्निशंकश् सरकार ने 280 बसें देकर कुछ सहारा दिया। पुरानी व नई बसों का बेड़ा करीब 1100 पहुंचा लेकिन वित्तीय स्थिति नहीं सुधरी।इनमें वातानुकूलित और वाल्वो बसें शामिल हैं। जून-2016 तक 1323 बसों के बेड़े से ही सड़क पर चलता आया, मगर वक्त गुजरने के साथ इनमें से 300 बसें कंडम हो गईं। इस अवधि में हरिद्वार महाकुंभ व अर्धकुंभ समेत चारधाम यात्राएं गुजर गईं। 2017 में रोडवेज ने 100 करोड़ रुपये की सरकारी मदद से 483 नई बसें अपने बेड़े में जोड़ी लेकिन इन बसों की खरीद सवालों में घिर गई। ये बसें आउट-डेटेड यूरो-3 श्रेणी की थी, जबकि भारत सरकार इनकी खरीद पर रोक लगा चुकी थी। अब फिर 300 बसों की खरीद की प्रक्रिया की गई, लेकिन यह बसें भी विवादों में घिर गईं।


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