पेयजल निगम में बह रही उल्टी गंगा,वरिष्ठता में 63वां स्थान वाला  बन बैठा मुखिया



देहरादून/ पेयजल निगम में उल्टी गंगा बह रही है। जो अधिकारी वरिष्ठता क्रम में 63वें स्थान पर हैं वह प्रबंध निदेशक बने बैठे हैं। ऐसा नहीं है कि इनके ऊपर के अधिकारी रिटायर हो गए हैं बल्कि छह.छह अधिकारी अब भी निगम में सेवारत हैं और रोज कुढ़ रहे हैं। वाईके मिश्रा, डीसी पुरोहित, एनएस बिष्ट, एसके पंत, एलएम कर्नाटक और एसके जैन ये सभी प्रबंध निदेशक भजन सिंह से वरिष्ठ हैं। अब इसे संयोग कहें या सोची.समझी चाल कि सभी की सीआर खराब की जा चुकी है। दो रिटायर्ड अधिकारी एनके गुप्ता और राजेश्वर प्रसाद के लिए तो मुखिया की आस मुंगेरीलाल के सपनों में बंद हो चुकी है। भजन सिंह भी कोई आज के प्रबंध निदेशक नहीं हैं। वह तो 2009 से इस ऊंची कुर्सी पर आसीन हैं। इनकी अजेय वरिष्ठता के आड़े कोई नीति भी नहीं आ रही। सवाल खड़े हो रहे हैं कि ये कैसा जीरो टॉलरेंस है। लोनिवि की 50-50 लाख रुपये की दो मिलिंग मशीन सड़क पर काम करने के बजाए कार्यालय में खड़े.खड़े जंग खा रही हैं। वर्ष 2016-17 में इन मशीनों को इस मकसद से खरीदा गया ताकि इनसे सड़क की ऊपरी अतिरिक्त परत को हटाकर उसे व्यवस्थित रूप दिया जा सके। खैर हमारे अधिकारी मेहनत करने से जी चुराते हैं लिहाजा इन मशीनों को सड़क पर उतारे की भी जहमत नहीं उठाई जा रही। जिस ऊपरी परत को मशीन उखाड़ देती है। उसका 70 फीसद भाग तक दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है। बड़ा सवाल यह है कि जब लोनिवि में हर साल नया काम कर बजट ठिकाने लगाने का रिवाज बन चुका है तब मिलिंग मशीन चलाने से भला कैसे होगा। लिहाजा अधिकारी को मशीनों को बंद रखने में ही अपनी और ठेकेदारों की भलाई समझ रहे हैं। आखिर जो बजट मिल रहा है उसे अपने मुताबिक खपाना भी तो है। रुड़की क्षेत्र के दो पुलों के निर्माण में की गई हीलाहवाली पर देहरादून राजमार्ग खंड के अभियंता जेसी कांडपाल को सहायक अभियंता से डिमोट कर अवर अभियंता बना दिया गया है। यहां तक तक उच्चाधिकारियों ने झटपट कार्रवाई कर दी मगर इसी क्षेत्र में जो दो और पुल बनाए गए हैं उसकी जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। यह पुल भी इन्हीं इंजीनियर की कृपा से बने हैं। कहने को इनकी भी जांच चल रही है मगर फाइलों में। इसकी आंच बाहर नहीं आने दी जा रही। इस तरह विभाग ने कार्रवाई भी कर दी और आगे का मामला भी दबा दिया। शायद डिमोट किए गए अधिकारी की गुजारिश काम कर गई है। यह जांच भी बाहर आ जाती तो शायद मुकदमा दर्ज कर दिया जाता और फिर रिकवरी पक्की हो जाती। इस कृपा के अलग मतलब निकाले जा रहे हैं। क्योंकि कृपा साफ दिख भी रही है। प्रदेशभर में करीब 65 हजार जल स्रोतों में से 70 फीसद का पानी तेजी से घट रहा है। इन्हें रीचार्ज करना तो दूर अफसरों को यह तक पता नहीं कि किस स्रोत को किस तरह रीचार्ज करना है। उनका ध्यान तो महंगी पंपिंग योजनाओं पर है। बेशक इसमें कमीशन का खेल भी खूब खेला जाता हैए मगर जब मरम्मत की बात आती है तो अधिकारी बगलें झांकने लगते हैं।पेयजल विभाग में लंबे समय से इस बात पर बल दिया जा रहा है कि जल स्रोतों को रीचार्ज करने की जरूरत है मगर पेयजल निगम है कि दिन पर दिन टाले जा रहा है। काम मुश्किल है और फील्ड में दूर.दूर भी जाना पड़ेगा लिहाजा पंपिंग योजनाएं अफसरों को अधिक आकर्षित कर रही हैं। फिर इसमें झटपट माल भी मिल जाता है। भले ही खराबी आने पर लोगों को रूखे.सूखे स्रोतों पर ही क्यों न दोबारा निर्भर रहना पड़ जाए। 


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