विश्व फिजियोथेरेपी दिवस : फिजियोथेरेपी: स्वस्थ शरीर, मजबूत मन और संतुलित जीवन का आधार
विश्व फिजियोथेरेपी दिवस हर साल 8 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन पूरी दुनिया में उन विशेषज्ञों को समर्पित है, जो मानव शरीर को स्वस्थ और सक्रिय बनाए रखने के लिए अथक प्रयास करते हैं। यह अवसर न केवल फिजियोथेरेपिस्ट्स के कार्यों को सम्मानित करने का है, बल्कि समाज को यह जागरूक करने का भी है कि फिजियोथेरेपी आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली में कितनी महत्वपूर्ण है। आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली में बढ़ती बीमारियाँ, दुर्घटनाएँ, खेलकूद से जुड़ी चोटें और बढ़ती उम्र के साथ आने वाली चुनौतियाँ फिजियोथेरेपी को पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक बना रही हैं।
फिजियोथेरेपी का इतिहास बहुत पुराना है। माना जाता है कि यूनान और रोम की सभ्यताओं में चिकित्सक प्राकृतिक तरीकों से शरीर को स्वस्थ करने की कोशिश करते थे। व्यायाम, मसाज और प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके शरीर को स्वस्थ रखने की परंपरा भारत की आयुर्वेदिक पद्धति में भी प्राचीन काल से मौजूद रही है। समय के साथ इसमें तकनीकी उन्नति हुई और आज यह आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का अभिन्न अंग बन चुकी है।
फिजियोथेरेपी का मूल सिद्धांत है—“शरीर स्वयं को ठीक कर सकता है, बस उसे सही दिशा और सहयोग की आवश्यकता होती है।” यही कारण है कि फिजियोथेरेपी में दवाओं या सर्जरी पर निर्भरता नहीं होती, बल्कि प्राकृतिक तकनीकों के जरिए शरीर की क्षमताओं को फिर से सक्रिय किया जाता है। इसमें व्यायाम, खिंचाव (stretching), मैनुअल थेरेपी, इलेक्ट्रिकल स्टिमुलेशन, अल्ट्रासाउंड, हाइड्रोथेरेपी और आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है।
आज के समय में लोगों की जीवनशैली अधिकतर बैठने और कंप्यूटर या मोबाइल पर लंबे समय तक काम करने वाली हो गई है। इससे गर्दन और पीठ दर्द, सर्वाइकल, जोड़ों का दर्द और मोटापे से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। वहीं सड़क दुर्घटनाओं और खेलकूद से लगी चोटों के कारण भी बड़ी संख्या में लोग शारीरिक रूप से असहाय हो जाते हैं। ऐसे में फिजियोथेरेपी न केवल उन्हें सामान्य जीवन में लौटने में मदद करती है, बल्कि पुनर्वास (rehabilitation) के जरिए उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाती है।
फिजियोथेरेपी स्ट्रोक (लकवा) के मरीजों के लिए भी जीवनदायी सिद्ध होती है। अक्सर स्ट्रोक के बाद रोगी के हाथ-पैर कमजोर हो जाते हैं या काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे में फिजियोथेरेपिस्ट लगातार अभ्यास और व्यायाम के जरिए मांसपेशियों को सक्रिय करने की कोशिश करते हैं, जिससे रोगी धीरे-धीरे सामान्य जीवन जीने की ओर बढ़ता है। इसी तरह सर्जरी के बाद या हड्डी टूटने पर फिजियोथेरेपी बहुत आवश्यक हो जाती है, क्योंकि यह शरीर को फिर से चलने-फिरने योग्य बनाती है और दर्द को नियंत्रित करती है।
खिलाड़ियों के जीवन में फिजियोथेरेपी का महत्व और भी बढ़ जाता है। चोट लगने के बाद यदि सही समय पर फिजियोथेरेपी न मिले तो खिलाड़ी का करियर तक खतरे में पड़ सकता है। यही कारण है कि आज लगभग हर बड़ी स्पोर्ट्स टीम और अकादमी में फिजियोथेरेपिस्ट्स नियुक्त किए जाते हैं। वे न केवल चोट से उबरने में मदद करते हैं बल्कि खिलाड़ियों की फिटनेस और प्रदर्शन को भी बेहतर बनाते हैं।
बुजुर्गों के लिए भी यह थेरेपी किसी वरदान से कम नहीं है। बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों और जोड़ों की कमजोरी, गठिया और मांसपेशियों की जकड़न आम हो जाती है। फिजियोथेरेपी से न केवल उनका दर्द कम होता है, बल्कि उन्हें फिर से सक्रिय और स्वतंत्र जीवन जीने की ताकत मिलती है। गिरने से बचाव और संतुलन बनाए रखने के लिए भी फिजियोथेरेपी की तकनीकें बेहद उपयोगी होती हैं।
फिजियोथेरेपी दिवस का महत्व सिर्फ इतना नहीं है कि इस दिन हम फिजियोथेरेपिस्ट्स को सम्मान दें। असल मायने में यह दिन समाज को यह संदेश देता है कि दवाइयों और सर्जरी से परे भी स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण रास्ता मौजूद है। लोग अक्सर दर्द से निजात पाने के लिए तुरंत पेनकिलर का सहारा लेते हैं, लेकिन यह केवल अस्थायी समाधान है। इसके विपरीत फिजियोथेरेपी समस्या की जड़ तक जाकर स्थायी राहत प्रदान करती है। यही कारण है कि आज विश्वभर में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।
कोविड-19 महामारी के बाद फिजियोथेरेपी की अहमियत और भी अधिक हो गई। कोरोना संक्रमण से उबरने वाले कई मरीजों को सांस लेने में दिक्कत और मांसपेशियों की कमजोरी का सामना करना पड़ा। फिजियोथेरेपिस्ट्स ने अपनी विशेषज्ञता से इन मरीजों को न केवल सामान्य जीवन में लौटने में मदद की बल्कि मानसिक रूप से भी उन्हें मजबूत बनाया। यह उदाहरण बताता है कि फिजियोथेरेपी सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक आत्मबल को भी बढ़ाती है।
आज के दौर में फिजियोथेरेपी को लेकर एक बड़ी चुनौती यह है कि लोग इसे अंतिम विकल्प की तरह देखते हैं। जब दर्द या समस्या असहनीय हो जाती है, तभी वे फिजियोथेरेपिस्ट के पास पहुंचते हैं। जबकि सही मायनों में यह पहला कदम होना चाहिए। यदि किसी भी शारीरिक असुविधा को शुरुआती चरण में ही फिजियोथेरेपी से ठीक किया जाए, तो बड़े और गंभीर रोगों से बचा जा सकता है।
फिजियोथेरेपी दिवस का संदेश स्पष्ट है—“स्वास्थ्य दवाओं से नहीं, अनुशासित जीवन और सही देखभाल से संभव है।” यह दिवस हमें प्रेरित करता है कि हम अपने शरीर की सुनें, उसे सही पोषण, नियमित व्यायाम और समय पर चिकित्सा दें। फिजियोथेरेपी इस दिशा में हमारी सबसे बड़ी सहयोगी है।
संक्षेप में कहा जाए तो फिजियोथेरेपी केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन को स्वस्थ, स्वतंत्र और सार्थक बनाने का माध्यम है। फिजियोथेरेपिस्ट्स समाज में वह भूमिका निभाते हैं, जिसमें वे न केवल लोगों का दर्द कम करते हैं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी भी बनाते हैं। विश्व फिजियोथेरेपी दिवस उन सभी विशेषज्ञों को सलाम करने का अवसर है, जो अपने ज्ञान और समर्पण से मानव जीवन को आसान, सक्रिय और सुखद बना रहे हैं। यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि स्वास्थ्य केवल बीमारियों से बचाव नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है—और इस कला में फिजियोथेरेपी की भूमिका सर्वोपरि है।
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