बदलते रिश्ते, बढ़ते अपराध: जब विश्वासघात बन जाए हत्या की वजह
(सलीम रज़ा पत्रकार )
हालिया दिनों में पत्नियों क्षरा पतिया की हत्या करने या करवाने के मामलों में बाढ़ सी आ गई है। ऐसा लगता है जैसे सामाजिक ताने-बाने को चीरता हुआ एक ªेंड सा बन गया है। जैसा कि आपको मीडिया माढयमों से जानकारी मिलती रहती है कि आए दिन समाज में रिश्तों की पवित्रता पर सवाल खड़े करने वाली घटनाएं सामने आ रही हैं,जिनमें पत्नी द्वारा पति की हत्या करना या करवाना एक भयावह सच्चाई की शक्ल में उभर कर आ रहा है। यह वह पहलू है जिस पर समाज का ध्यान नहीं है और न ही बात करता है, क्योंकि पारंपरिक दृष्टिकोण में पुरुष को ही अक्सर अपराधी और महिला को पीड़ित माना जाता है। लेकिन बदलते सामाजिक ताने-बाने में कुछ घटनाएं ऐसी भी हो रही हैं जो इस सोच को चुनौती देती हैं।
पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास और सहयोग के धागे पर पर टिका होता है, लेकिन जब यह रिश्ता शक, लालच, अवैध संबंधों या मानसिक असंतुलन की भेंट चढ़ जाता है, तो परिणाम बेहद खौफनाक होते हैं। हालिया के सालों में ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं, जहां पत्नियों ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या की साजिश रची और उसे अंजाम भी दिया। कुछ मामलों में महिलाओं ने संपत्ति के लालच में, तो कुछ में घरेलू विवाद को हिंसा में बदलकर इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया।
इन अपराधों में एक बात सामान्य तौर पर देखी गई है। हत्या एक सुनियोजित योजना के तहत की जाती है। पहले पति को किसी भी तरह से मानसिक रूप से कमजोर किया जाता है, फिर उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाए जाते हैं, और अंततः उसे रास्ते से हटाने की तैयारी की जाती है। इन मामलों में कई बार पत्नी अपने प्रेमी या किसी सहयोगी का सहारा लेती है, जो हत्या को अंजाम देता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह मात्र क्षणिक क्रोध नहीं, बल्कि एक सुनियोजित अपराध है।
कुछ उदाहरणों में देखा गया है कि पति की हत्या के बाद पत्नी रोती-बिलखती नजर आती है, जिससे पहली नजर में वह पीड़िता लगती है। लेकिन जब जांच आगे बढ़ती है, तब धीरे-धीरे एक-एक कर परतें खुलती हैं और पुलिस के सामने हकीकत आती है कि हत्या की मास्टरमाइंड वही महिला थी, जिसने प्यार और भरोसे के नाम पर अपने ही जीवनसाथी के जीवन का अंत कर दिया।
इस प्रकार की घटनाएं सिर्फ शहरी नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी देखी गई हैं, जहां सामाजिक दबाव के कारण अक्सर सच्चाई बाहर नहीं आ पाती या परिवार मामले को दबा देता है। लेकिन डिजिटल साक्ष्य, कॉल रिकॉर्ड, सोशल मीडिया चैट्स और सीसीटीवी फुटेज के जरिए अब कई मामले उजागर हो रहे हैं, जो रिश्तों के भीतर की कलुषता को सामने ला रहे हैं।
यह भी महत्वपूर्ण है कि समाज में पुरुषों के प्रति बढ़ती हिंसा पर गंभीर चर्चा हो। जब महिलाएं अपराध की शिकार होती हैंए तो मीडिया, प्रशासन और समाज उनके पक्ष में खड़ा नजर आता है, जो कि बिल्कुल जरूरी है। लेकिन जब वही हिंसा किसी पुरुष के खिलाफ होती है, तो समाज अक्सर उसे नजरअंदाज कर देता है या उसका मजाक बनाता है। यह प्रवृत्ति न्याय की अवधारणा को ही विकृत करती है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह जरूरी हो गया है कि हम रिश्तों में अपराध के इस नए चेहरे को पहचानें और निष्पक्ष रूप से जांच और न्याय प्रक्रिया सुनिश्चित करें। चाहे अपराधी कोई भी हो- पुरुष या महिला,उसे उसके कृत्य के अनुसार उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए। साथ ही, पुरुषों के लिए भी परामर्श, मनोवैज्ञानिक सहायता और कानूनी संरक्षण की जरूरत बढ़ रही है, जिससे वे भी अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें और हिंसा से बच सकें।
पति की हत्या जैसे मामलों की भयावहता इस बात की ओर संकेत करती है कि रिश्तों में संवाद, पारदर्शिता और आपसी सम्मान को प्राथमिकता देना होगा, वरना घरेलू जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता हिंसा और अविश्वास की बलि चढ़ता रहेगा।
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