"तनाव की कीमत: भारत-पाक रिश्तों की आग में झुलसती अर्थव्यवस्था"
भारत और पाकिस्तान के बीच का तनाव ऐतिहासिक, राजनीतिक, और सामरिक कारणों से बार-बार उभरता रहता है। जब भी दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव या सैन्य झड़प होती है, इसका सीधा और परोक्ष प्रभाव उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ता है। भारत एक उभरती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था है, और पाकिस्तान भी अपनी आंतरिक चुनौतियों के बावजूद आर्थिक स्थिरता पाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में, द्विपक्षीय तनाव न केवल इन दो देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर असर डालता है, बल्कि दक्षिण एशिया की समग्र आर्थिक स्थिरता पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
1. निवेश और विदेशी पूंजी प्रवाह पर असर
जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, तो विदेशी निवेशक अनिश्चितता के कारण सतर्क हो जाते हैं। विशेष रूप से विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) ऐसे समय में भारतीय शेयर बाजार से पूंजी निकालना शुरू कर देते हैं।
भारत में प्रभाव: निवेशकों की यह सतर्कता शेयर बाजार में गिरावट का कारण बन सकती है, जिससे रुपया कमजोर हो सकता है और पूंजी प्रवाह में अस्थिरता आ सकती है।
पाकिस्तान में प्रभाव: पाकिस्तान में पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट है। तनाव बढ़ने पर विदेशी मुद्रा भंडार और निवेश पर और नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
2. बाजारों में अस्थिरता और शेयर बाजार पर प्रभाव
सेना की हलचल, युद्ध जैसे हालात या आतंकी घटनाओं की प्रतिक्रिया के तौर पर शेयर बाजार में घबराहट पैदा होती है। सेंसेक्स और निफ्टी जैसे प्रमुख सूचकांक गिर सकते हैं।
उदाहरण: उरी (2016) या पुलवामा (2019) हमले के बाद देखा गया कि भारत के शेयर बाजारों में अस्थिरता आई थी।
3. रक्षा खर्च में वृद्धि
तनावपूर्ण माहौल में सरकारें अक्सर रक्षा बजट बढ़ाने पर जोर देती हैं, जिससे विकासात्मक परियोजनाओं और सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए फंड कम पड़ सकता है।
भारत में: रक्षा खर्च पहले ही कुल बजट का बड़ा हिस्सा होता है। तनाव के चलते हथियारों की खरीद, सैन्य तैनाती और प्रशिक्षण पर और अधिक खर्च किया जाता है।
पाकिस्तान में: सीमित संसाधनों के कारण रक्षा खर्च में थोड़ी सी भी वृद्धि सामाजिक सेवाओं जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है।
4. व्यापारिक संबंधों पर असर
भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार पहले ही सीमित है, लेकिन तनाव की स्थिति में यह पूरी तरह रुक सकता है।
2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को दिया गया 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' (MFN) का दर्जा वापस ले लिया।
सीमा पार व्यापार रुकने से दोनों देशों के छोटे व्यापारियों और कारीगरों पर प्रभाव पड़ता है।
5. पर्यटन और सेवा क्षेत्र पर प्रभाव
तनावपूर्ण माहौल में पर्यटक यात्रा करने से हिचकते हैं, जिससे पर्यटन उद्योग प्रभावित होता है।
भारत में: जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में पर्यटन पर सीधा असर पड़ता है, जिससे रोजगार और आय में गिरावट आती है।
सेवा क्षेत्र: हवाई उड़ानें रद्द होने, बीमा दरों में वृद्धि और सुरक्षा खर्च बढ़ने से सेवा क्षेत्र पर दबाव बढ़ता है।
6. जनमानस और उपभोक्ता विश्वास में गिरावट
जब लोग भविष्य को लेकर अनिश्चित होते हैं, तो खर्च करने से बचते हैं, जिससे घरेलू मांग में गिरावट आती है।
उपभोक्ता भावना कमजोर होने से बाजार में बिक्री कम हो जाती है, जिससे कंपनियों की आमदनी और रोजगार के अवसर प्रभावित होते हैं।
7. मानव संसाधन और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
युद्ध या युद्ध जैसे हालात में संसाधनों का बड़ा हिस्सा सेना और सुरक्षा पर खर्च होता है। साथ ही, युवाओं में डर और असुरक्षा की भावना पनप सकती है, जो कार्यक्षमता और उत्पादकता को प्रभावित करता है।
निष्कर्ष:
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव सिर्फ राजनीतिक या सैन्य मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर दोनों देशों की आर्थिक स्थिरता, निवेश, व्यापार, रोजगार और जनजीवन पर पड़ता है। लंबे समय तक चलने वाला तनाव विकास के लिए बाधक बन सकता है। ऐसे में दोनों देशों के लिए जरूरी है कि वे कूटनीतिक माध्यमों से समस्याओं का समाधान करें, जिससे क्षेत्र में शांति, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा मिल सके।
(सलीम रज़ा)
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