सरकारी दावों की खुलती पोल : मोबाइल की रोशनी में मरीज का इलाज,अंधेरे में लगाए टांके




फिरोजाबाद: ये बात गले से नीचे नहीं उतर रही कि जिस प्रदेश का मुखिया अनुशासनात्मक रूप से इतना सख्त हो और उस मुखिया की सरकार के कारिंदे किस कदर गैर जिम्मेदार हों सोचने पर मजबूर जरूर कर देता है। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश की जहां के मुखिया माननीय योगी आदित्यनाथ जी जो सरकारी मशीनरी के पेंच कसते रहते हैं, लेकिन फिर भी ऐये कई मामले सामने आ रहे हैं जिसे देखकर लगता है कि ऐसे कार्य को करने वालों में माननीय का कोई खौफ नहीं है।

पहले एक किस्सा सामने आया जहां एक निजी अस्पताल में डेंगू मरीज की प्लेटलेटस कम हाने पर उसे मोसम्बी का जूस चढ़ा दिया गया जिससे मरीज की मृत्यु हो गई। अब एक और मामला सामने आया है जहां मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में घायल मरीज आया जिसे गम्भीर चोट लगी थी। बताते हैं जब मरीज इमरजेंसी में आया तो लाईट चली गई थी और डाक्टरों ने मोबाईल की रोशनी में ही घायल मरीज के टांके भी लगा दिये।

ये किसी हद तक बात समझ में आती है कि डाक्टरों ने अपने काम को अंजाम दिया लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि कितनी देर लाइर्ट जाने के बाद अस्पताल का जेनरेटर चला? चली भी या नहीं? जिसमें मरीज को टांके भी भर दिये गय कितनी देर लाईट नहीं आई। अगर जेनरेटर नहीं चला तो क्यूं ? क्या अस्पताल में आईसीयू वार्ड था या नहीं? या फिर और गम्भीर मरीज थे या नहीं ? ये उन अव्यवस्थाओं पर सवाल हैं जिनको लेकर सरकारें बड़े-बड़े दावे करती हैं। आपको बता दें कि फिर चिकित्सा व्यवस्था की खिल्ली उड़ाता ये मामला उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के मेडिकल कॉलेज का है जहां पर इस तरह की खबरें अव्यवस्थाओं की पोल खोलती है।

जानकारी के अनुसार बिजली जाने पर मेडिकल कालेज की इमरजेंसी में डाक्टरों को घायल मरीज को मोबाइल की रोशनी में टांके लगाने पड़े हालांकि मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने इस बात की पुष्टि भी की है। प्राप्त समाचार के अनुसार मेडिकल कॉलेज में रात करीब 11 बजे अचानक बिजली चली गई,तभी हादसे में घायल मरीज को इमरजेंसी में लाया गया था उसकी आंख के पास बड़ा घाव था। उसमें टांके लगाने की जरूरत थी लेकिन अस्पताल में जेनरेटर होने के बाद भी उसे क्यों नहीं चलवाया गया।

जानकारी के मुताबिक लाइट ने होने पर भी मरीज का इलाज शुरू किया गया और ऐसे में घायल व्यक्ति को अंधेरे में मोबाइल फोन की रोशनी में ही टांके क्यों लगाने पड़े। सीएमएस का कहना है कि रात को लाइट चली गई थी,उसी दौरान घायल मरीज आ गया था। उसका तुरंत उपचार जरूरी था। इस बात से शायद ही सीएमएस अपना बचाव ढ़ूंढ़ रहे हैं तो इस बात में दम कम है क्योंकि आपतकाल में लाये गये मरीज की कागजी कार्यवाही में ही 10 से 15मिनट लगते हैं। लिहाजा ये सारा मामला मेडिकल कालेज की अव्यवरूथाओं के साथ सरकारी दावों की पोल खोलता है।

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